घर-घर गाय, गोपालन और गो सेवा से ही हमारे घर और आंगन में दूध-घी की नदी बहेगी : महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

जबलपुर। प्रदेश में पंचायत स्तर पर नवनिर्मित लगभग 2520 गोशालाओं, एक कामधेनु गो-अभयारण्य, एक गोवंश वन्य विहार तथा म.प्र. गो संवद्र्धन बोर्ड द्वारा पंजीकृत 627 गोशालाएं हैं, जो एनजीओ द्वारा संचालित हैं। इन गोसेवा केंद्रों का संचालन और प्रबंधन बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है। म.प्र. गोपालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड कार्य परिषद के अध्यक्ष महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि गो सेवा केंद्रों को लेकर हमारी चिंता का विषय उनके प्रबंधन को लेकर है, जबकि हमारा सुस्पष्ट अभिमत है कि ये गो सेवा के केंद्र प्रदेश की आर्थिक समृद्धि के आधारभूत केंद्र हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के इन गो सेवा केंद्रों में कुल मिलाकर लगभग ढाई लाख गोवंश को आश्रय मिला हुआ है। इन केंद्रों में निराश्रित और बेसहारा गोवंश के साथ-साथ किसानों, ग्रामीण क्षेत्र के गोपालकों द्वारा गोवंश को पालने में असमर्थता प्रकट कर छोड़ दिया गया है।
महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि प्रदेश के कृषकों, गोभक्त, गो प्रेमीजनों व गोपालकों से मेरा कहना है कि घर-घर गाय, घर-घर गोपालन और घर-घर गो सेवा के माध्यम से ही हमारे घर और आंगन में दूध, घी की नदी बहेगी। यही गोवंश रक्षण और गोपालन का हमारा पारम्परिक आधार सूत्र सदियों से रहा है। गो सेवा केंद्रों से भारतीय गोपालन का सूत्र और गोपालकों में गोपालन की अभिरुचि का सूत्र अब बदल रहा है, नया आकार ग्रहण कर रहा है।
महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि गोशालाओं को आधुनिक युग के अनुरूप हमें नवाचार विधि में ढालना होगा। जब हम गाय को समृद्धि की देवी और पवित्रता की प्रतिमूर्ति व आस्था के दायरे में रखकर उसके प्रति पूजनीय भाव रखते हैं और उसे विश्व की माता गावो विश्वस्य मातृ और गोमये वसते लक्ष्मी जैसे शास्त्र वचनों के निकष में कस कर देखते हैं तो इसके लिये एक बृहद् कार्य योजना भी बनाना ही होगी।
महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि आर्थिक लाभ की दृष्टि से यदि गो उत्पादों का विश्लेषण करना हो तो मेरा मानना है गाय से प्राप्त गोर्विकार यानि पंचगव्य, गाय का दूध, दही, घृत, मक्खन, तक्र बड़े सस्ते उत्पाद हैं। हमें समझ लेना चाहिये कि गाय के दूध की मात्रा से नहीं, उसके दूध की गुणवत्ता से उसका आंकलन किया जाना चाहिये। गाय के दूध में सर्वाधिक पौष्टिक तत्व होते हैं। उसके गुणकारी तत्त्वों के कारण उसके दूध का महत्व है। इसलिये दूध का मूल्यांकन किया गया है। उसके गोबर और गोमूत्र के उत्पाद दूध से भी अधिक आर्थिक दृष्ट्या मूल्यवान हैं। गाय के दूध का बाजार भाव यदि 60 रुपया लीटर है तो उसके मूत्र से बनाया गया गोमुत्र अर्क और गो मूत्र आसव का बाजार दाम 200 और 150 रुपया प्रतिलीटर है। गाय के मूत्र से बना अमृत पानी और फिनाइल की भाँति गोनाईल भी मंहगा प्रोडक्ट है। गाय के गोबर की गैस से कुकिंग गैस, विद्युत उत्पादन और गोबर गैस प्लांट से वायो सीएनजी व गोबर गैस प्लांट से बची स्लरी से वर्मी कम्पोस्ट उत्तम किस्म की खाद है, जिसे हम जैविक खाद कहते हैं। इस प्रकार के गो उत्पाद की मार्केट वैल्यू दूध, दही, मही, घी, मक्खन आदि से अधिक है।
महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि प्रदेश में संचालित कोई भी गो सेवा केंद (गोशाला) 100 गोवंश के पालन-संरक्षण और उनसे प्राप्त गोबर, गोमूत्र अथवा गो दुग्ध से आरम्भ किये हुये वर्ष से तीसरे वर्ष में आत्मनिर्भर और स्वावलम्बन का प्रोत्साहन देने लगता है। बशर्ते किसी भी गो सेवा केंद्र (गोशाला) के सफल संचालन में उसकी प्रबंधन समिति(प्रबंधाधिकरण)में आठ आयामों के प्रशिक्षितों का होना आवश्यक है। अष्ट आयामों के बिना एवं जन सहयोग के बिना गो सेवा केंद्र न केवल लडख़ड़ाते रहेंगे, बल्कि कुप्रबंधन के शिकार होने से उन्हें कोई बचा नहीं सकता। उन्होंने कहा कि हमने अपनी गो संवद्र्धन बोर्ड द्वारा सभी पंजीकृत गोशालाओं के प्रबंधकों (समितियों) को 40 प्रतिशत दुधारू गोवंश को रखने की छूट दे दी है ताकि गोशाला आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन की राह पकड़ सके।

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