भगवान बिरसा मुंडा थे अंग्रेजों के सबसे बड़े दुश्मन, अंग्रेजों का खजाना लूटकर गरीबों में बांट देते थे टंट्या भील

जबलपुर। झारखंड के सपूत बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में हुआ था। बिरसा मुंडा ने शुरुआती पढ़ाई के दौरान ही यह समझ लिया था कि अंग्रेज यहां रहने वालों का शोषण करते हैं। 1894 में छोटा नागपुर इलाके में मानसून की बारिश नहीं हुई। इसकी वजह से भारी अकाल पड़ा और महामारी फैली, तब बिरसा ने सामने आकर अपने समाज के लोगों की बहुत सेवा की। उन्होंने आदिवासियों के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण अंधविश्वास और अशिक्षा को माना। इसलिए बिरसा ने मुंडाओं के बीच फैली झाड़-फूंक आदि को बेकार बताना शुरू किया। उन्होंने सफाई से रहने पर जोर दिया। उन्होंने शिक्षा के महत्व को बताते हुए लोगों से कहा कि अशिक्षित इंसान ही अक्सर शोषण का शिकार होता है। अपने समाज के लोगों में राजनीतिक चेतना जगाने का काम भी किया। इस काम ने उन्हें जीते ही महापुरुष का दर्जा दे दिया। उस दौर में लोग उन्हें धरती बाबा कहकर पुकारने लगे। बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ एक सशक्त आदिवासी आंदोलन चलाया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1 अक्टूबर 1894 को विद्रोह कर लगान माफी के लिए भी आंदोलन चलाया। इससे उस इलाके का काम पूरी तरह ठप हो गया। अगले ही साल इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 2 साल की सजा हुई। जेल से छूटने के बाद बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का आह्वान किया, जो 1900 तक चलता रहा। बिरसा मुंडा को बड़ा खतरा मानते हुए अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया और कठोर यातनाएं देने के साथ स्लो पॉइजन दिया। इस वजह से वह 9 जून 1900 को शहीद हो गए। झारखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत कई प्रदेशों में लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं।
इसी तरह प्रसिद्ध क्रांतिकारी टंट्या भील ने भी अंग्रेजों को खूब छकाया और कई सालों तक उन्हें चैन की सांस नहीं लेने दी। टंट्या भील अंग्रेजों का खजाना लूटकर उसे गरीबों में बांट देते थे। इस तरह इस महान क्रांतिकारी ने अंग्रेजों को खूब परेशान किया। आखिरकार 1874 को अंग्रेजों ने टंट्या भील को पकडऩे में सफलता हासिल की और 19 अक्टूबर 1889 को उन्हें मृत्युदंड दे दिया। ऐसे ही देशभर के साथ आदिवासी समाज के कई क्रांतिकारी हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपने प्राण हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिए। लेकिन आजादी के 75 साल बाद इन वीरों को भुला दिया गया। इतने साल सत्ता में रही सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने कभी इन्हें वो स्थान नहीं दिया, जो इन्हें मिलना चाहिए था। अब इनके योगदान को नई पीढ़ी जान रही है और उन्हें नमन कर रही है। ऐसे में आजादी का अमृत महोत्सव में देश के इन वीर सपूतों को नमन किया जा रहा है, जो हम सबके लिए गौरव की बात है।

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