Homeमध्यप्रदेशPressure Politics : उमा भारती की कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना..!

Pressure Politics : उमा भारती की कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना..!

भोपाल। उमा भारती.. ऐसा नाम जिसे परिचय देने की जरूरत नहीं। मप्र की मुख्यमंत्री रह चुकीं उमा भारती फायरब्रांड नेता हैं। साफगोई इतनी कि जो मन में आया कह दिया.. बेबाक बोल दिया। मोदी मंत्रिमंडल में केंद्रीय मंत्री रह चुकीं उमा भारती ने 2014 में झांसी से चुनाव लड़ा और जीत गईं। केंद्र में मंत्री बनीं और मां गंगा को स्वच्छ करने का बीड़ा भी उठाया। लेकिन 2019 में वे चुनाव नहीं लड़ीं। तब से उनका नाम कभी-कभी सुर्खियों में रहा। करीब सालभर पहले उन्होंने शिवराज सरकार को अल्टीमेटम दिया कि प्रदेश में शराब बंदी लागू की जाए, वरना वे सडक़ पर उतर जाएंगे। बहरहाल भाजपा ने उन्हें मना लिया और साध्वी उमा भारती भी चुप बैठ गईं। लेकिन एक बार फिर उन्होंने हुंकार भरी है कि शराब बंदी तो होकर रहेगी। भले ही सरकार को राजस्व का नुकसान हो तो हो। इसके लिए सरकार दूसरे उपाय करे। साध्वी के इस अल्टीमेटम से भले ही अभी किसी ने प्रतिक्रिया न दी हो, लेकिन भाजपा में अंदरखाने इसे लेकर कुछ और चर्चाएं हैं। जैसे कि उमा भारती एलान कर चुकी हैं कि वे 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। ऐसे में प्रदेश सरकार को मुश्किल में डालकर दरअसल वे प्रेशर पॉलिटिक्स ही कर रही हैं। माना जा रहा है कि वह आलाकमान पर दबाव बनाना चाहती हैं। यानि कि उमा दीदी की निगाहें कहीं और हैं और निशाना कहीं और है।
जब खुला चैलेंज देकर पार्टी से निकलीं थीं उमा भारती
अयोध्या आंदोलन में अगुवा रहीं साध्वी उमा भारती इससे पहले भी पार्टी नेतृत्व को चुनौती दे चुकी हैं। 2003-04 में उन्होंने अपने बलबूते प्रदेश में पार्टी की सत्ता बनवाई। लेकिन एक मामले में घिरने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनवाया। इसके बाद कमान शिवराज सिंह चौहान ने संभाली। इसी बीच शीर्ष नेतृत्व से अनबन होने पर उन्होंने खुलेआम आलाकमान को चुनौती देते हुए पार्टी छोड़ दी। नई पार्टी भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई, लेकिन आशातीत सफलता नहीं मिली। आखिर में उन्होंन लौटकर भाजपा में आना पड़ा। मोदी युग शुरू होते ही उन्हें अहम जिम्मेदारियां भी मिलीं। लेकिन अब वे नेपथ्य हैं।
मप्र में ओबीसी का बड़ा वोट बैंक
उमा भारती ओबीसी से आती हैं और मप्र में पार्टी का बड़ा चेहरा भी रह चुकी हैं। ऐसे में उनका असर प्रदेश में देखा जा सकता है। पार्टी भी जब भी विधानसभा चुनाव होता है, तो उन्हें मना-थपाकर प्रचार में जरूर उतारा जाता है। हाल ही में ओबीसी प्रतिनिधिमंडल से बात करते हुए उन्होंने कह भी दिया कि वे 27 प्रतिशत आरक्षण की पुरजोर समर्थक हैं और इसे निजी क्षेत्र में भी लागू किया जाए। उन्होंने यह भी सलाह दी कि सभी ओबीसी की जातियां एकजुट हो जाएं और आपस में मतभेद भुला दें।
ब्यूरोके्रसी उठाती है हमारी चप्पल
इसी दौरान बातों-बातों में वे यह भी कह बैठीं कि ब्यूरोक्रेसी तो हमारी चप्पल उठाती है। इन्हें तनख्वाह हम देते हैं, प्रमोशन हम देते हैं, पदस्थापना हम करते हैं तो भला इनकी क्या औकात है..! जब इस बयान पर बवाल मचा तो उन्होंने खेद जता दिया। हालांकि इस दौरान उन्होंने ब्यूरोक्रेसी पर पुराने अनुभव के आधार पर नसीहतें भी दीं और अपना गुस्सा भी जताया।

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