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देशद्रोह कानून नहीं हटेगा, विधि आयोग ने लगाई मुहर

  • देशद्रोह कानून नहीं हटेगा,विधि आयोग ने लगाई मुहर
  • आईपीसी की धारा 124 ए को औपनिवेशिक बताने वालों को करारा झटका

नई दिल्ली। विभिन्न देशों की तरह भारत से भी राजद्रोह कानून को समाप्त किए जाने की कवायद के बीच भारत के विधि आयोग ने कानून मंत्रालय को इसे लेकर बडी बात कही है और इसमें कई और सिफारिशें की हैं। आयोग ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को शासन व्यवस्था चलाने के लिए बेहद ही जरूरी माना है। इस धारा को समाप्त किए जाने को लेकर देश में कई बार बहस हो चुकी है। विधि आयोग ने इसे ‘आंतरिक सुरक्षा खतरों’ और देश के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिहाज से जरूरी बताया है, हालांकि, प्रावधानों में कुछ संशोधन पेश किए जा सकते हैं.विधि आयोग की यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब पूरे विश्व में इस तरह के कानूनों को हटाया जा रहा है।

क्या है सिफारिशें,निशाने पर सोशल मीडिया

कानून मंत्रालय को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में विधि आयोग ने प्रारंभिक जांच अनिवार्य होने, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और सजा में संशोधन समेत प्रावधान में संशोधन के संबंध में कुछ सिफारिशें भी की हैं. रिपोर्ट में भारत की आंतरिक सुरक्षा को देखते हुए कहा गया है कि देश के नागरिकों की सुरक्षा तभी संभव है जब राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित हो। रिपोर्ट में सोशल मीडिया को निशाने पर लिया गया है। कहा गया है कि इस समय सोशल मीडिया भारत कें कटटरता को फैलाने भारत सरकार को नफरत के जहर की आगोश में लाने के लिए अधिकाधिक प्रसार कर रहा है,जो देश के लिए बडा खतरा है।इन सब की वजह से धारा 124ए का होना और भी जरूरी है।

संवैधानिक क्यों है ये कानून

संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत राजद्रोह को ‘उचित प्रतिबंध’ (रीजनेबल रिस्ट्रिक्शंस) बताते हुए विधि आयोग ने कहा कि देश की शीर्ष अदालत ने इस पर प्रतिबंध लगाने की अपेक्षाओं को देखते हुए धारा 124 ए की संवैधानिकता पर व्यवस्था दी है कि वह एक ‘रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन’ हैं। रिपोर्ट में विशेषतौर पर उस भ्रांति को गलत बताया गया है जिसमें कहा जाता रहा है कि राजद्रोह का कानून औपनिवेशिक युग का है। आयोग ने इस पर प्रति प्रश्न किया है कि फिर तो पूरा ढांचा ही औपनिवेशिक विरासत का माना जाना जा सकता है। तथ्य केवल यह है कि यह मूलतरू औपनिवेशिक है, जो कि इसे वास्तव में खत्म किए जाने के लिए मान्य नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनाने की बात

विधि आयोग ने की गई सिफारिशों के तहत कहा कि राजद्रोह कानून को सही से समझने व इसे इस्तेमाल में लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के केदारनाथ फैसले को अमल में लाया जा सकता है। जिसमें कई बातें आसान तरीके समझाई गई हैं। इसमें राजद्रोह के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश से पहले पुलिस अधिकारी सबूत के लिए केंद्र द्वारा मॉडल दिशानिर्देश को अपना सकते हैं।

बता दें कि संविधान की धारा 124 ए को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी. केंद्र ने तब भरोसा जताया था कि वह 124 ए के बारे में अध्ययन कर रहा है। इसी के तहत 11 मई, 2022 को पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्यों की सरकारों को धारा 124ए से जुड़ी सभी जांचों को रद्द करते वक्त कोई भी एफआईआर दर्ज करने और कठोर कदम उठाने से बचने का निर्देश दिया था. इसके अलावा, इसने यह भी निर्देश दिया कि सभी लंबित मुकदमों, अपीलों और कार्यवाहियों को आस्थगित रखा जाए।

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