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गैस सिलेंडर की आसमान छूती कीमतों से नहीं राहत.. सब्सिडी का भी अजीब खेल..?

जबलपुर। आखिर वही हुआ, जिसके कयास कई दिनों से लग रहे थे। एक सितंबर को रसोई गैस के दाम बढ़ा दिए। पेट्रोल-डीजल में लगी आग से झुलसी जनता को रसोई में भी आग लगती नजर आ रही है। अब बेचारा आम आदमी करे तो क्या करें, क्योंकि तीनों चीजों जरूरी हैं। पेट्रोल के बिना गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी, तो कहीं बाहर गए तो बसों का किराया भी जेब ढीली करने को तैयार है। ऐसे में घर में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली रसोई गैस के दाम फिर बढ़ गए। कहने को तो ये दाम 25 रूपए बढ़े हैं, लेकिन पूरी कीमत सुनकर गरीब आदमी का तो कलेजा हाथ में आ जाएगा। एक गैस सिलेंडर 900 रूपए के करीब है, तो अगर रसोई चलानी है, जो खर्च करना ही पड़ेगा। जानकारों का कहना है कि सरकार ने तो कंपनियों को खुली छूट दे दी है कि जितना चाहे लूटो और अपना प्रॉफिट बढ़ाओ। यही वजह है कि पिछले करीब डेढ़ साल में 18 बार रसोई गैस के दाम बढ़े और यह बढ़ते-बढ़ते 900 रूपए के करीब पहुंच गए। ऐसे में आदमी क्या कमाए, क्या खाए.. ये बड़ा सवाल है। क्योंकि खाने के तेल में भी आग लगी हुई है।
अंधा बांटे रेवड़ी..चीन्ह-चीन्ह कर देय..वाली स्थिति
आम आदमी तो यह भूल ही चुका है कि उसे कभी सब्सिडी मिलती भी थी। कई माह-साल गुजर गए, एक धेला नहीं आया। पहले आम आदमी को सुकून रहता था कि चलो 750 का सिलेंडर खरीदा है, तो 200-250 रूपए सब्सिडी तो मिल ही जाएगी। लेकिन सरकार भी बड़ी सयानी निकली.. तो धीरे-धीरे कर सब्सिडी ही बंद कर दी। अब सुनने में यह आया है कि भाई ये सब्सिडी न कहीं-कहीं मिल रही है। लेकिन जितनी मिल रही है उससे आधा लीटर पेट्रोल खरीदना भी मुश्किल है। ऐसे में आदमी रोए या हंसे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अब प्रदेश की ही बात करें तो जबलपुर में सब्सिडी नहीं मिलती, लेकिन यहां एक सिलेंडर ८९१ रूपए का मिलेगा। वहीं भोपाल में यह सिलेंडर ८९० रूपए का मिलेगा। अब ग्वालियर में यह सिलेंडर करीब ९६८ रूपए का पड़ेगा, लेकिन यहां करीब ५७ रूपए की सब्सिडी मिल जाएगी। यानि कि पूरे प्रदेश के महानगरों में ग्वालियर ही ऐसा है, जहां ज्यादा कीमत है। इंदौर में एक सिलेंडर ९१२ रूपए का है, लेकिन यहां पर करीब २१ रूपए सब्सिडी मिल जाएगी।
यह है कंपनियों का गणित.. समझ सको तो समझ लो
सिलेंडर आपूर्ति करने वालाीर कंपनियां भी बड़ी शातिर हैं। पहले तो पूरी तरह सब्सिडी ही बंद कर दी, लेकिन जैसे ही हो-हल्ला मचा तो कुछ शहरों में सब्सिडी देना शुरू कर दिया। अब लोग सोचते होंते १०-२० या २५-५० से क्या होता है, तो इसका सीधा सा गणित है कि ज्यादा दाम चुकाओ और थोड़ा-बहुत सब्सिडी ले लो। अब सब्सिडी के पीछे कंपनिया का तर्क यह है कि वह प्रोप्रेन और ब्यूटेन के दाम के बाद भाड़ा, बीमा और कस्टम ड्यूटी जोड़ती हैं। इसी के आधार पर रसोई गैस के दाम तय होते हैं। उस पर रसोई गैस के बेस स्टेशन के आधार पर भी दाम तय होते हैं। यानि कि सीधा सा अर्थ यह है कि आपके शहर में जितनी दूर से रसोई गैस आएगी, उतनी जेब आपको ठीली करनी पड़ेगी। तो शुक्र मनाईए कि आप जबलपुर में रहते हैं, तो आपको १०-२० रूपए का फायदा हो रहा है।

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