सेमीफाइनल की तरह हैं मप्र के उपचुनाव.. जो जीता उसके हौसले होंगे बुलंद
भोपाल। मप्र में खंडवा लोकसभा सीट और पृथ्वीपुर, रैगांव और जोबट विधानसभा में उपचुनाव की रणभेरी बज चुकी है। खंडवा लोकसभा सीट सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के निधन से रिक्त हुई है तो पृथ्वीपुर विधानसभा सीट बृजेंद्र सिंह राठौर, सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट जुगल किशोर बागरी और जोबट विधानसभा सीट कलावती भूरिया के निधन से खाली हुई है। बहरहाल 30 अक्टूबर को मतदान होना है। एक महीने का समय ही बचा हुआ है। ऐसे में भाजपा चुनाव की तैयारियों में पूरी तरह जुट गई है। चुनाव के ऐलान के पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनदर्शन यात्रा निकाल चुके हैं। सभाओं का दौर भी शुरू हो गया है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन में उलझी हुई है। नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ अभी चुनाव प्रचार के लिए नहीं निकले हैं। फिर भी कांग्रेस को उम्मीद है कि वह इस चुनाव में अच्छा करेगी। वहीं गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कांग्रेस को बिना राजा की फौज करार दे चुके हैं। उनका कहना है कि सेनापति का अता-पता नहीं है। ऐसे में कांग्रेस भी जानता है कि वह चुनाव हार रही है। लेकिन भाजपा भी जानती है कि ये चुनाव आसान नहीं रहने वाले। इसलिए चुनाव में चार-चार मंत्रियों को एक सीट का जिम्मा सौंपा गया है। बहरहाल जो भी जीते या हारे, उससे ज्यादा फर्क नहीं पडऩे वाला। क्योंकि चुनाव में हार-जीत से न तो भाजपा की सरकार जाएगी और न ही कांग्रेस की सरकार बनने वाली है। हां, यह जरूर है कि इससे 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले जो जीतेगा, उसका मनोबल जरूर बढ़ेगा।
खंडवा पर हैं सभी की निगाहें
स्व. नदकुमार सिंह चौहान के निधन से खाली हुई खंडवा लोकसभा सीट के उपचुनाव पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। यहां से कांग्रेस के अरूण यादव प्रबल दावेदार हैं, तो भाजपा से अर्चना चिटनीस सहित अन्य के नाम चल रहे हैं। इस सीट से एक बार अरूण यादव चुनाव जीत चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद दिख रही है कि वह यह लोकसभा सीट जीत जाएगी। वहीं भाजपा को उम्मीद है कि स्व. नंदकुमार सिंह चौहान के नाम पर उसे सहानुभूति मिलेगी और सरकारी योजनाओं के सहारे उसकी नैया पार लग जाएगी। इसलिए भाजपा पूरी ताकत लगाकर यहां से जीत दर्ज करना चाहती है।
गुटबाजी है कांग्रेस का सिरदर्द
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुटबाजी की है। उसे एकजुट भाजपा का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस और भाजपा ने अभी तक उम्मीदवार तय नहीं किए हैं। लेकिन कांग्रेस में गुटबाजी-बगावत की ज्यादा संभावनाएं हैं। ऐसे में भाजपा कांग्रेस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने से नहीं चूकेगी। कांग्रेस के बड़े चेहरे कमलनाथ और दिज्विजय सिंह ही हैं। ऐसे में आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया भी मैदान में उतरेंगे और कांग्रेस के पक्ष में नतीजे लाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे। अब देखना होगा कि 2 नवंबर को होने वाली मतगणना में नतीजे किसके पक्ष में आएंगे। जो जीतेगा वह 2023 में अपना सरकार बनाने का दंभ भरेगा। ऐसे में उपचुनाव की यह लड़ाई दिलचस्प ही होगी।