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शासन, प्रशासन व आमजन के सहकार से मध्यप्रदेश गोवंश के आधार पर स्वर्णिम प्रदेश की राह पकड़ेगा

गोशालायें अपने आठ आयामों के माध्यम से ही सुसज्जित होनी चाहिए: महामंडलेश्वर स्वामीश्री अखिलेश्वरानंद गिरि
जबलपुर। मध्यप्रदेश सर्वाधिक गोशालाओं वाला प्रदेश है। गोशालाओं को समुचित प्रबंधन के अभाव में बहुत अच्छा उपक्रम नहीं मानता। गोशालाएं अपने आठ आयामों के माध्यम से ही सुसज्जित होनी चाहिए। शासन, प्रशासन व आमजन के सहकार से मध्यप्रदेश गोवंश के आधार पर स्वर्णिम प्रदेश की राह पकड़ेगा। उपर्युक्त विचार व्यक्त करते हुए मध्यप्रदेश गोपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड की कार्य परिषद् के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामीश्री अखिलेश्वरानंद गिरि ने अपने महाकौशल क्षेत्र के जिलों में प्रवास के दौरान विभिन्न गोशालाओं के अवलोकन के समय गोशालाओं में एकत्रित गोशालाओं के संचालकों एवं ग्रामीणों, गोपालकों व पशुपालन विभाग के अधिकारियों, गो चिकित्सकों के बीच व्यक्त किये। उन्होंने कहा-कि प्रदेश में नवनिर्मित गोशालाओं की संख्या अब एक हजार से ऊपर हो गई है। ये नूतन गोशालायें कुछ तो संचालित हो गई हैं, कुछ संचालन की बाट जोह रही हैं। उन्होंने कहा कि मैं गोशालाओं को गोवंश संरक्षण के केंद्र के रूप में स्वीकारता तो हूँ परंतु समुचित प्रबंधन के अभाव में गोशालाओं को गोवंश के संरक्षण और संवद्र्धन का एकमात्र समाधान नहीं मानता। गायों को जितनी आत्मीयता गोपालक के और कृषकों के घर में मिलती है उनती इन गोशालाओं में नहीं।
बेसहारा गोवंश चिंता का विषय
महामंडलेश्वर स्वामीश्री अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि म.प्र. गोसंवद्र्धन बोर्ड के माध्यम से पंजीकृत गोशालायें जिनकी संख्या प्रदेश में लगभग सात सौ के आसपास हैं तथा मुख्यमंत्री गोसेवा योजना, मनरेगा द्वारा आर्थिक सहायता से ग्राम पंचायत स्तर पर निर्माण की गई गोशालायें एक हजार हैं। प्रदेश में इतनी गोशालायें होने के बाद भी प्रदेश की सडक़ों, नेशनल हाईवे व प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ों पर भारी संख्या में भटकता, बेसहारा, निराश्रित गोवंश चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि नवनिनिर्मित गोशालायें प्रबंधन के अभाव में खाली पड़ी हैं, उनका संचालन ही अभी आरंभ नहीं हुआ है। मैंने गाँवों में अपने प्रवास के दौरान यह पाया है कि ग्राम पंचायतों ने साफ और स्पष्ट रूप से मना कर दिया है कि हम गोशालाओं का संचालन नहीं कर सकते। महिलाओं के स्व सहायता समूह द्वारा जरूर कुछेक गोशालाओं का प्रबंध सम्हाला गया है, जो प्रशंसनीय और सार्थक कदम है।
चरनोई भूमि पर दबंगों का कब्जा
महामंडलेश्वर स्वामीश्री अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि महाकौशल क्षेत्र में डिण्डौरी, छिंदवाड़ा, जबलपुर, दमोह जिलों के प्रवास में गोशाला संचालकों, स्व सहायता समूह की बहिनों से मिलकर उनकी कठिनाइयों को भी समझने का प्रयास किया है। सभी स्थानों पर शिकायत मिल रही है कि गाँँवों में चरनोई/गोचर भूमि बची ही नहीं। दबंग लोगों ने कब्जा कर लिया है, चरनोई भूमि को मुक्त कराईये ताकि नवाचार रीति से उस पर नेपियर घास, चरी और अच्छी किस्म की घास उगाई जा सके।
गोशालाओं में समुचित प्रबंधन और संचालन हेतु सात आयामों का नियोजन आवश्यक है।
01 – गोसंरक्षण, 02 – गोसंवद्र्धन, 03 – गोशाला समिति के सदस्यों का प्रशिक्षण, सदस्यों के मध्य कार्य विभाजन तथा दायित्व बोध पूर्वक उन सभी का समर्पण। 04 – गोवंश के आहार की उपलब्धता, 05 – गोवंश के अस्वस्थ होने पर उपचार व्यवस्था, 06 – गोशाला में अच्छी नस्ल की दुधारू गाय एवं संवद्र्धन हेतु उन्नत नस्ल के सांड की उपस्थिति, 07 – गोबर, गोमूत्र का प्रबंधन, गोर्विकार (पंचगव्य) से औषधि बनाने की विधि नवाचार, गो आधारित उत्पादों की मार्केटिंग। इसके अतिरिक्त और भी आयाम हैं जैसे गोशाला प्रबंधाधिकरण के सदस्यों का आसपास के दस गाँवों से सतत सम्पर्क।
तीन वर्षों में प्रदेश में गोवंश के लिये बेहतर कार्य योजना बनाएंगे
महामण्डलेश्वर जी का मानना है कि- मध्यप्रदेश में गोवंश के संरक्षण और संवद्र्धन हेतु सभी आवश्यक और प्रकृति प्रदत्त संसाधन उपलब्ध हैं, प्रदेश के पाँचों क्षेत्र में क्षेत्रीय आधार पर सम्भावनायें उपलबध हैं उन सम्भावनाओं का समुचित नियोजन करना और शासन, प्रशासन तथा आमजन का समवेत सहकार दृढ़ इच्छा सहित होगा तो मध्यप्रदेश गोवंश के आधार पर स्वर्णिम प्रदेश की राह पकड़ सकेगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया है कि मुझे दूसरी बार प्रदेश शासन में गोसंवद्र्धन बोर्ड में दायित्त्व मिला है। जनसहयोग, जनप्रोत्साहन, प्रशासनिक अधिकारियों का सहयोग आवश्यक है। हम आने वाले तीन वर्षों में प्रदेश में गोवंश के लिये बेहतर कार्य योजना स्थापित कर सकेंगे।

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