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भारत का विलेन, जिसे अंतिम सांस भी अपने देश में नसीब न हो सकी

  • करगिल में जंग का ऐलान करने वाले परवेज मुशर्रफ का अंत, धूर्तता के लिए जाना जाता था परवेज मुशर्रफ

नई दिल्ली। भारत का ऐसा विलेन, जिसने हम पर जंग थोपी और आखिरकार अपने ही देश से बेदखल हुआ। हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के पूर्व जनरल परवेज मुशर्रफ की जिसका जन्म 11, अगस्त 1943 को भारत के दिल्ली के दरियागंज में हुआ। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद उसका परिवार कराची जाकर बस गया। बाद में वह पाकिस्तान का राष्ट्रपति और सेना प्रमुख बना। उसने हम पर करगिल की जंग थोपी। बहरहाल भारत जंग जीत गया और दुनियाभर में पाकिस्तान की थू-थू हुई। लेकिन यही परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान का तख्ता पलटने में कामयाब हुआ और फिर उसने शांति का राग अलापना शुरू किया। लेकिन जब सत्ता बदली तो उसे खुद अपने मुल्क छोड़कर भागना पड़ा। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का रविवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह दुबई के एक अस्पताल में भर्ती था। मुशर्रफ ने 79 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। मुशर्रफ अमाइलॉइडोसिस बीमारी से जूझ रहा था।

दरियागंज में हुआ था जन्म

परवेज मुशर्रफ का जन्म 11, अगस्त 1943 को दिल्ली के दरियागंज क्षेत्र में हुआा। विभाजन के बाद उसका परिवार कराची जाकर बस गया। परवेज ने 1999 में नवाज शरीफ की नवाज सरकार का तख्ता पलट कर पाकिस्तान की बागडोर संभाली और 20 जून, 2001 से 18 अगस्त 2008 तक पाकिस्तान का राष्ट्रपति रहा।

जिस देश में जन्मा, उसी दिए गहरे जख्म

पुरानी दिल्ली में जन्म लेने वाला मुशर्रफ पुरानी दिल्ली के जानेमाने परिवार से ताल्लुक रखता था। हालांकि अब उस हवेलीनुमा घर में आठ परिवार रहते हैं। उस समय मुशर्रफ महज चार साल का था। वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक और अल्पसंख्यक समुदाय के नेता सर सैयद अहमद मुशर्रफ के पड़ोस वाले मकान में रहता था। 1999 तक भारत और पाकिस्तान के बीच हुए करगिल युद्ध के दौरान परवेज मुशर्रफ सुर्खियों में आया। उस दौरान मुशर्रफ ही पाकिस्तान का सेना-प्रमुख था। सेनाध्यक्ष रहते हुए परवेज ने भारत को ऐसे जख्म दिये, जो हमेशा सालते रहेंगे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारते हुए रिश्तों को नए आयाम तक पहुंचाया, लेकिन परवेज मुशर्रफ ही अटल जी का साथ देने में पीछे हट गया था।

ऐसा रहा सफर

जनरल परवेज मुशर्रफ 1961 में पाकिस्तानी सेना में शामिल हुआ। 1965 में अपने जीवन का पहला युद्ध भारत के खिलाफ लड़ा और पाकिस्तान सरकार ने वीरता पुरस्कार से नवाजा। 1971 में हुए दूसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को हार का मुंह देखना पड़ा, तब भी युद्ध का नेतृत्व परवेज ही कर रहा था। 1998 में मुशर्रफ को जनरल का ओहदा मिला और वह सैन्य प्रमुख बन गया। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान परवेज के षड़यंत्र के कारण पाकिस्तान को दुनिया के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। 1999 में उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पद से हटा कर सत्ता की बागडोर संभाल ली। इसके बाद 2002 में हुए पाकिस्तान के आम चुनावों में वह बहुमत से जीता। लेकिन 2008 के बाद उसका सफर खत्म हुआ और नवाज शरीफ ने फिर सत्ता संभाली। इसके बाद परवेज देश से भाग गया और दुबई में रहने लगा। पाकिस्तान में उस पर देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ और इस तरह उसका दुखद अंत हुआ, जब उसे अंतिम सांस लेने के लिए पाकिस्तान की सरजमीं भी नसीब नहीं हुई।

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