Homeमध्यप्रदेशपाकिस्तान के भी न हो जाएं श्रीलंका जैसे हाल..?

पाकिस्तान के भी न हो जाएं श्रीलंका जैसे हाल..?

नई दिल्ली। पड़ोसी देश श्रीलंका में जनविद्रोह भडक़ उठा है और हालात किसी के काबू में नहीं हैं। राजनीतिक अस्थिरता से देश का भविष्य गर्त में दिखाई दे रहा है। यह सब हुआ है चीन की सरपरस्ती से। कुछ ऐसी ही हाल पाकिस्तान के भी हैं, जहां कब स्थिति विस्फोटक हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इमरान की सरकार में जो महंगाई बढ़ी, कर्ज बढ़ा, उनके जाने के बाद भी स्थिति जस की तस है। भले ही शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बन गए हैं, लेकिन पाकिस्तान की स्थिति नहीं सुधरी है। न तो महंगाई कम हुई है और न देश की माली हालत। स्थिति यह है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव में अब और महंगाई बढऩे की आशंका है। ऐसे में वहां भी स्थिति श्रीलंका से इतर नहीं है। वहां भी जनविद्रोह भडक़ सकता है। ऐसा हुआ तो भारत के लिए खतरा बढ़ सकता है। चूंकि पाकिस्तान परमाणु शस्त्रों से लैस है, इसलिए यह स्थिति भारत के लिए भी मुश्किल लेकर आ सकती है। हालांकि राहत की बात यह है कि पाकिस्तान में आर्मी शक्तिशाली है, इसलिए वहां ऐसा जनविद्रोह भडक़ने की आशंका नहीं है। लेकिन श्रीलंका में जिस तरह आर्मी ने जनसैलाब के आगे घुटने टेके, उससे किसी भी आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
चीन की सरपरस्ती ने डुबोया
श्रीलंका में जनता ने राष्ट्रपति भवन को घेर लिया। वहां के राष्ट्रपति पहले ही देश छोडक़र भाग खड़े हुए। श्रीलंका लंबे समय से सत्ता के विरुद्ध आम हिंसा से जूझ रहा है। गृहयुद्ध के हालात बने हुए हैं। जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों के घर जलाने के साथ ही जिंदा जलाने के प्रयास भी हुए हैं। सेना ने भी नेताओं का आदेश मानने से इंकार कर दिया है। भयंकर हालात हैं। पड़ोसी देश होने के नाते भारत के लिए भी यह गंभीर चिंता का विषय है। श्रीलंकाई राष्ट्रपति के कक्ष में घुस कर बिस्तर में लेट गए हैं और उनके कपड़े पहनकर सेल्फी ली। विदेशी और खासतौर पर चीन के कर्ज से लदा श्रीलंका अपने नागरिकों को हज़ारों गुना मंहगाई के बावजूद भी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर पा रहा है। फलस्वरूप वहां के जागरूक नागरिकों ने राष्ट्रपति भवन को घेर लिया है। माहौल भांपकर वहां के राष्ट्रपति पहले ही देश छोडक़र भाग चुके हैं। श्रीलंका लंबे समय से सत्ता के विरुद्ध आम हिंसा से जूझ रहा है। गृहयुद्ध के हालात बने हुए हैं। जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों के घर जलाने के साथ ही जिंदा जलाने के प्रयास भी हुए हैं। सेना ने भी नेताओं का आदेश मानने से इंकार कर दिया है।

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