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1 और 2 नवंबर को भारतीय काल गणना व पंचांग के अनुसार गोवत्स द्वादशी का पर्व है, गोधूलि बेला का जानें महत्व

जबलपुर। आगामी 1 और 2 नवंबर 2021 को भारतीय काल गणना व पंचांग के अनुसार गोवत्स द्वादशी का पर्व है। इस दिन जंगल से घास चर कर अपने -अपने गाँव में लौटती (वापस आती) गायों के बछड़ों एवं बछडिय़ों का गोधूलि बेला में अर्थात् सायंकाल 4.30 बजे उनका पूजन किया जाता है। मध्यप्रदेश गोपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड की कार्य परिषद् के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि गोवत्स शब्द का अर्थ है गायों की संतान अर्थात् बछड़ा और बछड़ी। गाय का बछड़ा बड़ा होकर कृषि कार्य में सहायक होता है। वह मनुष्य के साथ कृषि कार्य में अपनी युवकोचित श्रम शक्ति का नियोजन करता है। गाय की वह नन्हीं पुत्री (बछिया) जो अभी दुधमुही है, बड़ी होकर जब माँ बनेगी तब वह जिस परिवार की घटक है उस परिवार को अपना दुग्ध पान करायेगी और मानव संतति को ुष्ट और बलिष्ठ बनायेगी। इसी भाव से वत्स द्वादशी को गो संतानों की पूजा होती है। यह भारतीय पर्व परम्परा का अत्यंत महत्त्वपूर्ण पर्व है।
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि गोधूलि बेला की संगति का तात्पर्य यह है कि-गाय के चतुष्पाद में तीर्थ निवास करते हैं, उसके पैरों के खुर से धरती से मिट्टी जो उखड़ती हुई धूल उड़ाती है वह परम पवित्र मानी गई है।इसी से सान्ध्य बेला को गोधूलि बेला कहा गया है। गाय अपने पैरों से जो धूलि हवा के आश्रय से उड़ाती है,वह धूलि भी वातावरण में शुद्धता प्रदान करती है।मन प्रसन्न होता। मनुष्य का प्रमुदित और प्रफुल्लित मन आनंद से परिपूर्ण हो जाता है। प्रात:काल का नदी स्नान और सायंकाल का गो धूलि स्नान दोनों ही क्रमश: तन और मन की पावनता के प्रतीक हैं। उन्होंने अपील की कि आयें हम और आप हम सभी अपने तीज त्यौहार के इस मनोविज्ञान को समझने का प्रयत्न करें। गाय को हमारे यहाँ धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष इन चतुर्विध पुरुषार्थ की जननी, उत्प्रेरिका माना गया है।

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