डिंडौरी जिले के पांडपुर गांव की तस्वीर बयां कर रही सिस्टम की लाचारी
डिंडौरी। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले डिंडौरी के वनग्राम पांडपुर गांव में रह रहे विशेष संरक्षित बैगा जनजाति के लोग नाले के पास बने झिरिया का गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हैं। करीब 750 की आबादी वाले इस गांव में कहने को तो पांच हैंडपंप हैं लेकिन इनमें से तीन हैंडपंप महीनों से खराब हैं और बाकी दो हैंडपंप से इतना पानी नहीं मिलता जिससे ग्रामीणों की प्यास बुझ सके। लिहाजा बच्चे, बूढ़े व महिलाएं पानी के लिए रोजाना गांव से करीब आधा किलोमीटर दूर नाले के पास बने झिरिया का रुख करते हैं। तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि पत्थरों के बीच से रिस-रिसकर एक छोटे से गड्ढे में जो पानी जमा होता है, उसे कटोरे के सहारे बर्तनों में भरा जाता है। सबसे ज्यादा परेशानी तब होती है जब पानी से भरे बर्तनों को सिर व कंधे में रखकर ग्रामीण घर वापस लौटते हैं। वापसी के दौरान खड़ी घाटी को पार करना भी बड़ी चुनौती होता है। जब मासूम बच्चे पानी से भरे बर्तनों को सिर में रखकर घाटी चढ़ते हैं, उस वक्त उनके माता-पिता पर क्या गुजरती होगी.. इसका अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है।
ग्रामीणों ने बताया कि वे पानी की समस्या की शिकायत करते-करते थक चुके हैं। किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने उनकी सुध नहीं ली है। ग्रामीण स्थानीय सांसद और विधायक के रवैये को लेकर भी काफी नाराज हैं। पीएचई विभाग के कार्यपालन यंत्री शिवम सिन्हा मीडिया के दखल के बाद जल्द समस्या का निराकरण करने का आश्वासन दे रहे हैं।
ऐसी तस्वीरें देखकर सवाल उठना शुरू हो जाता है कि योजनाओं के नाम पर जो अरबों का फंड आदिवासी इलाके के लिए आता है, वह जाता कहां है? बातें तो बड़ी-बड़ी होती हैं लेकिन समाधान के नाम पर कुछ भी नहीं होता। सवाल यही है कि क्या ये बैगा आदिवासी महज वोट बैंक ही हैं, जिन्हें उपयोग करने के बाद उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है।