ओबीसी आरक्षण व पंचायत चुनाव को राजनीति का दौर जारी

भोपाल। पंचायत चुनाव टल गए हैं लेकिन राजनीति जारी है। ओबीसी को अपने-अपने पाले में लाने की कवायद भाजपा-कांग्रेस में अब भी चल रही है। प्रभारी चुनाव आयोग कार्य मप्र कांग्रेस कमेटी के महामंत्री जेपी धनोपिया ने कहा कि पंचायत एवं नगरीय चुनाव के समवंध में पूर्व से ही यह नियम है कि हर पाँच साल में चुनाव के पूर्व परिसीमन एवं आरक्षण कराया जायेगा। तब अब 2022 में चुनाव कराने के सम्बंध में चार दिन बाद पुन: अध्यादेश जारी कराने की आवश्यकता क्या थी। ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण के संबंध सोचना चाहिये न कि आम जनता को गुमराह करने के लिये अनावश्यक अध्यादेश जारी कराने के। यह अध्यादेश पंचायत चुनावों को लम्बे समय के लिये टालने के लिये लाया गया है।
वहीं कांग्रेस के इस आरोप पर गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस ने जानबूझकर पिछड़ा वर्ग को पंचायत चुनाव में भागीदारी करने से रोका। हार के डर से कांग्रेस कोर्ट में पहुंची जिसके कारण चुनाव प्रक्रिया से ओबीसी वर्ग को बाहर होना पड़ा। भाजपा सरकार सभी वर्गों को साथ में लेकर पंचायत चुनाव कराने के पक्ष में थी। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को पता है कि ओबीसी वर्ग चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ऐसे में सबको यही फिक्र है कि ओबीसी वर्ग के वोटर उसके पाले में बने रहें। कांग्रेस की सरकार ने ही ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। भाजपा ने अध्यादेश लाकर चुनाव में ओबीसी को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया, लेकिन रोटेशन को लेकर कांग्रेस नेता व वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा पहले हाईकोर्ट गए और फिर सुप्रीम कोर्ट चले गए। इस वजह से पंचायत चुनाव पर संकट आ गए और चुनाव टालने पड़े।

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