क्रेडिट कार्ड ले लो.. क्रेडिट कार्ड.. फ्री-फ्री.. एकदम फ्री..!

सरकारी और निजी बैंकों में मची होड़, एक से पल्ला झाड़ो तो दूसरा तैयार
जबलपुर। अगर आपकी रैपुटेशन अच्छी है और सिविल स्कोर बढिय़ा है तो आपको देने के लिए कंपनियों के पास ऑफर्स की झड़ी है। लेकिन यह ऑफर्स भी तभी तक हैं, जब तक आप उनका ऑफर लपक नहीं लेते। चिकिनी-चुपड़ी बातों में आकर आपने लोन या के्रेडिट कार्ड लिया नहीं कि आपकी स्थिति भी हम आपके हैं कौन वाली हो जाएगी। यानि सौ की एक बात यह है कि आपको ऑफर कुछ बताया जाएगा और निकलेगा कुछ। अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए बैंकों या फाइनेंस कंपनी के एजेंट आपको फंसाएंगे, किसी भी तरह कन्वेंस करेंगे, लेकिन आप एक बार फंसे तो फंसे। फिर आपकी सुध लेने वाला कोई नहीं मिलेगा। दरअसल निजी-प्राइवेट बैंक या फाइनेंस कंपनियां ज्यादा से ज्यादा कस्टमर बनाने की अंधी होड़ में लगी हुई हैं। ऐसे में कस्टमर गया तेल लेने। किसी क्रेडिट कार्ड को फ्री में देने का वादा होता है, लेकिन असल में होता कुछ और है। कभी नॉमिनल चार्ज की बात कहते हैं, तो पता चला कि अरे.. इसमें तो दोगुना-तीन गुना चुकाना है। ऐसे में अगर आदमी ने मन बना लिया तो समझो उसकी जेब कटना तय है।
लोन में ऑफर्स की भी भरमार
अगर आपने एक बार लोन लिया और समय पर चुका भी दिया, तो समझो कि आपकी मुसीबत बढ़ गई। कई फायनेंस कंपनियां हैं, जो आपके पीछे पड़ जाएंगी। लोन देते समय नाममात्र ब्याज का दावा किया जाता है, लेकिन जब किस्त शुरू हुईं तो समझो यही प्राइवेट बैंक किसी सूदखोर की तरह ब्याज वसूलती हैं।
सिविल स्कोर चेक करना मतलब मुसीबत मोल लेना
पैसा बाजार जैसी कुछ साइट हैं, जिनमें सिविल स्कोर चेक करने के लिए पेन कार्ड, इन्कम और कई जानकारियां ले ली जाती हैं। फिर अगर हर महीने सिविल स्कोर चेक किया और गलती से इधर-उधर क्लिक किया तो समझो क्रेडिट कार्ड से लेकर लोन देने वाली कंपनियां आपके पीछे पड़ जाएंगी। हेल्थ इंश्योरेंस से लेकर पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड और अन्य ऑपर्स रहते हैं, लेकिन ये भी जेब काटने वाले ही होते हैं।
हां बोलो तो सारी फार्मेलिटी मिनटों में
क्रेडिट कार्ड के लिए प्राइवेट से लेकर सरकारी बैंकों तक बड़ा कांपटीशन चल रहा है। लगातार फोन आते हैं और अगर किसी एक के चक्कर में फंसे तो समझो सारी फार्मेलिटी मिनटों में हो जाती है। रिस्क यह रहता है कि इन रिप्रेंजेटेटिव से ओटीपी से लेकर कई जानकारी शेयर करनी होती है।
काम हो गया तो पहचानते नहीं..
सबसे बड़े सरकारी बैंक से लेकर प्राइवेट बैंक तक एजेंटों को अलग-अलग टास्क दिया जाता है। यानि कि किसी का काम सिर्फ फार्मेलिटी पूरा करना होता है। एक बार फार्मेलिटी पूरी हुई, तो ये लोग अपने ग्राहकों को पहचानते तक नहीं हैं। बताया जाता है कि 499 एक बार देना है, लेकिन बाद में पता चलता है कि ये दोगुनी-तिगुनी से ज्यादा है। ऐसे में ऑनलाइन कस्टमर केयर नंबर ढूंढना और फोन करना जोखिम भरा हो सकता है। ऐसे में जो है उसी में अपनी भलाई समझना ही समझदारी है।

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