गो सेवा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश एक आदर्श प्रदेश के रूप में उभरे : स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

जबलपुर। गोशालाओं के सफल संचालन हेतु दृढ़ इच्छा शक्ति सहित गोशाला प्रबंधन में जनभागीदारी तथा जनसहयोग जैसे कारकों का समावेश जरूरी है, अन्यथा गोशालायें कुप्रबंधन की शिकार होती रहेंगी। यह कहना है म.प्र. गोपालन एवं पशुधन संवर्द्धन बोर्ड के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि जी की। उन्होंने कहा कि मैं ह्रदय से चाहता हूँ कि- गो सेवा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश एक आदर्श प्रदेश के रूप में उभरे। गो सेवा एवं गोवंश के जीवन रक्षा सहित गोवंश संरक्षण हेतु मध्यप्रदेश में अनेक अनुकूलतायें व सम्भावनायें मौजूद हैं।
उन्होंने बताया कि मुझे जब से प्रदेश के मुखिया माननीय शिवराजसिंह चौहान ने मध्यप्रदेश गोसंवर्द्धन बोर्ड की कार्यपरिषद् में दायित्त्व सौंपा है,तब से मैं निरंतर गो सेवा के कार्य में सक्रिय रहकर आमनागरिकों को गोपालन, गोवंश की सेवा हेतु न केवल प्रेरित कर रहा हूँ बल्कि आमजनों को प्रोत्साहित भी करता हूँ। मध्यप्रदेश में पंजीकृत और क्रियाशील गोशालाओं में मैं दो प्रकार की गोशालाओं का प्रशंसक हूँ। एक वे जिनका संचालन साधु-संत ,महात्माओं के मार्गदर्शन और उनके मठ-मंदिरों एवं धार्मिक संंस्थाओं द्वारा हो रहा है।
मनीपावर और मेनपावर जरूरी
दूसरी उन गोशालाओं का भी मैं प्रशंसक हूँ जिनका संचालन प्रदेश की सेंट्रल जेलों में हो रहा है।संचालन की दृष्टि से ये गोशालायें इसलिए सफल हैं, क्योंकि-गो सेवा के लिये मनीपावर और मेनपावर दोनों की जरूरत है।आश्रमों में,मठ-मंदिरों में साधु-संत,महात्माओं की प्रेरणा,प्रवचन एवं उनके सात्त्विक पुरुषार्थ से दानदाता प्रभावित होकर धन की कमी नहीं होने देते। प्रदेश के केंद्रीय कारागारों में मेनपावर होता है।जेलों का अनुशासन कैदियों को सक्रिय बनाये रखता है।गो सेवा में अभिरुचि रखने वाला जेल का अधिकारी निरंतर अपने कैदियों से गो सेवा का कार्य लेता है, इस कारण यहाँ गोशालायें सफल हैं।
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि मध्यप्रदेश में अब तीसरे प्रकार की गोशालायें भी विगत 4 वर्षों से अस्तित््व में आ गई हैं, जिन्हें हम ग्राम पंचायत स्तर पर मनरेगा की आर्थिक सहायता से निर्मित गोशालायें प्रकारान्तर से काँजीहौस भी कह सकते हैं। इनके निर्माण के और इनके क्रियाशील हो जाने के साथ-साथ इन गोशालाओं के संचालन की शासन ने एक नीति निर्धारित की है,जिसमें इन गोशालाओं(काँजीहौस)के संचालन का प्रथम दायित्त्व ग्राम पंचायत का है ग्राम पंचायत यदि इनके संचालन में असमर्थता प्रकट करे तो ग्राम पंचायत की सहमति से महिला स्व-सहायता समूह द्वारा संचालित कराया जाये।यदि महिला स्व-सहायता समूह फेल्युअर हो जाये तो पंचायत की सहमति,प्रशासनिक तंत्र के अनुमोदन पर किसी स्वयं सेवी संगठन, एनजीओ द्वारा संचालन कराया जा सकता है। मुझे अपने गोसंवर्द्धन बोर्ड के द्वितीय कार्यकाल में जो अनुभव आ रहे हैं। मैं उस आधार पर दृढ़तापूर्वक यह कह रहा हूँ कि- हम चाहे किसी भी एजेंसी से गोशाला संचालन करें या करवायें,उसमें शासन की नीति,प्रशासन तंत्रका हस्तक्षेप और आमनागरिकों की भागीदारी(तीनों का)समायोजन अनिवार्य होना चाहिए तथा प्रबंधन के सप्त आयामों का नियोजन गोशालाओं में होना चाहिए ,इन कारकों के अभाव में गोशालायें लडख़ड़ाती रहेंगी और कुप्रबंधन की शिकार होंगी।
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि आमनागरिकों, गो भक्तों,गोप्रेमियों एवं समाज के निकम्मे,अनर्गल प्रलापियों के द्वारा जब कभी शासन की नीतियों पर असंतोष या प्रशासन तंत्र पर प्रहार होता है उस समय मुझे बड़ी पीड़ा होती है। हम शासन -प्रशासन में दोष तो बड़ी जल्दी निकाल लेते हैं किंतु यह नहीं विचार कर पाते कि-अंतत: सडक़ों पर भटकता गोवंश किनका है? क्या गोवंश की दुर्दशा का जिम्मेदार गोपालक या आमनागरिक नहीं है? आमनागरिकों के द्वारा मूक प्राणियों के हक की चरनोई भूमि हड़पी जा रही है,फसल आ जाने के बाद नरवाई जलाकर मूक प्राणियों का आहार नष्ट कर देना यह कौन सी बुद्धिमानी है? नकारात्मक दृष्टि से सोचना और दोष दर्शन यह कौन सी बुद्धिमत्ता का परिचायक है?
स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि गोशालाओं के सुप्रबंधन में जनभागीदारी और जनसहयोग ये दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं,जिन पर मेरा अत्यधिक जोर है।घरों से निकाली जाने वाली गो-ग्रास की एक रोटी का नवाचार गो -ग्रास हेतु प्रतिदिन 10 रूपए निकालना और वर्ष में एक दिन 3650रु. गोसंवर्द्धन बोर्ड के पोर्टल के माध्यम से दान कर पुण्य के भागीदार बनना”युगानुकूल धर्माचरण ही तो है। हम यह करने को भी राजी नहीं हैं,मुझे कष्ट होता है यह लिखते हुये फिर भी आमनागरिकों को प्रेरित करने की दृष्टि और सकारात्मक सुपरिणामकारी चिंतन के साथ लिखना पड़ रहा है। इस विश्वास के साथ कि-आमजन गोवंश की रक्षा और उसके जीवन की भलाई के लिये सन्नद्ध हों।

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