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MP election 2023 : पाटन क्षेत्र में कांग्रेस की कसरत, बीजेपी को ओवर कांफिडेंस से नहीं फुर्सत!

भाजपा के बागी और भितरघाती रोक सकते हैं ‘विजयरथ’

जबलपुर। जिले की पाटन विधानसभा सीट 2008 से नए स्वरूप में है। पहले इस विधानसभा क्षेत्र में जिले की शहपुरा तहसील भी शामिल हुआ करती थी। मगर पिछले परिसीमन में शहपुरा को पाटन विधानसभा क्षेत्र से काटकर बरगी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा बना दिया गया। इसी तरह मझौली विधानसभा क्षेत्र को समाप्त करते हुए उसके अंतर्गत आने वाले मझौली व कटंगी क्षेत्र को पाटन विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा बनाया गया। तब से पाटन क्षेत्र का चुनावी समीकरण बदल गया है। पाटन तहसील में जहां 228 गांव हैं वहीं मझौली तहसील में 245 गांव आते हैं।

इन दोनों ही तहसीलों के तीन नगर क्रमशः पाटन, कटंगी और मझौली चुनावी फिजा को बनाने और बिगाड़ने के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। हालांकि अब इसमें परिवर्तन होने लगा है। समय के साथ गांव के लोग भी अपने मस्तिष्क से निर्णय लेने में सक्षम हो गए हैं। क्षेत्र में लगभग 2.50 लाख मतदाता हैं। जिनमें ब्राह्मण,पटेल और ठाकुरों के वोट निर्णायक हैं। यही वजह है कि पुराने मझौली विधानसभा क्षेत्र से (अब पाटन विधानसभा क्षेत्र) सत्येन्द्र प्रसाद मिश्र, रामप्रकाश गर्ग,रामकुमार पटेल यहां से आराम से चुनाव जीते हैं। यही स्थिति पाटन क्षेत्र के नए और पुराने स्वरूप में भी इन जातियों की रही है। पुराने स्वरूप वाले पाटन क्षेत्र से ब्राह्मणों में जहां कल्याणी पाण्डेय, रामनरेश त्रिपाठी,भगवत प्रसाद गुरु एवं नए पाटन क्षेत्र बनने के बाद 2013 में नीलेश अवस्थी विधायक रह चुके हैं तो ठाकुरों की ओर से ठाकुर पृथ्वी सिंह और बाबू सोबरन सिंह भी यहां का विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पटेल वर्ग से रामकुमार पटेल भी पुराने मझौली क्षेत्र से न केवल विधायक रहे हैं बल्कि दिग्विजय सिंह सरकार में राज्यमंत्री रहे हैं। उनका 2021 में निधन हो चुका है।

किसकी कैसी है तैयारी-

विधानसभा क्षेत्र पाटन में भाजपा को जहां पूरी उम्मीद है कि 2023 के चुनाव में उसे फिर मौका मिलेगा वहीं कांग्रेस इसबार पक्के तौरपर आशा लगाए बैठी है कि वह 2013 की तरह भाजपा के दंभ को तोड़ने में कामयाब होगी। अभी सिटिंग एमएलए यहां से अजय विश्नोई हैं जो इस क्षेत्र से दो बार जहां पराजय का स्वाद चख चुके हैं और तीसरी बार विधायिकी का सुख भोग रहे हैं।

शिवराज मंत्रिमंडल में वह मंत्री भी रह चुके हैं। मंत्री बनने की कोशिश में वह पार्टी लाइन के खिलाफ भी बोल चुके हैं, जिसके कारण बैकफुट पर हैं तथा नए सिरे से पार्टी को विश्वास में लेने की कवायद में जुटे हुए हैं। उधर, भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस की ओर से नीलेश अवस्थी और प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य राजेश तिवारी’गुरू’ भी क्षेत्र में जनसंपर्क बनाए हुए हैं। इनमें से नीलेश अवस्थी 2013 में भाजपा के लिए अजेय मानी जाने वाली पाटन सीट से अजय विश्नोई को धूल चटा चुके हैं। तब राजेश तिवारी और अन्य ब्राह्मण नेताओं ने नीलेश अवस्थी के पक्ष में लामबंद होकर कांग्रेस को जिताया था।

वर्तमान परिदृश्य किसके पक्ष में है-

क्षेत्र से जुड़े हुए अधिकांश लोगों से मिलकर उनकी रायशुमारी ली गई तो मिली-जुली राय सामने आई है। कुछ लोग जहां बदलाव चाहते हैं वहीं कुछ बीजेपी के पक्ष में तो हैं लेकिन मौजूदा विधायक को रिपीट करने के हिमायती नहीं है।

भाजपा के बागी फिर सक्रिय-

2013 का चुनाव हारने के बाद भाजपा के अजय विश्नोई ने पार्टी से भितरघातियों के बारे में शिकायत की थी। नतीजतन कई क्षेत्रीय स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं को निष्कासित कर दिया गया था। जिनमें पाटन क्षेत्र से नारायण सिंह, पूर्व विधायक रामप्रकाश गर्ग, कटंगी से अमिताभ साहू, मझौली से राजेन्द्र चौरसिया और उनकी पत्नी शिप्रा चौरसिया जैसे कई लोग शामिल थे। बाद में 2018 के चुनाव में इन सभी की पार्टी में वापसी कराई गई थी। लेकिन अब यही सब फिर से अजय विश्नोई को टिकट दिए जाने का विरोध कर सकते हैं।

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