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ब्राह्मणों का आशीर्वाद और जैनों की एकजुटता जिसके साथ,उसके सिर होगा जबलपुर उत्तर का ताज।

‘जबलपुर उत्तर’ का ‘दिल’ जीतने नेताओं में मची है जोरआजमाइश

जबलपुर। जिले की जबलपुर उत्तर विधानसभा सीट न केवल शहर का ‘दिल’ मानी जाती रही है बल्कि यही वो विधानसभा क्षेत्र रहा है जिससे चुनाव जीतकर नेताओं ने अपनी राजनीति प्रदेश स्तर पर चमकाई है। मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष पं.कुंजीलाल दुबे हमेशा जबलपुर मध्य (अब जबलपुर उत्तर नाम हो गया है) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा करते थे। पं.कुंजीलाल दुबे सबसे लंबे समय तक स्पीकर रहने वाले नेताओं में से एक रहे हैं। मध्यप्रदेश के सन् 1952 से लेकर 1967(पुराने व नए मध्यप्रदेश में) तक वे विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं। पं.कुंजीलाल दुबे मूलतः नरसिंहपुर जिले के आमगांव के रहने वाले थे, जिन्होंने जबलपुर को अपनी कर्मभूमि बनाकर विधि क्षेत्र में पृथक पहचान बनाई थी। नगर निगम के पूर्व महापौर स्व. विश्वनाथ दुबे उनके पुत्र थे। इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र से औंकार प्रसाद तिवारी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सासू मां श्रीमती जयश्री बनर्जी एवं शरद जैन जैसे कई दिग्गज यहां से विधायक बनकर मंत्री रह चुके हैं।

ये बड़ा वोट बैंक तय करेगा जीत-हार का फैसला

लगभग 2.20 लाख मतदाताओं वाले जबलपुर उत्तर विस क्षेत्र में कौन चुनाव जीतेगा,इसका फैसला इस क्षेत्र के ब्राह्मण,जैन और मुस्लिम मतदाताओं के हाथों में रहता है। खासतौर पर ब्राह्मण यहां बहुतायत में हैं। इस सीट से अधिकांश ब्राह्मण ही चुनाव जीतते रहे हैं। जैन समुदाय से भी प्रतिनिधित्व किया गया है। 2003 ,2008 और 2013 में शरद जैन यहां से विधायक रहे हैं और मंत्री भी बन चुके हैं। ब्राह्मण और जैनों को भाजपा का ही वोटबैंक माना जाता रहा है और मुस्लिम एवं अजा/जजा वर्ग कांग्रेस को वोट करता रहा है।

तीन चुनावों के आंकड़े क्या कहते हैं

इस विधानसभा सीट के पिछले तीन चुनावों में जीत-हार के आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा सब पर भारी पड़ती रही है। सिर्फ 2018 के चुनाव में वह अपने ही एक बागी नेता धीरज पटेरिया के निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण 578 वोटों से पिछड़ गई थी।2008 में भाजपा से शरद जैन और कांग्रेस की ओर से कदीर सोनी के बीच हूए चुनावी मुकाबले में शरद जैन 20 हजार वोटों के अंतर से जीते थे। 2013 में शरद जैन के खिलाफ कांग्रेस ने नरेश सराफ को मैदान में उतारा, जिन्हें 33,500 के अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा था। अब पिछले यानी 2018 के चुनाव की बात करें तो भाजपा के शरद जैन को हराने के लिए कांग्रेस ने विनय सक्सेना को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में भाजपा से टिकट के दावेदार रहे धीरज पटेरिया को टिकट न मिलने से वे निर्दलीय ही लड़ गए और अपनी ही मूल पार्टी की हार का कारण बन गए। शरद जैन 578 वोटों के अंतर से हार गए। कांग्रेस के विनय सक्सेना को भाजपा की फूट का लाभ मिला और वे 50045 वोट पाकर चुनाव जीत गए। शरद जैन को 49467 मत मिले वहीं भाजपा के बागी धीरज पटेरिया को 29479 मत मिले। पटेरिया को मिले सभी वोट भाजपा के ही थे। हालांकि अब धीरज पटेरिया फिर से भाजपा में वापसी कर चुके हैं और हो सकता है कि उन्हें टिकट मिल जाए।

बीजेपी से वोटों का बिखराव रोकने राममूर्ति मिश्रा को मिल सकता है मौका

इस विधानसभा क्षेत्र से 2023 का चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस और भाजपा में दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। कांग्रेस की ओर से विनय सक्सेना तो जीते हुए विधायक हैं ही सबसे बड़े दावेदार,इसके अलावा और भी नेता टिकट की जोरआजमाइश में हैं। उधर भाजपा की ओर से शरद जैन का दावा प्रबल है। क्योंकि उनकी हार का अंतर सिर्फ 578 ही था,जिसे वे आसानी से खत्म कर सकते हैं। लेकिन अब चूंकि पिछले चुनाव में बगावत कर चुके धीरज पटेरिया पार्टी में वापस आ गए हैं तो वे केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल और पाटन से वरिष्ठ अजय विश्नोई के सहारे टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं। ऐसी सूरत में भाजपा हाईकमान के समक्ष ब्राह्मण-जैन वोटों में बिखराव की स्थिति निर्मित न हो जाए,तो इससे बचने के लिए पार्टी शरद जैन और धीरज पटेरिया के बजाय किसी तीसरे नेता को टिकट दे सकती है। ऐसे में पं.राममूर्ति मिश्रा का नाम इस क्षेत्र से आगे किया जा सकता है। श्री मिश्रा यहां से कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ भी चुके हैं और अब भाजपा में हैं। राममूर्ति मिश्रा इस समय भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति में सदस्य भी हैं।

(राजेन्द्र तिवारी, वरिष्ठ पत्रकारकी रिपोर्ट)

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