Homeजबलपुररामायण की चौपाई “ढोल गंवार शूद्र पशु नारी..“ की हुई गलत व्याख्या

रामायण की चौपाई “ढोल गंवार शूद्र पशु नारी..“ की हुई गलत व्याख्या

  • म. प्र. प्रगतिशील ब्राह्मण महासभा ने कहा-राम चरित मानस की चौपाईयों को कतिपय राजनैतिक दलों ने गलत तरीके से समझाया
  • मूल पांडुलिपि में यह पाठ इस प्रकार है-“ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी..!

रामायण की चौपाई “ढोल गंवार शूद्र पशु नारी..“ की हुई गलत व्याख्या

जबलपुर। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री राम चरित मानस को सदियों बीत चुकी हैं। उनकी एक-एक चौपाइयां और व्याख्या आज भी जनमानस के मन में अंकित है। लेकिन कतिपय राजनैतिक दलों के व्यक्तियों द्वारा क्षुद्र राजनीति से प्रेरित होकर गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित्र मानस की चौपाईयों की दुर्व्याख्या की गई। जबकि वे रामचरित्र मानस के अधिकारी मर्मज्ञ नहीं हैं। म. प्र. प्रगतिशील ब्राह्मण महासभा ने पत्रकार-वार्ता में स्थिति स्पष्ट की और प्रमाणों के साथ इस सबके सामने रखा। पदाधिकारियों ने कहा कि रामचरित मानस की रचना के बाद कई शताब्दियों से लोक मानस ने राम चरित्र मानस पर अगाध आस्था व विश्वास स्थापित किया है। वैसे भी किसी भी धर्म के धार्मिक ग्रंथों की छिद्रान्वेषी व्याख्या की प्रवृत्ति अनुचित है। राम चरित्र मानस की जिस चौपाई पर राजनैतिक कार्यसूची (एजेंडा) के तहत अकारण विवाद उत्पन्न किया जा रहा है।
क्षुद्र को बना दिया शूद्र
महासभा के पदाधिकारियों ने कहा कि हम यह स्पष्ट करते हैं कि उक्त चौपाई का पाठ तुलसीदास कृत रामचरित्र मानस की मूल पांडुलिपि के अनुरूप पाठ नहीं है। हमें यह बताया गया कि
“ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी’
मूल पांडुलिपि में यह पाठ इस प्रकार है-
“ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी।
अतः मूल चौपाई में क्षुद्र शब्द का प्रयोग किया गया है।
उल्लेखनीय है कि कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज के सर जोन गिल क्राइस्ट के निरीक्षण में हिन्दी गद्य में पुस्तकें लिखने व पुरानी पांडुलिपियों के प्रकाशन का गुरुतर दायित्व लल्लू लाल व सदल मिश्र को सौंपा गया था। इसी तारतम्य में रामचरित्र मानस की पांडुलिपि से प्रथम बार लीथो प्रिंटिंग की तकनीक अंगीकृत कर रामचरित्र मानस की अत्यंत कम संख्या में हस्तलिखित प्रकाशन किया गया है और यह रामचरित्र मानस की प्रथम मुद्रित पुस्तक थी। प्रथम मुद्रित पुस्तकें कालान्तर में खो गईं किन्तु एकमात्र उपलब्ध पुस्तक बेवसाइट में उपलब्ध है।
1810 में रामचरित्र मानस का प्रथम मुद्रण
पदाधिकारियों ने बताया कि वर्ष 1810 में रामचरित्र मानस का प्रथम मुद्रण होने के बाद रामचरित्र मानस की कहीं भी अन्यत्र मुद्रण नहीं किया गया। मानस के प्रथम प्रकाशन 1810 ई. के बाद 1830 ई. में कोलकता के एसिएटिक लियो कम्पनी“ द्वारा “हिन्दी एन्ड हिन्दुस्तानी सेलेक्शन’ नाम से एक पुस्तक छापी जिसमें मानस का पूरा सुन्दरकांड छपा है, इस सुन्दरकांड में भी ढोल गंवार क्षुद्र पशु, नारी ही छापा गया था। बाद में इसका मुद्रण 1877 ई. में हुआ, जिसकी एकमात्र प्रति अजय तिवारी के पास 1810 ई. के प्रथम प्रकाशन (परंतु वर्तमान में अनुपलब्ध) रामचरित मानस के उपलब्ध है और इसमें भी पाठ ’क्षुद्र’ ही है, शूद्र नहीं है। इस ग्रन्थ में रामायण की घटनाओं पर आधारित अनेक रेखाचित्र भी प्रस्तुत किये गये हैं।
जर्मनी में प्रति का डिजिटाइजेशन
वर्तमान में जर्मनी में संकलित रामचरित मानस की 1810 में प्रकाशित इस प्रति का डिजिटाइजेशन हुआ और इंटरनेट के माध्यम से महावीर मंदिर ट्रस्ट पटना को यह उपलब्ध हुआ। महावीर मंदिर ट्रस्ट ने अभी रामचरित मानस के प्रकाशित ग्रंथ से केवल सुंदरकांड का प्रकाशन उसी मूल बर्तनी में किया है और पुस्तक के कव्हर पृष्ठ पर ढोल गंवार, क्षुद्र पशु नारी प्रमुखता से प्रदर्शित किया है। अजय तिवारी के परिवार में डेढ़ शताब्दी से उपलब्ध यह रामचरित मानस सदल मिश्र द्वारा सम्पादित वर्ष 1810 में प्रकाशित मूल प्रति की मुद्रित पांडुलिपि है जिसके शब्द लिपि और रेखाचित्र महावीर मंदिर ट्रस्ट पटना की नेट से प्राप्त डिजिटाइजेशन प्रति से भिन्न हैं।
1889 के बाद चौपाई के शब्द को बदला गया
पदाधिकारियों का कहना है कि पं. सदल मिश्र द्वारा सम्पादित प्रथम प्रकाशन 1810 के बाद वर्ष 1875, 1877. 1883, 1889 में देश की विभिन्न छापाखानों से रामचरित मानस का प्रकाशन कराया गया। इन सभी प्रकाशित ग्रंथों में भी चौपाई का मूल पाठ “ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी“ ही है। वर्ष 1889 के बाद भूल से या जानबूझकर चौपाई के शब्द को बदल दिया गया।
महान ग्रंथ पर बेबुनियाद आरोप
गीता प्रेस गोरखपुर से 1939 में प्रथम बार मुद्रित रामचरित मानस का प्रकाशन किया गया जिसके बाद ’क्षुद्र’ शब्द की जगह ’शूद्र’ शब्द को पढ़ा जाने लगा । श्री अजय तिवारी का कथन है कि उपलब्ध पुरातन पाण्डुलिपियों एवं 1800 सदी के प्रकाशकों द्वारा मुद्रित रामचरित मानस की प्रतियाँ अधिक विश्वसनीय एवं तुलसीदास की मूल भावना के अधिक निकट हैं। चौपाई ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी पाठ ही प्रमाणिक है। अतः तुलसीदास जी पर और उक्त चौपाई के माध्यम से पूरे महान ग्रंथ पर बेबुनियाद आरोप लगाना, देश और समाज के हित में घातक होगा। पत्रकार वार्ता में पंडित अजय तिवारी महानगर अध्यक्ष, पंडित नवीन शुक्ला, आशीष त्रिवेदी, असीम त्रिवेदी, अपूर्व त्रिवेदी, शैलेश पाठक, वैभव मिश्रा, प्रताप बिग्रेड के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अभिजीत सिंह परिहार, वीरू यादव, एसएस ठाकुर, अनुज भारद्वाज, बृजेश अग्रवाल, शुभम मिश्रा, अजय द्विवेदी आदि उपस्थित रहे।

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