जबलपुर में महापौर के लिए कड़ा मुकाबला, जानें अपने प्रत्याशी को

जबलपुर। संस्कारधारी में महापौर पद के लिए दो पार्टियों में कड़ा मुकाबला है। बीजेपी से डॉ. जितेंद्र जामदार हैं, तो कांग्रेस से जगत बहादुर सिंह अन्नू हैं। भाजपा 15 साल से नगर निगम में काबिज है। भाजपा का दावा है कि उसने शहर का विकास किया है और आगे भी उसे संवारेगी करेगी। जबलपुर में 3 सभाएं कर चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांसद राकेश सिंह पूरा जोर लगाए हुए हैं। डॉ. जितेंद्र जामदार ने एक रूपए वेतन लेने का वादा कर जनता को लुभाने का काम किया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जनता को भरोसा दिलाया कि डॉ. जामदार उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जबलपुर में सभा करने आए। उन्होंने रोड शो किया और पत्रकारों से लंबी चर्चा की। उन्होंने स्मार्ट सिटी का भ्रष्टाचार का अड्डा बताया, तो शिवराज सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया।
दोनों में ये हैं खूबियां
डॉ. जामदार हों या जगत बहादुर सिंह दोनों प्रत्याशी समाजसेवा से जुड़े हुए हैं। डॉ. जामदार ने कोरोना काल में राष्ट्रधर्म निभाया है। योगमाया ट्रस्ट के माध्यम से गरीबों तक अनाज पहुंचाया, तो कोरोनाकाल में ही 1000 यूनिट रक्तदान कराया। डॉ. जामदार 27 सालों से दिव्यांगों की सेवा में जुटे हैं। उन्होंने 30 हजार दिव्यांगों को निशुल्क परामर्श और दवाएं और उपकरण दिए हैं। वे मां नर्मदा को बचाने और उसे अविरल बनाने में भी अपना योगदान दे रहे हैं। उन्होंने नर्मदा सेवा यात्रा के माध्यम से पूरे प्रदेशवासियों को इस अभियान से जोडऩे का काम किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े डॉ. जामदार ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित और जनसेवा में बिताया है। इसी तरह कांग्रेस प्रत्याशी जगत बहादुर सिंह अन्नू भी समाजसेवा से जुड़े रहे हैं। वे लोगों को मां वैष्णो देवी की यात्रा के लिए ले जाते रहे हैं। कोरोना काल में अन्नू ने जमीन पर उतरकर काम किया। पूर्व पार्षद के रूप में उन्हें नगर निगम का अनुभव भी है। उनका कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव भी रहा है।
अन्नू का मुकाबला भाजपा से
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस से अन्नू और भाजपा से संगठन चुनाव लड़ रहा है। यानि कि कांग्रेस का मुकाबला भाजपा के मजबूत संगठन से है। कांग्रेस के लिए गुटबाजी बड़ा सिरदर्द है। यानि अगर सभी ने एकजुटता से काम नहीं किया तो फिर जीतना मुश्किल हो जाएगा। यह सब हम पिछले महापौर और लोकसभा के चुनाव में देख ही चुके हैं। ऐसे में हैरत नहीं होगी कि बिखरी कांग्रेस इस बार फिर बाजी हार जाए।

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