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योग, प्रकृति के सूक्ष्म रहस्य को प्रकट करने की भी एक कला है-महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

जबलपुर। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर म.प्र. गोसंवद्र्धन बोर्ड (म.प्र.) के अध्यक्ष परमपूज्य महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि भारतीय योगदर्शन वह कला है, जिसके निरंतर अभ्यास से योगी स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर की परिधि से आगे निकल कर तुरीय और तुरीयातीत अवस्था को भी पार कर कैवल्यधाम में निरंतर वास करते हुये अखिल ब्रह्मांड का साक्षी बन जगत के क्रिया कलापों का सूक्ष्मता से अवलोकन करते हुए जगत्प्रपञ्च से सदैव निर्लिप्त रहता है। उन्होंने कहा कि समाधि की दोनों स्थितियाँ चाहे वह निर्विकल्प हो या सविकल्प, योगी के जीवन का यह कौतूहल मात्र है। योग जीवन के इसी दार्शनिक रहस्य को जानने और समझने क़ो दुनिया छटपटा रही है। हमें आपको योग के या योग साधक योगी के भौतिक चमत्कार से ऊपर उठकर उसके अलौकिक रहस्य को समझने का प्रयत्न करना चाहिए।
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि योग केवल शारीरिक कवायत और कसरत मात्र नहीं है वह प्रकृति के सूक्ष्म रहस्य को प्रकट करने की भी एक कला है, जिसके माध्यम से योग साधक योगी तत्त्वदर्शी के साथ आत्मदर्शी भारतीय विधाओं का ज्ञाता हो जाता है। भारत की दार्शनिक मान्यताओं में चाहे फिर वह नास्तिक दर्शन हो या आस्तिक दर्शन का दायरा सभी में महर्षि पतञ्जलि प्रणीत भारतीय योग दर्शन अनुस्यूत है।
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि भौतिक या अभौतिक सभी साधना पद्धति में चित्त की चञ्चल वृत्तियों का निषेध महत्त्वपूर्ण है। चित्त की एकाग्रता के बिना सफलता नहीं मिलती। यह है भारतीय योग विधा का महनीय पक्ष। यदि सच्चे अर्थों में, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को सार्थक बनाना है तो हमें हमारे पूर्व योगियों के जीवन, उनके कथन और उनके रहस्यात्मक अनुभवों की पुस्तकों का अध्ययन अवश्य कर लेना चाहिए अथवा योग की सही अर्थों में जो व्याख्या कर सकें, ऐसे आचार्यों का मार्गदर्शन प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। तभी यह अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस अपनी सार्थकता की ओर अग्रसर हो सकेगा।

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