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बुंदेलखंड में मंत्रियों की पूरी फौज, फिर भी ‘विकास’ की नहीं हुई मौज

  • बुंदेलखंड में मंत्रियों की पूरी फौज, फिर भी ‘विकास’ की नहीं हुई मौज
  • विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिल सकती है कड़ी टक्कर

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के लिए मध्यप्रदेश में फिर से सरकार बनाना बड़ी चुनौती से कम नहीं है। महाकोशल और विंध्य क्षेत्र में राजनैतिक,आर्थिक और औद्योगिक उपेक्षा के चलते क्रमशः 38 और 30 सीटों यानी दोनों ही क्षेत्रों की कुल 68 सीटों में भाजपा को कांग्रेस कड़ी चुनौती देती दिखाई दे रही है। इसके उलट महाकोशल-विंध्य क्षेत्र से सटे हुए बुंदेलखंड क्षेत्र की 29 सीटों पर भी भाजपा को कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। बुंदेलखंड क्षेत्र से राज्य और केंद्र में कई मंत्री बनाए गए हैं। फिर भी क्षेत्र सूखा, बेरोजगारी,पलायन और आर्थिक विकास के लिए तड़प रहा है।

कितने जिले और कितनी सीटें किसके पास

बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाले 7 जिलों सागर,दमोह,पन्ना,छतरपुर,टीकमगढ़, दतिया और निवाड़ी जिलों से विधानसभा की कुल 29 सीटें आती हैं। 2018 के चुनाव में क्षेत्र से बीजेपी के खाते में जहां 19 सीटें गई थीं वहीं कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटें ही मिल सकी थीं। जबकि सपा -बसपा ने 1-1 सीट हासिल की थी। लेकिन इस आंकड़े को दोबारा दुहराना भाजपा के लिए अब कठिन लग रहा है।

5 मंत्री और 2 केन्द्रीय मंत्री फिर भी विकास नहीं कर पाए

इसे विडंबना ही कहेंगे कि महाकोशल और विंध्य का हक मारकर बुंदेलखंड क्षेत्र से शिवराज मंत्रिमंडल में 5 केबिनेट स्तर के मंत्री बनाए गए थे। यहां तक कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी बुंदेलखंड से 2 मंत्री हैं। संभवतः कांग्रेस इसलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा की गई उपेक्षा का मुद्दा कांग्रेस बनाना चाहती है। बता दें कि बुंदेलखंड क्षेत्र से 5 मंत्रियों में क्रमशः गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, नरोत्तम मिश्रा और वृजेन्द्र प्रताप सिंह शामिल हैं। जबकि केन्द्र के मोदी मंत्रिमंडल में बुंदेलखंड से प्रहलाद सिंह पटेल और वीरेंद्र खटीक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। खजुराहो से सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा भी बुंदेलखंड से ही आता है। समझा जा सकता है कि तमाम दिग्गज नेताओं के होते हुए भी बुंदेलखंड क्षेत्र की समस्याएं खत्म नहीं हुई हैं।

पौने नौ वर्ष के लिए राज्य रह चुका है क्षेत्र

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि जिस बुंदेलखंड राज्य की मांग जब -तब उठती रही है , उसका अस्तित्व कभी पौने नौ वर्षों ( 8 वर्ष 7 माह) के लिए रह चुका है। बाद में बुंदेलखंड राज्य को 31 अक्टूबर 1956 को समाप्त करके उसे उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में समाहित कर दिया गया था। 12 मार्च 1948 को बुंदेलखंड राज्य का गठन किया गया था और इसकी राजधानी छतरपुर जिले के नौगांव को बनाया गया था।कामता प्रसाद सक्सेना मुख्यमंत्री बनाए गए थे।

पृथक राज्य की मांग भी उठती रही है

पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग भी इस क्षेत्र का बड़ा मुद्दा रहा है। इसके लिए कई मंच और मोर्चा बने हुए हैं। दोनों ही दल इस मांग से दूरी बनाते रहे हैं। बुंदेलखंड राज्य की मांग करने वाले चाहते हैं कि मध्यप्रदेश के जिलों दतिया,सागर,छतरपुर,दमोह, टीकमगढ़, पन्ना और निवाड़ी के अलावा उत्तरप्रदेश के झांसी,बांदा, ललितपुर, हमीरपुर,जालौन, महोबा तथा चित्रकूट को मिलाकर अलग राज्य का गठन किया जाए। समझा जा सकता है कि जो भी दल इसका खुलकर समर्थन करेगा उसका पलड़ा भारी हो सकता है

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