- भारत-तिब्बत समन्वय संघ के आह्वान पर श्रद्धालुओं ने कैलाश मानसरोवर मुक्ति का दोहराया संकल्प
- कैंट विधायक अशोक रोहाणी ने कहा-कैलाश मानसरोवर को चीन से मुक्ति का संकल्प दोहराना सार्थक होगा, भोले बाबा आप सभी को शक्ति देंगे
जबलपुर। हे भोले बाबा..! आप अपने मूल स्थान कैलाश मानसरोवर को चीन के चंगुल से मुक्त कराइए। यह प्रार्थना भारत तिब्बत समन्वय संघ ने की है। महाशिवरात्रि पर संस्कारधानी जबलपुर में विवेक कॉलोनी शिव मंदिर प्रांगण में प्रातः रुद्राभिषेक, हवन, सायं सुंदरकांड एवं महाआरती का आयोजन किया गया। महाआरती के बाद भारत-तिब्बत समन्वय संघ के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष (मध्य क्षेत्र) एवं विवेक नगर विकास समिति के संयोजक डॉ राजेश जायसवाल ने भारत तिब्बत समन्वय संघ के संकल्प को भगवान भोलेनाथ के समक्ष नगर वासियों से दोहराया। प्रार्थना की गई कि भोले बाबा के मूल स्थान कैलाश मानसरोवर को चीन के चंगुल से मुक्त कराया जाए।
भोले बाबा देंगे शक्ति : विधायक रोहाणी
जबलपुर कैंट से भाजपा विधायक अशोक रोहाणी ने श्रद्धालुओं को महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि कैलाश मानसरोवर को चीन से मुक्ति का संकल्प दोहराना सार्थक होगा। भोले बाबा आप सभी को शक्ति देंगे और आमजन की शक्ति से कैलाश मानसरोवर मुक्ति का आंदोलन आने वाले समय में जन आंदोलन का स्वरूप लेगा और हम सभी का सपना साकार होगा। कार्यक्रम में पार्षद बाबा श्रीवास्तव, राकेश जायसवाल, गुल्लू दुबे, एसके उपाध्याय, केसी सोनी, अवधेश तिवारी, दिनेश दुबे, जीआर मानकर, दादूराम खुरासिया, जुगल किशोर बोरिया सहित कॉलोनी के वरिष्ठजन, मातृशक्ति एवं युवा उपस्थित रहे।
कांग्रेस के समय में हुआ चीन का कब्जा
इतिहासकार बताते हैं कि संसद में हुई बहस के दस्तावेजों से पता चलता है कि कैलाश मानसरोवर तिब्बत में पड़ता था। हालांकि कभी वो हिस्सा भारतीय राजाओं के अधीन रहा है। बाद में मुगल और अंग्रेज आए तो उन्होंने इस पहाड़ी क्षेत्र में ज्यादा रूचि नहीं ली। अंग्रेजों के जाने के बाद चीन ने 1950 में तिब्बत पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। इतिहासकार बताते हैं कि उस समय वहां पर भारतीय सेना मजबूत स्थिति में थी। भारत चाहता तो तिब्बत की सुरक्षा के लिए चीन की सेना का मुकाबला कर सकता था। लेकिन नेहरू ने चीन को मित्र देश मानते हुए ऐसा नहीं किया। जब धर्मगुरू दलाई लामा और उनके समर्थकों को चीनी सेना ने खदेड़ा, तो भारतीय सेना उन्हें भारत ले आई। उस समय नेहरू चाहते तो कैलाश मानसरोवर को छुड़ा सकते थे, लेकिन उन्होंने इसकी जरूरत नहीं समझी। बाद में 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत को हार का सामना करना पड़ा।