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पीएम चेहरे पर विपक्षी एकता हो सकती है फुर्र

  • ममता बनर्जी कभी नहीं चाहेंगी कि राहुल विपक्ष के केंडिडेट हों
  • कांग्रेस का कोई बडा नेता बैठक में नही जाएगा

नई दिल्ली,हिट वाइस न्यूज। लोकसभा चुनाव के पहले तमाम विपक्षी दल भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए एकता की हामी तो भर रहे हैं लेकिन पीएम चेहरे को लेकर अभी भी विपक्ष में एकराय नहीं हो पा रही है। विपक्ष में प्रधानमंत्री बनने लिए कई केंडिडेट हैं। नीतीश कुमार,ममता बनर्जी, राहुल गांधी और शरद पवार तो पीएम पद के पक्के केंडिडेट हैं ही। मजे की बात ये है कि ये सभी नेता किसी एक नेता के प्रधानमं़त्री बनने के सवाल पर एकमत नहीं हो सकते हैं। यही वजह है कि 12 जून को पटना में होने वाली विपक्षी नेताओं की बैठक से पहले पीएम केंडिडेट के सवाल पर जवाब देने से प्रायः सभी नेता बचना चाहते हैं। राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि हो सकता है कि 12 जून हो विपक्षी एकता के प्रयासों का गुब्बारा ही फूट सकता है। ऐसी खबरें निकलकर आ रही हैं कि कांगे्रस का कोई भी बडा नेता 12 जून की बैठक में भाग नहीं लेगा। जिससे साफ है कि बैठक से पहले ही सिरफुटौवल शुरू हो गई है।

ममता हो सकती हैं राहुल की राह में सबसे बडा रोड़ा

कांग्रेस बेशक कर्नाटक जीत के बाद से उत्साहित नजर आ रही है और इसी को आधार बनाकर वह राहुल गांधी को विपक्ष की ओर से पीएम केंडिडेट के रूप में प्रोजेक्ट कर सकती है लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि पश्चिम बंगाल की मुंख्यमंत्री ममता बनर्जी कभी नहीं चाहेंगी कि राहुल पीएम बन जाएं। वे हर वह कोशिश करने से पीछे नहीं है जिसमें कि राहुल को पीएम बनने से रोका जा सके। इसके लिए वे 12 जून की पटना बैठक में कुछ ऐसा भी कर सकती हैं कि राहुल की पीएम पद की दावेदारी पर ग्रहण लग जाए। ममता का कांग्रेस से पुराना बैर है और वे इस बैर को आजीवन निभाने का मन बनाए हुए हैं। नतीजतन, ममता राहुल की राह में रोडा बनकर उभर रहीं हैं।

बगैर कांग्रेस के मोदी को हराना है नामुमकिन

12 जून की पटना में होने वाली विपक्षी नेताओं की बैठक इस मायने में काफी महत्वपूर्ण है कि इसमें किसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा। यदि नीतीश कुमार को इस पद के लिए घोषित किया जाता है तो कांग्रेस विपक्षी एकता के प्रयासों से किसी न किसी रूप में अपने आप को अलग कर सकती है। यह बात नीतीश कुमार भी जानते हैं कि यदि कांग्रेस को इसकी भनक तक भी लग गई कि नीतीश ही पीएम केंडिडेट होंगे तो वह अपने आप को अलग कर सकती है। कांग्रेस के पास इसके लिए कई तर्क भी हैं। यही बडा कारण है कि बगैर कांग्रेस को साथ लिए विपक्ष को एकजुट कर पाना नामुमकिन सा है। साथ ही यह भी पक्के तौरपर कहा जा सकता है नरेन्द्र मोदी को हरा पाना इतना आसान नहीं है,जितना कि माना जा रहा है।

जेपी मूवमेंट की तर्ज पर काम करना चाहते हैं नीतीश

दरअसल, बिहार के सीएम नीतीश कुमार जयप्रकाश यानी जेपी के आंदोलन की तरह विपक्ष का बडा चेहरा बनने का सपना पाले हुए हैं। वे 1977 में इंदिरा गांधी को सत्ताच्युत करने वाले जेपी की राह पर चलकर नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं। लेकिन यह उतना संभव नहीं है जितना नीतीश कुमार समझ रहे हैं। क्योंकि उस समय कांग्रेस के खिलाफ सभी दल एकजुट हो गए थे। लेकिन मोदी को हराने के मामले में कई गैर कांग्रेसी सीएम ही एकमत नजर नहीं आ रहे हैं। लिहाजा नीतीश कुमार यदि जेपी मूवमेंट की राह पर चलकर मोदी को हराने का सपना देख रहे हैं तो यह उनकी भूल होगी।

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