- विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण-ठाकुरों का गठजोड़ अंदर ही अंदर पनपने लगा
- अलग प्रदेश की मांग भी दोनों दलों को नचाएगी नांच
भोपाल। एक समय ऐसा भी था जब भोपाल में विंध्य क्षेत्र के नेताओं की तूती बोलती थी। लेकिन अब कांग्रेस व भाजपा में तूती बुलवाने वाले नेता नहीं रहे। श्रीनिवास तिवारी और अर्जुन सिंह बेशक कभी एक नहीं रहे लेकिन विंध्य क्षेत्र के विकास के लिए हमेशा अपनी आवाज बुलंद करते थे। इसके उलट भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने इस क्षेत्र से स्थानीय नेतृत्व को कभी नहीं उभरने दिया,जिसका नुकसान अब उसे उठाना पड़ सकता है।
इसकी बड़ी वजह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में पिछड़ों को आगे बढ़ाने और सवर्ण नेताओं को नेपथ्य की ओर ढकेलने की निरंतर नीति पर अमल किया जाना। नतीजा अब सबके सामने है। विंध्य क्षेत्र में कभी अलग-अलग राह पर चलने वाले ब्राह्मण-ठाकुर यानी सवर्ण वोट भाजपा से दूरी बनाते जा रहे हैं। हालिया कुछ सर्वे रिपोर्ट्स से भी पता चलता है कि विंध्य क्षेत्र में भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में तगड़ा झटका खाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। पृथक विंध्य राज्य का मुद्दा भी दोनों प्रमुख दलों को नांच नचा सकता है।
विंध्य का अतीत और अब अलग राज्य की मांग
विंध्य क्षेत्र का अतीत यानी इतिहास बड़ा ही रोमांचकारी रहा है। देश की आजादी के बाद कई रियासतों को मिलाकर राज्यों का जब गठन किया जा रहा था तब विंध्य प्रदेश के गठन के लिए भी सरदार वल्लभ भाई पटेल को मशक्कत करनी पड़ी थी। रीवा रियासत के अलावा वर्तमान उत्तर प्रदेश की कुछ रियासतों, दतिया, छतरपुर,ओरछा जैसी 35 रियासतों को मिलाकर विंध्य प्रदेश बना था। अवधेश प्रताप सिंह, शंभूनाथ शुक्ल जैसे प्रभावशाली नेता सीएम थे।आगे चलकर क्षेत्रीय नेता अतीत के महत्त्व के मद्देनजर पृथक विंध्य राज्य की मांग करते रहे हैं। अब इस राज्य की मांग के लिए भाजपा के मैहर विधानसभा क्षेत्र से विधायक नारायण त्रिपाठी आवाज बुलंद कर रहे हैं। उन्होंने तो बाकायदे विंध्य जनता पार्टी के नाम से एक पार्टी ही बना ली है जिसके जरिए वे पूरे विंध्य के लोगों को लामबंद करने में जुटे हैं। ये भी एक वजह है जो भाजपा को विंध्य क्षेत्र में बैकफुट पर खड़ा कर रही है।
4 विधानसभा चुनाव में बीजेपी रही विनर
विंध्य क्षेत्र यानी वर्तमान रीवा और शहडोल संभाग में कुल 30 विधानसभा सीटें हैं। पिछले 4 विधानसभा चुनावों में नजर डालें तो 2003,2008,2013 और 2018 में यहां के वोटर्स ने भाजपा को विनर पार्टी के रूप में स्थापित किया। पिछले दो चुनावों के ही आंकड़ों पर ही गौर करें तो 2013 के चुनाव में भाजपा को यहां से 18, कांग्रेस को 10 और अन्य को 2 सीटें मिलीं थीं। पिछले यानी 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को विंध्य क्षेत्र ने बंफर जीत से नवाजा था। भाजपा को 24 और कांग्रेस को सिर्फ 6 सीटों से संतोष करना पड़ा था। तभी तो कमलनाथ ने कहा था कि यदि कांग्रेस कार्यकर्ता विंध्य में यदि थोड़ी सी मेहनत और कर लेते तो सरकार हाथ से न जाने पाती। सिंधिया फैक्टर भी काम न आता।
ताजा फीडबैक और बीजेपी की टेंशन
दरअसल, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपने स्तर पर जो फीडबैक लिया है उससे पार्टी को इस क्षेत्र में जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। भाजपा से नाराज़गी के कई कारण हैं,जो खासतौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी जुड़े हुए हैं। जिस तरह से जबलपुर के भाजपा विधायक अजय विश्नोई को मंत्रीमंडल में शामिल करने से शिवराज कतराते रहे हैं, कमोवेश ब्राह्मण वोटरों में पकड़ रखने वाले सीनियर एमएलए राजेन्द्र शुक्ल को केबिनेट में जगह न दिए जाने से भी लोग नाराज हैं। इसके अलावा कांग्रेस से भाजपा में आकर मंत्री बने बिसाहूलाल सिंह को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो विंध्य से किसी भी विधायक को मंत्रीमंडल में जगह न मिलना भी विंध्य की उपेक्षा माना जा रहा है।इस तरह भाजपा का शीर्ष नेतृत्व विंध्य में भाजपा की जीत को लेकर टेंशन में है।
गणेश सिंह को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लेने से भी नहीं बनेगी बात
तीन -चार दिन पहले खबर आई थी कि सतना के चार बार के सांसद गणेश सिंह को केन्द्रीय नेतृत्व ने तलब किया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि विंध्य क्षेत्र की नाराज़गी दूर करने के लिए उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाया जा सकता है। मगर फीडबैक गणेश सिंह के खिलाफ है। गणेश सिंह को सवर्णों यानी ब्राह्मण-ठाकुरों का घोर विरोधी बताया जाता है।यही वजह है कि गणेश को महत्व दिया जाता है तो क्षेत्र का बड़ा सवर्ण वोटबैंक बीजेपी के हाथों से खिसक सकता है।
कुल मिलाकर विंध्य क्षेत्र की 30 सीटों को जीतने के लिए भाजपा नेतृत्व को पिछड़ों को खुशी देने और सवर्ण वोटर्स को दुखी करने के शिवराजसिंह चौहान के अंदरूनी प्लान से बचना होगा। क्योंकि 18 साल के कार्यकाल में सीएम शिवराज सिंह सिर्फ पिछड़ों को बहुसंख्यक वोट मानकर उन्हें हर क्षेत्र में आगे करने की नीति से कार्य करते रहे हैं,जिसका खामियाजा पार्टी को अब ‘पाप का घड़ा भरने’ के रूप में भुगतना पड़ रहा है। जबकि पिछड़ों के मुकाबले सवर्ण,अजजा,अजा और अन्य वोटर्स को लंबे समय तक नजरअंदाज करना हार का बड़ा कारण बन सकता है। हाल ही में विंध्य क्षेत्र के सीधी जिले से आदिवासी दशमत पर पेशाब करने जैसे जघन्य कृत्य के कारण आदिवासी वोटबैंक भी बीजेपी से नाराज़ हो गया है। जिसकी भरपाई शिवराज सिंह चौहान द्वारा कृष्ण-सुदामा का ड्रामा करके नहीं की जा सकती है।
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