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’आदिवर्तः जनजातीय एवं लोक कला राज्य संग्रहालय’ का लोकार्पण, जानें क्या है खास

 

मुख्यमंत्री पहुंचे खजुराहो, कहा-आप कलाकार भाई-बहन तो सारी दुनिया का गम दूर करने वाले लोग हैं

भोपाल। खजुराहो में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सांस्कृतिक गांव ’आदिवर्तः जनजातीय एवं लोक कला राज्य संग्राहालय’ का लोकार्पण किया। उन्होंने आदिवासियों भाई-बहनों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य किया और कहा कि आप कलाकार भाई-बहन तो सारी दुनिया का गम दूर करने वाले लोग हैं। ये कला, संस्कृति, नृत्य, परंपरा, इसको जीवित रखने के लिए आपको प्रणाम करता हूं। आदिवर्त अद्भुत कला है। उन्होंने कहा कि हमारे जनजातीय समुदाय की कला, संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, वेशभूषा सब अद्भुत है। इस कला को हमें पूरी दुनिया को दिखाना है, इसलिए खजुराहो को चुना है, क्योंकि यहां पूरी दुनिया से लोग आते हैं। हमारी उमरिया की बहन जोधईया बाई को इस साल पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मैं आपका अभिनंदन करता हूं और हमारे कलाकारों को सम्मानित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देता हूं।
कला के क्षेत्र में मध्यप्रदेश का मान बढ़ाया


शिवराज ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर जिन कलाकारों ने साहित्य और कला के क्षेत्र में मध्यप्रदेश का मान बढ़ाया है उन्हें अभी 800 रूपए प्रति माह वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी, इसे बढ़ाकर 5000 हजार रूपए किया जाता है। साहित्य और कला के क्षेत्र में मध्यप्रदेश का मान बढ़ाने वाले कलाकारों के निधन पर इनके परिवारों को 3,500 रुपये प्रतिमाह की आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। कला के प्रदर्शन के लिए कलाकारों को अलग-अलग स्थानों पर बुलाने पर जो रूपए 800 प्रतिदिन के हिसाब से मानदेय दिया जाता है। अब इसे बढ़ाकर 1500 रूपए और प्रतिदिन मिलने वाले 250 रूपए के भत्ते को बढ़ाकर 500 रूपए प्रतिदिन कर दिया जायेगा। इस अवसर पर केंद्रीय वीरेंद्र कुमार, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, मंत्री उषा ठाकुर, ओ.पी. सखलेचा सहित अन्य उपस्थित रहे।
संग्रहायल की यह है विशेषता


खजुराहो स्थित आदिवर्त जनजातीय लोक कला राज्य संग्रहालय परिसर में आदिवासी गांव की 7 जनजातियों को बसाया है। इस गांव में देशी-विदेशी पर्यटक आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता व जीवन शैली से परिचित हो सकेंगे। कोरकू, बेगा, गौड़ और भारिया जनजाति के परिवार आकर बसे हैं। आदिवासियों ने अपने पारंपरिक घरों को खुद लीप-पोत कर तैयार किया है। कोल, भील, गौंड़, बैगा, भारिया, कोरकू एवं सहारिया जनजाति के परिवार इस बस्ती में अपनी प्राचीन जीवन शैली के साथ रहेंगे। काष्ट शिल्पियों ने खेत और गेहूं बोने वाला हल यहां आकर ही तैयार किया है। विलुप्त हो चुके कृषि कार्य में उपयोग होने वाले बैलगाड़ी, बखर सहित अन्य उपकरण भी तैयार किए हैं। इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक पहुंच रहे हैं।

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