गोआधारित कृषि व पञ्चगव्य चिकित्सा से ग्रामीण क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ किया सकता है-स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

नरसिंहपुर)। गोमाता जागरण संरक्षण पखवाड़ा के अन्तर्गत पिछले दिनों गोटेगांव तहसील के ग्राम-गाड़ाघाट में गोपूजन व ग्राम विकास पर विचार संगोष्ठी”का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में अतरिता, तिघरा एवं आसपास के गाँवों से आये ग्रामीण गोपालक व कृषकों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि एवं मुख्य वक्ता के तौर पर मध्यप्रदेश गोपालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड की कार्यपरिषद् के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने भाग लिया। गोमाता की आरती के पश्चात् विचार संगोष्ठी का आयोजन हुआ। विचार संगोष्ठी के बौद्धिक विषय बिन्दु थे गो आधारित कृषि,पञ्चगव्य चिकित्सा तथा आदर्श ग्राम। आयोजन की अध्यक्षता कथावाचक आचार्य कृष्णानंद राजोरिया ने की तथा कार्यक्रम के विषय की प्रस्तावना देवनाथ पटेल (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गो सेवा विभाग के जिला संयोजक)द्वारा प्रस्तुत की गई। संघ के जिला कार्यवाह प्रह्लाद पटेल ने आदर्श ग्राम विषय पर अपने विचार व्यक्त किये उन्होंने एक आदर्श ग्राम संरचना के मानक बिन्दुओं पर आधारित अपने बौद्धिक को केंद्रित करते हुये आदर्श के सप्त निकष का निरूपण किया। गोसंरक्षण,भू संरक्षण,जंगल(प्रकृति)संरक्षण,जन संरक्षण,संस्कार परिपोषण और शासकीय योजनाओं की समग्र जानकारी सहित शासकीय उपक्रमों का संरक्षण इन विषयों पर प्रकाश डाला।
मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने अपने प्रेरक और प्रखर उद्बोधन में कहा कि हमारा भारतवर्ष कृषि प्रधान.देश है। हमारी भारतीय संस्कृति को ऋषि प्रधान संस्कृति माना गया है। प्राचीन भारत के हमारे ऋषि- मुनिगण उस काल के वैज्ञानिक कहे गये हैं उन्होंने हमें जीवन जीने की एक स्वस्थ पद्धति दी है। प्रकारान्तर से हम उसे ही जीवन पद्धति,जीवन मूल्य और स्वस्थ जीवन जीने की अनुपम शैली मानते आये हैं। गोपालन भारतवर्ष की पारम्परिक अभिरुचि रही है जिसके कारण हमारी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था सदैव सुदृढ़ रही है। एक ओर भारतीय जनमानस गोपालन ,गोभक्ति ,गोसेवा के.लिये प्रतिबद्ध था तो कृषि के क्षेत्र में गोवंश का कृषि के साथ नियोजन करता था। हमारे खेतों स्वस्थ अन्न,स्वस्थ कृषिक उपज,जैविक अनाज,जैविक,फल,जैविक साक-सब्जी होती थी।आज हमारी प्रयोग धर्मिता ने हमें विषाक्त अन्न, विषाक्त साग-सब्जी और विषाक्त फलों के सेवन का अभ्यासी बना दिया इस कारण अनेक बीमारियों ने हमें घेर लिया। हम आज पुन: जैविक कृषि का आग्रह सर्वत्र कर रहे हैं।

गोआधारित कृषि व पञ्चगव्य चिकित्सा से ग्रामीण क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ किया सकता है-स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने गोशालायें तो बना दी परन्तु जनभागीदारी और जन सहयोग के बिना गोशालाओं का सफल सञ्चालन नहीं हो सकता। गोपालक, किसान और गो सेवकों ने गायों (गोवंश)की उपेक्षा करना आरम्भ कर दिया है।गोवंश सडक़ों पर अनाथ,निराश्रित और बेसहारा होकर इतस्तत: भटक रहा है,वह दुर्घटना का शिकार हो रहा है। ऐसे में गोशालायें समय की अनिवार्य आवश्यकता हो गईं हैं। सरकार गोशालाओं में रह रही गायों के लिये प्रतिदिन प्रति गोवंश 20रुपये की राशि चारा-भूसा अनुदान दे रही है इसमें आमनागरिक भी गोग्रास के रूप में कम से कम 10रुपया अवश्य दें। शासन-प्रशासन और जन सहयोग के आधार पर ही हम गोपालन को बढ़ावा दे सकेंगे।गोशालायें दूध की अपेक्षा गोबर और गोमूत्र पर आधारित “गो उत्पादों”के सहारे आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनायी जा सकती हैं। सरकार अपने हिस्से का काम कर रही है, वह अपने संकल्प पर प्रतिबद्ध है किन्तु जन सहयोग की अपेक्षा है। किसानों की फसल सुरक्षा और गोवंश के संरक्षण का एक रोडमेप (कार्ययोजना)शासन ने बनाया है। हम उस पर आधारित कार्य कर रहे हैं। गोवंश जनता का है इसलिये आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी से पीछे न हटे ,हम सभी का यह संयुक्त प्रयास हो। प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण हमारी प्राथमिकता हो। पञ्चगव्य चिकित्सा भारत के स्वास्थ्य विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण विधा है।प्रत्येक ग्रामीण भाई/बहिन को इसका बोध होना चाहिये।गोशालाओं के माध्यम से हम इस दिशा में युगानुकूल सम सामयिक,नवाचार विधि से क्रमश: आगे बढ़ रहे हैं। गोवंश संरक्षण हेतु मध्यप्रदेश ही सर्वाधिक अनुकूल परिक्षेत्र है। हम भविष्य में गो आधारित, गो उत्पाद आधारित स्वर्णिम प्रदेश की अपने मुख्यमंत्रीजी की परिकल्पना को साकार होते देखना चाहते हैं। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में ग्रामीण बहनें, विभिन्न समाज सेवी संगठनों के प्रमुख,गोपालक गण उपस्थित रहे। एक पखवाड़े तक गाँवों में प्रभातफेरी, रामधुन करने वाले संगठन,समूह के प्रतिनिधियों का स्वागत-सम्मान स्वामी जी महाराज के हाथों किया गया।

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