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1857 की क्रांति के जननायक राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह, जो तोप से भी नहीं डरे

जबलपुर। आज से करीब 163 साल पहले 1857 की क्रांति के जननायक राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान युगों-युगों तक याद रखा जाएगा। आजादी के इन महानायकों ने अपना सिंहासन और प्राणों की आहुति देकर देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। वीर राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह गढ़ा मंडला और जबलपुर के गोंड राजवंश के वंशज थे। प्रतापी राजा संग्राम शाह के राजवंश की कई पीढिय़ों ने देश के लिये अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। राजा संग्राम शाह के बड़े पुत्र दलपत शाह थे, जिनकी पत्नी रानी दुर्गावती ने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की और अपने पुत्र वीरनारायण के साथ मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए प्राण न्यौछावर कर दिए।
मुगलों और मराठाओं का भी रहा शासन
मुगलों से हुए युद्ध के बाद गौड़ वंश का राज्य गढ़ा मंडला बादशाह अकबर के कब्जे में आ गया। बादशाह अकबर ने अपने अधीन शासन चलाने के लिये राजा दलपत शाह के छोटे भाई चंदा नरेश, चंद्र शाह को राजा बनाया। उन्हीं की पीढ़ी में वीर शंकर शाह ने जन्म लिया। बताते हैं कि राजा शंकर शाह बचपन से ही वीर और स्वाभिमानी थे। उनके पिता राजा सुमेद शाह के समय राज्य मराठाओं के अधिपत्य में आ गया था। मराठाओं के अधीन सुमेद शाह शासन चला रहे थे। 1818 आते-आते अंग्रेजों ने गोंडवाना राज्य पर हमला बोल दिया। मराठाओं की सेना ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई और इस तरह गोंडवाना राज्य में अंग्रेजों की सत्ता स्थापित हो गई। अंग्रेजों ने जबलपुर में छावनी बनाई और साथ ही मंडला समेत गोंडवाना राज्य पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली।
अधीन रहकर भी नहीं छोड़ी आजादी की आस
इतिहासकारों का मानना है कि गोंडवाना राज्य अंग्रेजों के अधीन जरूर आ गया, लेकिन गोंड वंश के राजाओं ने आजादी की आस नहीं छोड़ी। जब राजा शंकर शाह राजा बने तो वे उनके वंश के पहले के राजाओं की तरह स्वतंत्र नहीं थे। उनके पास नाममात्र के गांवों की जागीरदारी ही बची थी। ब्रिटिश कानून के मुताबिक उन्हें अंग्रेजों से पेंशन मिला करती थी। लेकिन राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह का उनकी प्रजा के मन में बड़ा सम्मान था।
अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से आहत थे राजा शंकर शाह
अंग्रेज अपनी कुटिलता से कई राज्यों पर अधिकार जमा चुके थे। राजाओं को मात्र अंग्रेजी सत्ता का प्रतिनिधि बनाकर बैठा दिया जाता था। इस बीच 1842 में कई आदिवासी वीरों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका, लेकिन अंग्रेजी सत्ता ने उसे बलपूर्वक कुचल दिया। अंग्रेजों के नरसंहार और कू्ररता से राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह बेहद आहत थे। उन्होंने संकल्प कर लिया कि अंग्रेजों को उनके राज्य से खदेडऩा है।
1857 मेंं सशस्त्र संघर्ष की थी योजना
अंग्रेज कई राज्यों में अपनी सत्ता स्थापित कर चुके थे। इसी बीच मेरठ की छावनी से १८५७ का बिगुल फूंका गया। सूअर की चर्बी से निर्मित कारतूस के कारण भारतीय सैनिकों में विद्रोह की चिंगारी भडक़ी। अमर शहीद मंगल पांडेय ने इसका नेतृत्व किया। देखते ही देखते पूरे भारत में १८५७ की क्रांति का असर दिखने लगा। गोंडवाना राज्य के राजा शंकर शाह ने मध्य भारत में विद्रोह की कमान संभाली। उन्होंने आसपास के जमींदारों और राजाओं को अपने पक्ष में किया। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह की योजना अंग्रेजी छावनी में आक्रमण करने की थी। आजादी की इस क्रांति में ब्रिटिश सत्ता के अधीन कई भारतीय सैनिक भी उनके साथ थे। लेकिन इसी बीच अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई। अंग्रेज अधिकारियों ने कुटिलता से एक साधु के भेष में गुप्तचर को राजा शंकर शाह के महल में भेजा और पूरा भेद पता करवा लिया। इस तरह क्रांति की योजना अंग्रेजों तक पहुंच गई। अंग्रेजों ने पूरी तैयारी के साथ 14 सितंबर 1857 की रात को राजा शंकर शाह के महल को घेर लिया। चूंकि राजा शंकर शाह पूरी तैयारी नहीं कर पाए थे, इसलिए उन्हें और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह और साथियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। महल की तलाशी में देशभक्ति से जुड़ा साहित्य, कविताएं और योजना की जानकारी अंग्रेजों के हाथ लग गई।
तोप के सामने भी नहीं डरे, न झुके
अंग्रेजों ने राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के खिलाफ देशद्रोह का मुकद्दमा चलाया। गोरों ने अपनी कुटिलता से उन्हें डिगाने का प्रयास किया, ईसाई धर्म अपनाने और अधीनता स्वीकार करने की पेशकश की, लेकिन दोनों अमर बलिदानी टस से मस न हुए। इस बीच देशभक्त सेनानियों ने उन्हें जेल से छुड़ाने का प्रयास भी किया, लेकिन असफल रहे। आखिरकार दोनों को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई। 18 सितंबर 1857 को जब उन्हें तोप के सामने खड़ा किया गया, तो राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह निडर खड़े रहे। अंग्रेजों ने उन्हें तोपों के मुंह से बाँध दिया, लेकिन दोनों सीना तानकर खड़े रहे और देवी मां से अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की कामना करते रहे। आखिरकार जैसे ही तोप में आग लगाई गई, तो तोप चलते ही राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के शरीर छत-विक्षत हो गये। किसी तरह उनके शरीर को एकत्र कर अंतिम संस्कार कराया गया। इस तरह दोनों बलिदानियों ने अपनी देशभक्ति और स्वाभिमान को आंच नहीं आने दी और हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।
163 साल बाद पूरा देश जानेगा अमर शहीदों का बलिदान
जबलपुर में 18 सितंबर को राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ के स्मृति दिवस को भव्य तरीके से मनाया जा रहा है। देश के गृहमंत्री खुद जबलपुर आकर अमर शहीदों को नमन करेंगे। उनके साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई मंत्री होंगे। सांसद राकेश सिंह की अगुवाई में 14 सितंबर से 18 सितंबर तक विविध आयोजन हो रहे हैं, जिनके माध्यम से १८५७ की क्रांति के जननायकों की स्मृति में सजीव झांकी, नाटक समेत अन्य आयोजन हो रहे हैं। सांसद राकेश सिंह का मानना है कि 163 साल बाद इन महानायकों का बलिदान पूरा देश जानेगा और उन्हें सदियों तक याद रखा जाएगा।

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