नगर पालिका से नगर निगम तक का सफर-भाग-1
जबलपुर। जबालि ऋषि के नाम से पहचाने जाने वाले हमारे जबलपुर शहर का इतिहास समृद्ध रहा है। गौड़ राजाओं के बाद मराठाओं ने यहां शासन किया। अंग्रेजों के अधीन आने के बाद कब, क्या हुआ, आईए हम आपको बताते हैं।
१८१७ में जबलपुर आए थे अंग्रेज
वर्ष १८१७ में अंग्रेजों ने जबलपुर पर आक्रमण किया। तब यहां पर मराठों का शासन था। इतिहासकारों की मानें तो महज 6 घंटे में ही अंग्रेजों ने मराठा सेना को हराकर जबलपुर पर अपना कब्जा कर लिया। जबलपुर के ब्रिटिश हुकूमत के अधीन आने बाद केण्टोनमेंट क्षेत्र में अंग्रेजों की सेना का अस्थायी आवास बनाया गया। मराठा शासन के पतन के बाद २६ जनवरी १८१८ को जबलपुर में अंग्रेजों की अस्थायी सरकार बन गई। करीब 8 साल बाद अंगे्रजों को यह महसूस हुआ कि शहर के विकास और बुनियादी सुविधाओं के लिए लोकल बॉडी की जरूरत है। अंग्रेजों ने 1826 में सेना और नागरिकों की बुनियादी सुविधाओं के लिए छावनी बोर्ड की स्थापना की।
पहली बार बने थे 12 वार्ड
वक्त बीतने के साथ ही वर्ष १८६४ में नगर को व्यवस्थित बनाने, सडक़, नाली, बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए जबलपुर नगरपालिका की स्थापना हुई। प्रशासनिक नियंत्रण, निर्वाचन और विकास कार्य कराने के उद्देश्य से शहर को १२ वार्डों में विभाजित किया गया था। इसमें गढ़ा गांव को भी शामिल किया गया।
किराए के भवन में खुला था नगर पालिका कार्यालय
अंग्रेजों ने कागजों में योजना तो बना ली, लेकिन सबसे बड़ी समस्या भवन की थी। जबलपुर में नगर पालिका के विभिन्न विभागों के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी और शहर में ऐसा कोई बड़ा भवन भी नहीं था, जिसमें नगर पालिका कार्यालय का संचालन किया जा सके। तभी गढ़ा में नगर पालिका कार्यालय के लिए किराए का भवन ढूंढा गया। वर्ष १८६४ में राजा अमान सिंह गोंटिया की हवेली में पहला नगर पालिका का कार्यालय खुला। हवेलीनुमा इस मकान में आज भी टाउन हॉल लिखा हुआ है।
ब्रिटिश हुकूमत ने 1864 में की थी जबलपुर नगरपालिका की स्थापना, तब खुद भवन भी नहीं था
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