Homeमध्यप्रदेशकंकाली माई शयन मुद्रा में विराजमान,भक्तों की लगी भीड़।

कंकाली माई शयन मुद्रा में विराजमान,भक्तों की लगी भीड़।

दमोह बांदकपुर मार्ग पर चेनपुरा चौराहा के पास जिले भर में प्रसिद्ध कंकाली माता का मंदिर है। यहां पर कंकाली माई शयन मुद्रा में विराजमान हैं। माता की मनमोहक प्रतिमा देखते ही बनती है। मंदिर परिसर में अन्य मंदिर भी बने हुए हैं। जिनमें शारदा देवी मंदिर, कैलादेवी, मां हरसिद्धी, नर्मदा माता, शनिदेव व हनुमान मंदिर भी हैं।

कंकाली माई की प्रतिमा पहले असाटी वार्ड एक स्थित वरमदेव के पास विराजमान थीं। बाद में 1990 में चेनपुरा में पान बरेजों के पास माता का भव्य मंदिर बनवाया गया। मां कंकाली को मंगलागौरी का रूप माना गया है, यही कारण है कि यहां पर हर मंगलवार को भक्तों की भारी भीड़ रहती है। दोनों नवरात्र पर मेला भी भरता है। यहां पर दमोह के अलावा जबलपुर, कटनी व अहमदाबाद के लोग भी माता के दरबार में आते हैं।

विश्वपोषणी रूप में है मां की प्रतिमा

मां कंकाली शयन मुद्रा में विराजमान हैं, जो अपने नवजात बालक बटुक भैरव को स्तनपान करा रहीं हैं। साथ ही उनकी सेविका माता की सेवा कर रहीं है। माता कंकाली को महाकाली, महालक्ष्मी व महा सरस्वती का रूप भी माना गया है। पुजारी भरत चौरसिया ने बताया कि माता का नाम कंकाली इसलिए है, क्योंकि पूरे संसार के सभी जीव एक कंकाल के रूप में ही जीवित हैं। हमारा शरीर भी हडि्डयों कंकाल का बना हुआ है।

यदि इसमें जीव न हो तो यह कोई काम का नहीं। माता कंकाली इसी कंकाल में जीव डालती हैं जिससे प्राणी को जीवन मिलता है और वह चलता फिरता है। जिस तरह बच्चा होने पर घर में दस दिनों तक शोर हो जाती है, उसी तरह बटुक भैरव ने जब माता कंकाली के गर्भ से जन्म लिया और स्तनपान किया, मां शयन मुद्रा में लेटी हैं।

इसका आशय यही है कि माता कंकाली अपने संसार रूपी सभी बालकों को स्तनपान करा रहीं हैं, इसलिए माता कंकाली को विश्वपोषणी भी कहा गया है। सच्चे मन से मां की पूजा करने से सभी की इच्छाएं पूर्ण होती हैं। मातारानी के आर्शीवाद से अनेक निसंतान दंपत्ति को संतान की प्राप्ति हुई तो कई लोग गंभीर बीमारियों से ठीक हो गए।

ऐसा है मंदिर का इतिहास

मंदिर के पुजारी भरत चौरसिया ने बताया कि उनके उपर बचपन से ही मां की कृपा है। जब वह कक्षा पांचवीं में पढ़ते थे, उसी समय स्वप्न में माता ने दर्शन दिए और कहा कि मेरा मंदिर बनवाओ। सुबह होने पर यह बात उन्होंने अपने परिजनों को बताई। तब उन्होंने मां की इच्छा को ध्यान में रखकर मंदिर बनवाने की सहमति दी। लेकिन समस्या यह थी कि स्वप्न में जिन माता ने दर्शन दिए थे, वैसी प्रतिमा जिले में और कहीं नहीं थी।

जिसके बाद उन्होंने स्वयं ही एक कागज पर स्वप्न में दिखने वाली माता की प्रतिमा का चित्र बनाया। उस प्रतिमा को देखने के बाद पता चला कि ऐसी प्रतिमा पन्ना जिले के कुंआताल बनोली में विराजमान हैं। जब सभी लोग बनोली गए तो वहां के मंदिर में विराजमान प्रतिमा वहीं थीं, जो स्वप्न में दिखीं थीं। इसके बाद चित्रकूट के मूर्तिकार आरएस सिन्हा से वैसी मूर्ति बनवाई गई।

ये भी पढ़ें :- 

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments