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दो वर्ष चले दान की प्रक्रिया तो तीन वर्ष में गोशालायें स्वयं आत्मनिर्भर होंगी

जबलपुर। मध्यप्रदेश ही एक ऐसा प्रदेश है जहाँ भारतवर्ष का सर्वाधिक गोवंश है। इसलिए गोवंश आधारित उसके संरक्षण और संवर्द्धन की कार्ययोजना बनाकर उसके सफल क्रियान्वयन पर शासन/प्रशासन और प्रदेश के गोपाल,कृषक और मूकप्राणियों से प्रेम करने वालों को संयुक्त प्रयास करने होंगे। पशुधन संरक्षण एवं उनके जीवन की रक्षा हेतु अकेले शासन को ही नहीं आमजनों को भी शासन और प्रशासन का साथ देना होगा,सहयोग करना होगा। यह कहना है मध्यप्रदेश गोपालन एवं पशुधन संवर्द्धन बोर्ड की कार्य परिषद के अध्यक्ष महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि का। पिछले दिनों म.प्र. गोपालन एवं पशुधन संवर्द्धन बोर्ड की “समीक्षा बैठक” प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में मंंत्रालय में सम्पन्न हुई जिसमें प्रदेश की गोशालाओं में संरक्षित गोवंश के बेहतर रखर खाव और उनके चारे-भूसे,पशु आहार के लिये शासन द्वारा दी जाने वाली वित्तीय अनुदान राशि हेतु “रेव्हेन्यू जेनरेट” के उपायों पर “गोसंवर्द्धन बोर्ड”के सदस्य “शासकीय विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों”के मध्य विचार विमर्श में यह बात उभरकर सामने आयी कि गो -ग्रास के निमित्त आम नागरिकों से भी धन एकत्रित किया जाना चाहिए। हम इसे “उपकर” (सेस) के रूप में ले सकते हैं। अन्ततः जो गोवंश प्रदेश की शासकीय या अशासकीय गोशालाओं संरक्षित है वह आमजनों का ही है, जिन्होंने उन्हें “अनुपयोगी और अनार्थिक “मानकर बेसहारा व निराश्रित छोड़ दिया है।सरकार गोवंश के लिये अपने हिस्से का काम तो कर सकती है किन्तु गोशालाओं का संचालन जनंता को ही करना चाहिये। इस दृष्टि से जनभागीदारी और जन सहयोग का आह्वान किया जाना चाहिए। गो ग्रास निकालने की हमारी भारतीय परम्परा का आग्रह प्रदेश के संतों द्वारा किया जाना चाहिए। जो बड़ी सहजता से होगा।अन्यथा शासन टैक्स के रूप में यह संगृहीत कर सकती है। स्वामी अखिलेश्वरानंद का इस पर स्पष्ट कथन है ,आमनागरिकों से “गो -ग्रास”का आग्रह पूर्वक सेस के रूप में धन लेना चाहिये। इस सम्बंध में “म.प्र. गो संवर्द्धन बोर्ड”ने अपनी वेवसाइट में एक पोर्टल भी जारी किया है। उसके माध्यम से भी दानदाताओं, चेरिटेबल ट्रस्टों, उद्योग जगत्, कार्पोरेट घरानों, बड़े समृद्ध व्यापारियों से अपील पूर्वक धन एकत्रित किया जाना चाहिए। शासकीय कर्मचारियों से भी आग्रह किया जाना चाहिये। वर्ष में एक दिन अपने वेतन की एक दिन की राशि “गोपाष्टमीके दिन”गोग्रास हेतु गोशालाओं को दान करें हमारे जनप्रतिनिधियों को भी अपनी लोकोपकारक निधि से गोशालाओं को धन देने का आग्रह करना चाहिये।यह दान की प्रक्रिया हमें केवल दो वर्ष कड़ाई के साथ तथा विनम्र आग्रह पूर्वक अपनाना चाहिये। तीन वर्ष में तो गोशालायें स्वयं आत्मनिर्भर होंगी एवं स्वावलम्बन की राह पर आ जायेंगी।

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