Homeताजा ख़बरकुष्मांडा देवी मानी जाती हैं ब्रह्मांड की निर्माता, जानें महत्व और कथा

कुष्मांडा देवी मानी जाती हैं ब्रह्मांड की निर्माता, जानें महत्व और कथा

जबलपुर। चैत्र नवरात्र के चौथा दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। देवी कुष्मांडा को देवी दुर्गा का चौथा अवतार कहा जाता है और नवरात्रि के चौथे दिन उनकी पूजा की जाती है। आठ भुजाओं वाली, हाथ में हथियार और एक माला रखे कुष्मांडा देवी बाघ पर सवार हैं। कुष्मांडा में कु का अर्थ है थोड़ा, ऊष्म का अर्थ है गर्माहट और अंडा का अर्थ है लौकिक अंडा। इसलिए उन्हें ब्रह्मांड का निर्माता माना जाता है। माना जाता है कि जब तक वह सभी दिशाओं में प्रकाश नहीं फैलातीं, तब तक ब्रह्मांड नकारात्मकता और अंधकार से भरा था। स्वास्थ्य, धन और शक्ति प्राप्त करने के लिए कुष्मांडा माता की पूजा की जाती है।
आंतरिक शक्ति और अपार धन की प्राप्ति होती है
हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि भक्त देवी कुष्मांडा की पूजा करते हैं ताकि वे देवी के मार्गदर्शन और आशीर्वाद से सही दिशा की ओर जा सकें। देवी अपनी मोहक मुस्कान से दुनिया से अंधकार को दूर करने में मदद करती हैं। देवी कुष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को अत्यधिक ऊर्जा और शक्ति प्राप्त होती है। मां कुष्मांडा भक्तों के स्वास्थ्य को सुधारने में भी मदद करती हैं। माना जाता है कि कुष्मांडा देवी की पूजा करने वालों को आंतरिक शक्ति और अपार धन की प्राप्ति होती है।
यह है देवी कुष्मांडा की कथा
आदि-पराशक्ति (शक्ति की सर्वोच्च देवी) भगवान शिव के शरीर के बाईं ओर से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। देवी पार्वती ने सिद्धिदात्री के रूप में सूर्य के केंद्र में रहना शुरू किया और इस प्रकार उन्हें देवी कुष्मांडा के नाम से जाना जाने लगा। यह दर्शाता है कि देवी कुष्मांडा माँ दुर्गा का एकमात्र अवतार हैं जो सूर्य के केंद्र में निवास करके पूरे सौर मंडल को नियंत्रित करती हैं।

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