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नई दिल्ली। विनायक दामोदर सावरकर.. मां भारती के ऐसे सपूत हैं, जिन्होंने 20 साल तक कालापानी की सजा भुगती। बेड़ियों में जकड़े रहे, अंडानुमा सेल में बंद रहे और जब भारत आजाद हुए तो वे भी जेल से बाहर निकले। कांग्रेस की सरकारों ने भी उन्हें क्रांतिकारी माना। इंदिरा जी ने डाक टिकट जारी किए, लेकिन इसके बाद से हिंदुवादी रहे वीर सावरकर सियासत का शिकार हो गए। धीरे-धीरे वे हिंदुवादी संगठनों और आरएसएस, बीजेपी के हो गए और कांग्रेस ने उन्हें डरपोक बताना शुरू कर दिया। राहुल गांधी कई बार ये बात खुलकर बोल चुके हैं। इसके पीछे की सोच यह है कि वीर सावरकर के बहाने कांग्रेस की छवि उज्जवल की जाए और लोगों को बताया जाए कि देखो आरएसएस और उससे जुड़े लोगों ने देश की आजादी के लिए कुछ नहीं किया। वीर सावरकर ने भी अंग्रेजों से माफी मांगकर अपनी रिहाई करवाई। बहरहाल आज वीर सावकर की पुण्यतिथि है, आपको बताते हैं कि वीर सावरकर ने देश के लिए क्या किया..?
हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित किया
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को हुआ। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का श्रेय सावरकर को जाता है। 1904 में अभिनव भारत नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। 1 जुलाई 1909 को सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने विलियम हट कर्जन वायली को गोली मारकर हत्या कर दी। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रांतिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौल भेजने के जुर्म में फँसा दिया। 13 मई 1910 को पैरिस से लंदन पहुंचने पर वीर सावरकर को हत्या में सहयोग करने पर गिरफ्तार कर लिया गया। 8 जुलाई 1910 को जहाज से भारत ले जाते हुए वे सीवर होल के रास्ते समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग निकले, लेकिन उनके मित्र के समय पर न आने के कारण फिर गिरफ्तार कर लिए गए। 24 दिसंबर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। 31 जनवरी 1911 को उन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली व अनोखी सजा थी। 27 साल की उम्र में उन्हें 50 साल की सजा मिली थी।
कालापानी की सजा पर सैल्युलर जेल भेजा
नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के आरोप में उन्हें 7 अप्रैल, 1911 को कालापानी की सजा पर सैल्युलर जेल भेजा गया। यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह जेल भारत से हजारों किलोमीटर दूर व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह जेल कालापानी के नाम से कुख्यात थी। कालापानी शब्द का अर्थ मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है, जहाँ से कोई वापस नहीं आता है। देश निकाला दिए लोगों के लिए कालापानी का अर्थ बाकी बचे हुए जीवन के लिए कठोर और अमानवीय यातनाएं सहना था। कालापानी यानि स्वतंत्रता सेनानियों को कठारे यातनाओं और तकलीफ़ों का सामना करने के लिए जीवित नरक में भेजना था, जो मौत की सजा से भी बदतर था। वीर सावरकर को सैल्यूलर जेल की तीसरी मंजिल की छोटी-सी कोठरी में रखा गया था। कोठरी के कोने में घड़ा और लोहे का गिलास था। कैद में सावरकर के हाथों में हथकडिय़ां और पैरों में बेडिय़ां जकड़ी रहती थीं।
पाकिस्तान पर यह थी सोच, जो आज भी सही साबित हुई
सावरकर ने हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहते साफ कहा था कि कांग्रेस की नीति के कारण इस देश में हिंदू और मुसलमान दो अलग देश की तरह रह रहे हैं। अगर मुसलमानों को अलग देश मिलता है तो वह भारत के लिए स्थायी सिरदर्द होगा। सावरकर की यह सोच सही साबित हुई और पाकिस्तान हमारे लिए दशकों तक चुनौती रहा। पाकिस्तान से 3-3 युद्ध हुआ और दशकों तक आतंकवाद का दंश हमने झेला। अब भी गाहे-बगाहे पाकिस्तान हमें आंखें दिखाता रहता है। आतंकवाद का फन भले ही हमने कुचल दिया है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। इसी तरह आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर हमेशा सुलगता रहा, अलगाववाद का काला साया उस पर मंडराता रहा। जम्मू-कश्मीर की समस्या का हल भी हमारे लिए सिरदर्द बना रहा। दंगों का दंश भी अनेकों बार हमारे देश को झेलना पड़ा। केंद्र सरकार ने धारा 370 हटाकर कुछ हद तक जम्मू-कश्मीर की समस्या को सुलझा लिया है।
वीर सावरकर के माफीनामे का सच..
वीर सावरकर 4 जुलाई, 1911 से सैल्युलर जेल में बंद थे। इस दौरान उन्होंने पांच बार दया याचिका अंग्रेज सरकार को दी। सावरकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘जब-जब सरकार ने सहूलियत दी, तब-तब मैंने याचिका दायर की’। उन्होंने अपने छोटे भाई नारायण राव को जो पत्र लिखे, उनमें भी अपनी पिटिशन के बारे में लिखा है, कभी कुछ छुपाया नहीं। महात्मा गांधी ने भी 1920-21 में अपने समाचार पत्र ‘यंग इंडिया’ में वीर सावरकर के पक्ष में लेख लिखे थे। गांधी जी का भी विचार था कि सावरकर को चाहिए कि वे अपनी मुक्ति के लिए सरकार को याचिका भेजें। इसमें कुछ भी बुरा नहीं है, क्योंकि स्वतंत्रता व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है। दअरसल जिस माफीनामे के बारे में बताया जाता रहा है, वह सिर्फ़ एक सामान्य सी याचिका थी, जिसे फ़ाइल करना राजनीतिक कैदियों के लिए एक सामान्य कानूनी विधान था। 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून न तोडऩे और विद्रोह न करने की शर्त पर उनकी 21 मई, 1921 को रिहाई हो गई। सावरकर की सोच थी कि अगर वे जेल के बाहर रहेंगे तो वो जो करना चाहेंगे, वो कर सकेंगे, जो कि अंडमान निकोबार की जेल से संभव नहीं था।