भोपाल। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भोपाल में अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में शिरकत की। भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में हो रहे 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में 15 देशों के 350 से ज्यादा विद्वान और 5 देशों के संस्कृति मंत्री शामिल हुए। सम्मेलन में भूटान, मंगोलिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम, नेपाल, दक्षिण कोरिया, मॉरिशस, रूस, स्पेन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन शामिल हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि जो सबको धारण करे, वही धर्म है। गुरु नानक देव जी ने नाम सिमरन का रास्ता सुझाया, जिसके लिए कहा जाता है- नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार…। कभी-कभी कहा जाता है कि धर्म का जहाज हिलता-डुलता है, लेकिन डूबता नहीं है। धर्म-धम्म की अवधारणा भारत चेतना का मूल स्तर रही है। उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा में कहा गया है- धारयति- इति धर्मः। अर्थात जो सब को धारण करे, वही धर्म है। धर्म की आधारशिला मानवता पर टिकी है।
जिस समाज में धर्म की रक्षा की जाती है, वो समाज भी धर्म को प्राप्त करता है
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि राग और द्वेष से मुक्त होकर, अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज निर्माण करना पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण और समाज पूर्व के मानववाद का व्यवहारिक रूप है। हमारी परंपरा में कहा जाता है कि जिस समाज में धर्म की रक्षा की जाती है, वो समाज भी धर्म को प्राप्त करता है। मुझे यह देखकर गर्व होता है कि हमारे देश की परंपरा में धर्म को समाज व्यवस्था और राजनीतिक कार्यकलापों में प्राचीनकाल से ही केंद्रस्थ स्थान प्राप्त है।
मार्ग दिखाना मानववाद की विशेषता है
उन्होंने कहा कि आज से 2000 साल पहले हमारे देश में धर्म महात्मा के बोध को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई, उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न को सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, महर्षि पतंजलि, गुरु नानक, भगवान बुद्ध ने दुख से निकलने के मार्ग सुझाए हैं। मानवता के दुख के कारण का बोध करना और इस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना पूर्व के मानववाद की विशेषता है। ये आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
राष्ट्रपति बोलीं-नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार… धर्म का जहाज कभी डूबता नहीं
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