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गोवंश के लिये चारा-भूसा,पशु आहार, गोग्रास के लिए पोर्टल से कर सकेंगे ऑनलाइन पेमेंट

जबलपुर। मध्यप्रदेश गोसंवद्र्धन बोर्ड ने अपनी वेवसाइट में www.gopalanboard.mp.gov.in यह पोर्टल जारी किया है। जो भी गोभक्त गोवंश के लिये चारा-भूसा,पशु आहार हेतु गोग्रास के निमित्त आर्थिक सहयोग करना चाहें। उपर्युक्त लिंक पर जाकर विवरण प्राप्त कर इसके जरिये आनलाइन अपना सहयोग पहुँचा सकते हैं। इस माध्यम से दान की हुई राशि पर आयकर की छूट रहेगी। गोसंवद्र्धन बोर्ड की अपेक्षा न्यूनतम राशि 3650 रुपया है। अधिकतम आप जितनी देना चाहें दे सकते हैं। आप चाहें तो अपनी पसंद की गोशाला का नाम भी सूचित कर सकते हैं। ऐसी गोशाला गोसंवद्र्धन बोर्ड, भोपाल द्वारा पंजीकृत होना चाहिए। आप भी चाहें तो इस लिंक www.gopalanboard.mp.gov.in में क्लिक कर सहयोग कर सकते हैं।
अच्छी पहल का अच्छा परिणाम
हमारे देश में धर्म आधारित जितनी भी व्यवस्थायें प्राचीन भारत के ऋषि-मुनि-महर्षियों के द्वारा बनाई गयी हैं। उनमें कहीं भी अवैज्ञानिकता नहीं पायी गई,यही कारण है कि हिन्दुत्त्व आधारित भारतीय जीवन शैली को पूर्णत: वैज्ञानिक माना गया है। ज्ञान और विज्ञान का क्षेत्र बहुत व्यापक है;हम ज्ञान और विज्ञान को संकीर्ण दायरे में नहीं बल्कि उसकी व्यापकता के पैमाने के आधार पर ही उसे देखते हैं तभी तो विज्ञान आधारित अनुसंधान और शोध ने विज्ञान के दायरे को व्यापक बनाया है। विज्ञान और उसके शोध का अर्थ यह नहीं है कि जिसे हमने यांत्रिक प्रयोगशालाओं से अनुसंधानित करके पाया है या सिद्ध किया है वही विज्ञान सम्मत है बाकी सब अवैज्ञानिक है। विचार करें यांत्रिक प्रयोगशाला में आने के पूर्व शोधकर्ता वैज्ञानिक जिस प्रयोगशाला से होकर यहाँ पहुँचते हैं उस प्रयोग शाला नाम होता है बौद्धिक प्रयोग शाला, प्रत्येक शोधकर्ता(अनुसंधाता)को यहाँ से होकर ही याँत्रिक प्रयोग शाला में आना होता है। बौद्धिक प्रयोग शाला में जो उपकरण होते हैं वे अत्यंत सूक्ष्म होते हैं उसी उपकरण को हम “मन”कहते हैं जो अशीरी होते हुये भी किसी शरीर में अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं। इसी कारण विज्ञान का आधारभूत सहायक और अनुसंधान का उत्प्रेरक सूक्ष्म यंत्र यही मन होता है जिसके आश्रय बिना विज्ञान की कोई भी विधा सफलता नहीं पा सकती अत: विज्ञान के क्षेत्र में मनोयोग के कारण विज्ञान का एक अनिवार्य पक्ष मनोविज्ञान है। मनुष्य की प्रत्येक चेष्टा,क्रिया और पुरुषार्थ में मनोविज्ञान अन्तर्निहित होने के कारण विज्ञान में एक चमत्कार प्रकट होता है। इस कारण विज्ञान को अभिशाप न मानकर उसे वरदान माना गया है। वर्तमान समय में भौतिक विज्ञान के आधार याँत्रिक प्रयोग शालाओं में जो भौतिक अनुसंधान के परिणाम उपस्थित हो रहे हैं उन्हें वरदान की अपेक्षा अभिशाप माना जाता है। विज्ञान विकास का कारण बनें वह विनाश का कारण न बनने पाये, इस दृष्टि से ही वैज्ञानिक अनुसंधान होने चाहिए। इस लिये भारतीय ऋषि-मुनियों ने अपने प्रत्येक चिंतन,वैचारिक सम्प्रेषण तथा अनुसंधानात्मक प्रयोग और उसके निष्कर्ष में धर्म का पुट दिया है क्योंकि धर्म- करुणा, मैत्री, दया, परोपकार, क्षमा, अपनत्व, संरक्षण और सहिष्णुता को प्रोत्साहित करता है। अत: भारतीय वैज्ञानिक अत्यंत उदारमना कहे गये हैं।

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