भारतीय परिवारों में लुप्त होती गोग्रास निकालने की परम्परा को पुनर्जीवित करने का यह बहुत अनुकूल-स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

जबलपुर। म.प्र. गोपालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड कार्यपरिषद के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने प्रदेश वासियों से अपील की है कि मुझे मध्यप्रदेश शासन की ओर से फिर से म.प्र. गो संवद्र्धन बोर्ड का दायित्व दिया गया है। मैं गोसंवद्र्धन बोर्ड की संवैधानिक नियमावली के दायरे में एवं राज्य शासन के अधिकारों की परिधि में ही रहकर प्रदेश में गोवंश के संरक्षण एवं संवद्र्धन के दायित्त्वों का निर्वहन करने में सदैव तत्पर रहता हूँ। उन्होंने कहा कि मेरा यह मानना है कि शासन, गोवंश संरक्षण और संवद्र्धन हेतु शासन द्वारा निर्धारित नीति एवं प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संकल्प और संकल्पना के अनुरूप अपने हिस्से का कार्य करेगा। प्रशासनिक अधिकारी तदनुरूप नीति और संकल्प के क्रियान्वयन हेतु प्रतिबद्ध हैं, लेकिन गोवंश रक्षा हेतु अकेले शासन के बल पर पर बेहतर कार्य करना कठिन है जब तक जन सामान्य की भागीदारी न हो।हमें अपनी भारतीय परम्परा का विस्मरण नहीं करना है। स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि गोपालन एवं गोवंश संरक्षण और गो सेवा भारत के प्रत्येक परिवार की स्वाभाविक और पारम्परिक अभिरुचि रही है। इसका सबसे बड़ा कारण भारतीय कृषि में गोवंश का अभूतपूर्व योगदान रहा है। गायों से प्राप्त पञ्चगव्य मनुष्यों के आहार का (भोज्य में) सहज हिस्सा रहा है। इसीलिये भारतीय परिवारों में गोपालन, गोसेवा, गोचारण की प्रवृत्ति रही है। गोदुग्ध जितना सतयुग, त्रेता एवं द्वापरयुग में प्रासंगिक रहा है। आज भी गायों से प्राप्त होने वाला दूध, दही, म_ा, मक्खन, खोवा, घी उतना ही प्रासंगिक है। हम मनुष्यों के भोजन का ये हिस्सा है। इसीलिये भारतवर्ष में एक धारणा रही है यहाँ दूध-घी की नदियाँ बहती रही हैं। स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि भारत के प्रत्येक हिन्दू परिवारों एवं गोप्रेमी परिवारों में प्रतिदिन गोग्रास के नाम पर एक रोटी निकाली जाती थी। हम यह मानते हैं कि एक रोटी से गाय का पेट नहीं भरा जा सकता, उसकी भूख नहीं मिटाई जा सकती लेकिन हम भारतीय परिवारों का यह रोटी निकालने का आचरण एक सिम्बल हम संवेदनशील भारतीयों का सात्विक आचरण का प्रतीत था। हमारे भारतीय ऋषि-मुनियों ने अपने ग्रंथों में उल्लेखित किया है कि इस पृथ्वी के सात धारक तत्वों में गाय (गोवंश) प्रथम भूमिका में है। गोभिर्विप्रैश्चवेदैश्च सतीभि: सत्यवादिभि:। अलुब्धैर्दानशीलैश्च सप्तभिर्धारयते मही।। उपर्युक्त भावों के आश्रय से.मेरे स्वर से जो मुखरित होना चाहता है, वह तथ्य यह है कि जब गाय (सम्पूर्ण गोवंश) की प्रासंगिकता व उपयोगिता आज भी प्राचीन काल की भाँति ही बनी हुई है तो गोपालन की स्वाभाविक प्रवृत्ति या पारम्परिक अभिरुचि से विरक्ति (उदासीनता) क्यों? स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि हमारा प्रदेश (अपना मध्यप्रदेश) गायों (गोवंश) के पालन, संरक्षण, संवद्र्धन हेतु सर्वाधिक अनुकूल है। देश का सर्वाधिक गोवंश अपने प्रदेश में है। देश के किसी भी राज्य (प्रदेश ) में इतना विशाल जंगल (95 हजार वर्ग किलोमीटर का वन्य परिक्षेत्र) नहीं है। शासन की गोपालन की स्पष्ट नीति, प्रदेश का मुखिया गोभक्त, गायों के प्रति संवेदनशील तथा कृषि उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश अग्रणी राज्य, यहाँ का जैविक उत्पादन एवं उसकी डिमाण्ड अनेक प्रदेशों.में। गायों एवं सम्पूर्ण गोवंश के रक्षण का सशक्त कानून राज्य में इतनी सम्भावनाओं के रहते हम आमजन गोपालन के प्रति उदासीन और लापरवाह क्यों? स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने अपील की आयें.. हम सब मिलकर प्रतिज्ञा करें कि-हम शासन और प्रशासन के साथ मिलकर गोवंश के रक्षण का कार्य करेंगे तथा गोवंश के लिये गोग्रास की परम्परा को पुनर्जीवित करेंगे। हमारा प्रदेश सवा सात करोड़ की जनसंख्या वाला प्रदेश है। अगर एक करोड़ व्यक्ति भी प्रतिदिन गोग्रास के निमित्त 10 (दस रुपया मात्र) गुल्लक में डालेंगे तो वर्ष में 3650 रूपए में और पूरे प्रदेश से तीन हजार छह सौ पचास करोड़ की राशि संकलित होगी

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