- भोपाल के आरसीवीपी नरोन्हा प्रशासन अकादमी में वानिकी सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लिया भाग
- कहा-नदियों के बिना जीवन नहीं चल सकता, इसलिए हम नदियों को माता कहते हैं
भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजधानी भोपाल के आरसीवीपी नरोन्हा प्रशासन अकादमी में वानिकी सम्मेलन में सहभागिता की। उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले कहा कि एक ही चित तत्व हम सबमें है, एक ही चेतना हम सबमें अधिसूचित है। यही भारत की संस्कृति का सार है। गंगा, सिंधु, सरस्वती व यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, सरयू, महेन्द्रतनया चर्मण्यवती वेदिका। क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता जया गण्डकी पूर्णाः पूर्णजलैः समुद्रसहिताः कुर्वन्तु मे मंगलम्। नदियों के बिना जीवन नहीं चल सकता, इसलिए हम नदियों को माता कहते हैं। भारत ने हजारों साल पहले जो कहा, उसे आज दुनिया मान रही है। भारत ने कहा कि प्रकृति का दोहन करो, शोषण नहीं। इस अवसर पर वन मंत्री विजय शाह भी उपस्थित रहे। शिवराज ने कहा कि कोविड के कठिन काल में वन विभाग ने जनता को मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। आप लोगों के कारण ही आज जंगल हैं।
फल को तोड़ना दोहन है और पेड़ को काटना तो यह शोषण है
सीएम शिवराज ने कहा कि पेड़ों में लगे फल को तोड़ना, दोहन है और पेड़ को ही काट दो, तो यह शोषण है। यदि हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती को सुरक्षित रखना है, तो हमें वनों और वन्य प्राणियों की चिंता करनी होगी। भारत का दर्शन जियो और जीने दो का है। हमारे यहाँ पशु-पक्षियों में भी एक ही चेतना मानी गई है। इसलिए भारत में देवताओं के अवतार भी पशुओं के रूप में हुए हैं। हमारी सोच है कि वन प्राणियों के बिना धरती टिक नहीं सकती।
1400 वर्गकिमी सघन वन बढ़ाने पर दी बधाई
शिवराज ने कहा कि मैं वन विभाग को बधाई देता हूं कि उन्होंने लगभग 1400 वर्ग किमी सघन बढ़ाने का काम किया है। हमें पुराने वनों के संरक्षण के साथ नये वनों के विकास के लिए प्रयास करते रहना है। भगवान श्री कृष्ण ने प्रकृति पूजन का संदेश दिया। प्रकृति के बिना, पेड़ों के बिना, नदियों के बिना हमारा काम नहीं चल सकता। मैं प्रतिदिन पौधरोपण करता हूं और साथ अनेक लोग सहभागिता करते हैं। अभियान चलाकर हमने पौधरोपण के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया।
67 लाख से अधिक लोग पौधे लगा चुके
शिवराज ने बताया कि अंकुर अभियान से जुड़कर लगभग 67 लाख से अधिक लोग अब तक पौधे लगा चुके हैं। फॉरेस्ट की नौकरी का मतलब है आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित धरती बचाकर देना। यह बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। हमें वन बचाने हैं, वन्य प्राणी बचाने हैं और वनों से आजीविका के साधन पैदा करने हैं।