Homeताजा ख़बरवीर सावरकर : दोहरा आजीवन कारावास, कठोर नारकीय यातनाएं सहीं

वीर सावरकर : दोहरा आजीवन कारावास, कठोर नारकीय यातनाएं सहीं

नई दिल्ली। विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को हुआ था। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का श्रेय सावरकर को जाता है। 1904 में उन्होंने अभिनव भारत नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। 1 जुलाई 1909 को सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने विलियम हट कर्जन वायली को गोली मारकर हत्या कर दी। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रांतिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौल भेजने के जुर्म में फँसा दिया। 13 मई 1910 को पैरिस से लंदन पहुंचने पर वीर सावरकर को हत्या में सहयोग करने पर गिरफ्तार कर लिया गया। 8 जुलाई 1910 को जहाज से भारत ले जाते हुए वे सीवर होल के रास्ते समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग निकले, लेकिन उनके मित्र के समय पर न आने के कारण फिर गिरफ्तार कर लिए गए। 24 दिसंबर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। 31 जनवरी 1911 को उन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली व अनोखी सजा थी। 27 साल की उम्र में उन्हें 50 साल की सजा मिली थी।
नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए उन्हें 7 अप्रैल, 1911 को कालापानी की सजा पर सैल्युलर जेल भेजा गया। यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह जेल भारत से हजारों किलोमीटर दूर व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह जेल कालापानी के नाम से कुख्यात थी। कालापानी शब्द का अर्थ मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है, जहाँ से कोई वापस नहीं आता है। देशनिकाला दिए लोगों के लिए कालापानी का अर्थ बाकी बचे हुए जीवन के लिए कठोर और अमानवीय यातनाएं सहना था। कालापानी यानि स्वतंत्रता सेनानियों को कठारे यातनाओं और तकलीफ़ों का सामना करने के लिए जीवित नरक में भेजना था, जो मौत की सजा से भी बदतर था। वीर सावरकर को सैल्यूलर जेल की तीसरी मंजिल की छोटी-सी कोठरी में रखा गया था। कोठरी के कोने में घड़ा और लोहे का गिलास था। कैद में सावरकर के हाथों में हथकडिय़ां और पैरों में बेडिय़ां जकड़ी रहती थीं।

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