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श्री राम मंदिर : मुगल, ब्रिटिश और आजाद भारत के बाद आया वो अविस्मरणीय पल

नई दिल्ली। श्रीराम मंदिर के लिए कई पीढिय़ों ने अपनी कुर्बानियां दीं। कईयों ने इस सपने को साकार होने का इंतजार अपने आखिरी वक्त तक किया। लेकिन रामलला को विराजमान करने के लिए 5 दशक लग गए। आईए आपको बताते हैं कि लगभग 500 सालों में कब क्या हुआ।
-1526 में बाबर इब्राहिम लोदी से जंग लडऩे भारत आया था। दो साल बाद 1528 में बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में मंदिर को तोप से उड़ाकर मस्जिद बनवाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रंथ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
-ब्रिटिश इतिहासकारों का मानना है कि 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद पर जमा होकर कुछ सौ मीटर दूर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े का प्रयास किया। इस ख़ूनी संघर्ष में हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से खदेड़ दिया, जो बाबरी मस्जिद परिसर में जा छिपे। इस दौरान हुए खूनी संघर्ष में कई लोग मारे गए।
-1857 में ब्रिटिश क़ानून, शासन और न्याय व्यवस्था लागू हुई। इसी दरम्यान हिंदुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से पर क़ब्ज़ा करके चबूतरा बना लिया और भजन-पूजा शुरू कर दिया।
-1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अंदर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
-1934 में बकऱीद के दिन पास के एक गाँव में गोहत्या को लेकर दंगा हुआ जिसमें बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचा, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसकी मरम्मत करवा दी।
-1936 में मुसलमानों के दो समुदायों शिया और सुन्नी के बीच इस बात पर क़ानूनी विवाद उठ गया कि मस्जिद किसकी है। वक्फ़ कमिश्नर ने इस पर जाँच बैठाई। -8 फऱवरी 1941 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि मस्जिद की स्थापना करने वाला बादशाह सुन्नी था और उसके इमाम और नमाज़ पढऩे वाले सुन्नी हैं, इसलिए यह सुन्नी मस्जिद हुई।
-जुलाई 1949 में बाबा राघव दास की जीत से मंदिर समर्थकों के हौसले बुलंद हुए और उन्होंने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर फिर से मंदिर निर्माण की अनुमति माँगी।
-22-23 दिसंबर 1949 की रात अभय रामदास और उनके साथियों ने दीवार फाँदकर राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर रख दीं और यह प्रचारित किया गया कि भगवान राम ने वहाँ प्रकट होकर अपने जन्मस्थान पर वापस क़ब्ज़ा प्राप्त कर लिया है।
-8 अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में राम मंदिर निर्माण के लिए एक विशाल धर्म संसद का भी आयोजन किया गया। काशी और मथुरा में स्थानीय समझौते से मस्जिद से सटकर मंदिर बन चुके हैं, इसलिए पहले अयोध्या पर फ़ोकस करने का निर्णय किया गया। संघ परिवार ने आंदोलन छेडऩे की रणनीति बनाई।
-1986 में विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद का ताला खोलने के लिए फिर आंदोलन तेज़ किया और चेतावनी दी कि महाशिवरात्रि 6 मार्च 1986 तक ताला न खुला तो ज़बरन ताला तोड़ देंगे।
-माना जाता है कि इसी दबाव में आकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनके साथियों ने फ़ैज़ाबाद जि़ला अदालत में वक़ील उमेश चंद्र पांडेय से ताला खुलवाने की अर्जऱ्ी डलवाई।
-जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस कप्तान ने जि़ला जज की अदालत में उपस्थित होकर कहा कि ताला खुलने से शांति व्यवस्था क़ायम रखने में कोई परेशानी नहीं होगी। इस बयान को आधार बनाकर जि़ला जज केएम पांडेय ने ताला खोलने का आदेश कर दिया.
-भाजपा ने 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में प्रस्ताव पास किया कि सरकार समझौते या संसद में क़ानून बनाकर राम जन्मस्थान हिंदुओं को सौंप दे।
– 25 सितंबर 1990 को भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ मंदिर से अयोध्या की रथयात्रा पर निकले। देश में कई जगह दंगे-फ़साद हुए। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को बिहार में ही गिरफ़्तार करके रथयात्रा रोक दी। नाराज भाजपा ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया और जनता दल सरकार गिर गई।
-तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की तमाम पाबंदियों के बावजूद 30 अक्टूबर को लाखों कार सेवक अयोध्या पहुँचे। लाठी गोली के बावजूद कुछ कारसेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ गए। लेकिन अंत में पुलिस भारी पड़ी। प्रशासन ने कारसेवकों पर गोली चलवा दी जिसमें 16 करसेवक मारे गए।
-दिसंबर 1992 में फिर कारसेवा का ऐलान हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पुलिस को बल प्रयोग न करने की हिदायत दी।
-6 दिसंबर 1992 को आडवाणी, जोशी और सिंघल जैसे शीर्ष नेताओं, सुप्रीम कोर्ट के ऑब्ज़र्वर जि़ला जज तेजशंकर और पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में लाखों कारसेवकों ने मस्जिद के गुंबदों को तोडकऱ अस्थायी मंदिर बना दिया। पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में लाखों कारसेवकों ने मलवे के ऊपर एक अस्थायी मंदिर बना दिया.
-जनवरी 1993 में केंद्र सरकार ने मसले के स्थायी समाधान के लिए संसद से क़ानून बनाकर विवादित परिसर और आसपास की लगभग 67 एकड़ ज़मीन को अधिग्रहित कर लिया.
-1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी।
-2009 में लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 68 लोगों पर कार्रवाई की सिफारिश की। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे बड़े भाजपा नेताओं के नाम थे।
– 30 सितंबर 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया गया। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से इंकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
-2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
-सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी।
-सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू होगी।
-2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
-जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच बनाई।
-6 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की।
-16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी हुई।
-9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना और राममंदिर का मार्ग प्रशस्त हो गया।
-5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन किया। जल्द ही रामभक्त रामलला के दर्शन कर सकेंगे।

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