Homeमध्यप्रदेशसुप्रीम कोर्ट बनाम मोदी सरकार ।

सुप्रीम कोर्ट बनाम मोदी सरकार ।

  • चुनाव आयुक्तों पर नकेल कसने की तैयारी में सरकार
  • चुनावी पारदर्शिता पर एक बड़ा सवाल है यह प्रस्ताव।

आम चुनाव से पूर्व चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया मामले में सरकार ने बीते दिन एक विधेयक प्रस्तुत किया । जिसमें सभी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधान मंत्री लोकसभा में विपक्ष के नेता और 3 कैबिनेट मंत्रियों के द्वारा की जाएगी। चुनाव से ठीक पहले पेश इस विधेयक ने सियासी गलियारों में सुगबुगाहट पैदा कर दी है। सूत्रों के मुताबिक, यह कानून ICE की नियुक्ति मामले में 2 मार्च 2023 को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को खारिज कर देगा और चुनावी प्रक्रिया पर पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह लगा देगा। पढिए हिट वॉइस् की यह रिपोर्ट…

क्या हैं सांविधानिक प्रावधान ?

भारतीय संविधान के भाग XV के अनुच्छेद 324 से 329 में चुनावी प्रावधान विनिर्दिष्ट हैं। जिसके अनुसार, एक चुनाव होगा। उसका एक अध्यक्ष होगा परंतु चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 के तहत आयोग को एक बहु-सदस्यीय निकाय में तब्दील कर दिया गया है। जिसमें अध्यक्ष या मुख्य चुनाव आयोग के अलावा 2 अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी प्रावधान हैं। जिन्हें समय समय पर भारत के राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं। इसके लिए कानून मंत्री, प्रधान मंत्री से उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करते हैं और प्रधान मंत्री की सलाह से राष्ट्रपतिउन्हें बतौर चुनाव आयुक्त नियुक्त कर देते हैं। जिनका कार्यकाल 6वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो जाए होता है।

चुनाव आयुक्त और उनके सहयोगी आयुक्त

कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या समय से पहले उन्हें हटाया भी जा सकता है पर कैसे? CEC को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया यानि महाभियोग के द्वारा पद से हटाया जा सकता है लेकिन CEC की सिफारिश के बिना किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त को नहीं हटाया जा सकता है।

मामले में सुप्रीम कोर्ट का प्रवेश

सर्वोच्च न्यायालय (SC) के पाँच-न्यायाधीशों की पीठ ने 2 मार्च 2023 को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति में सदन के दूसरे सबसे बड़े दल का नेता उपरोक्त समिति का सदस्य होगा।

फैसले के अन्य प्रमुख बिंदु

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की बहस से स्पष्ट होता है कि सभी सदस्यों का स्पष्ट मत था कि चुनाव एक स्वतंत्र आयोग द्वारा आयोजित किये जाने चाहिये। आमतौर पर न्यायालय विशेष विधायी शक्तियों के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, परंतु संविधान के संदर्भ में विधायिका की निष्क्रियता और उससे उत्पन्न शून्यता को देखते हुए न्यायालय ने मामले में हस्तक्षेप किया था। 

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