Homeमध्यप्रदेशबंटने लगे गिफ्ट- साड़ियां, चुनाव जीतने होने लगीं 'बतकहियां'

बंटने लगे गिफ्ट- साड़ियां, चुनाव जीतने होने लगीं ‘बतकहियां’

  • जिन्हें है टिकट की पक्की उम्मीद,कैंप लगाकर सामग्री बांटने लगे
  • इस बार 40 लाख रूपए खर्च कर सकते हैं प्रत्याशी
  • जो टिकट के लिए लगा रहे जोर,वे अभी धर्मसंकट में

भोपाल। एक ओर निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विधानसभा चुनाव की तैयारी में मशगूल हैं,तो वहीं मध्यप्रदेश के प्रमुख राजनैतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में माहौल बनाने की कवायद में लगे हुए हैं। कांग्रेस और भाजपा के उन नेताओं ने जनता के बीच अभी से गिफ्ट,उपहार, साड़ियां, बच्चों को खिलौने,खाद्य सामग्री का वितरण करना आरंभ कर दिया है जिन्हें पार्टी से पूरी उम्मीद है कि टिकट उन्हें ही मिलेगी। विशेष रूप से जीते हुए बहुत से विधायक गिफ्ट बांटो अभियान में अभी से जुट गए हैं।

पांच साल तक जिन नेताओं को अपने क्षेत्र के लोगों से मिलने की फुर्सत नहीं मिल पाती थी, वे ही अब सहज रूप से उपलब्ध नजर आ रहे हैं। शादी-विवाह के निकल चुके सीजन में भी नेतागण समय निकालकर शरीक होते थे,ताकि चुनाव के समय किसी भी प्रकार के सवालों से बचा जा सके। एक और विशेष बात नेताओं के लिए है। वो ये कि इसबार के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के लिए चुनाव खर्च सीमा 28 लाख रूपए से बढ़ाकर 40 लाख रूपए हो गई है। हालांकि यह आदेश एक साल पहले का है मगर मध्यप्रदेश में यह पहली बार अमल में लाया जाने वाला है। इसलिए अधिक खर्चने वालों की पौ-बारह हो जाएगी।

ढ़ाई हजार करोड़ हो जाएंगे खर्च-

एक मोटे अनुमान के मुताबिक साल के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों द्वारा ढाई हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने की उम्मीद है। 230 विधानसभा क्षेत्रों से सैकड़ों उम्मीदवार चुनाव में अपनी किस्मत आजमाएंगे और बढ़ी हुई ख़र्च सीमा को देखते हुए इतने ख़र्च की उम्मीद की जा रही है।

इनका क्या होगा-

मध्यप्रदेश में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अपनी पार्टी की ओर से टिकट मिलने की पूरी उम्मीद तो लगाए बैठे हैं लेकिन उनके मन में डर है कि खुदा-ना-खास्ता किसी कारणवश टिकट न मिली तो जो धन वह लोगों को पटाने के चक्कर में खर्च कर चुके हैं उसका क्या होगा। एक जानकारी के अनुसार प्रदेश में अभी तक करोड़ों रूपए यूं ही खर्च किया जा चुका है।

तो क्या धन वाले ही लड़ पाएंगे चुनाव ?

यह बात तो लोगों को अब सच लगने लगी है कि बिना धन वाले को किसी भी पार्टी से चुनाव के लिए टिकट मांगना और मिलने पर लड़ने की स्थिति में करोड़ों खर्च करना नामुमकिन सा लगने लगा है। गरीब प्रत्याशी को यदि टिकट मिलती भी है और वह मैदान में उतरता है तो उसे धनाढ्यों की कठपुतली बनना पड़ेगा। चुनाव जीते तो वसूली की गुंजाइश होगी वरना जिन्होंने धन लगाया है वे हारने के बाद भी चैन से जीने नहीं देंगे।

पार्टियां भी तलाश रहीं ‘मालदार’-

टिकट वितरण से पहले प्रदेश के प्राय: सभी जिलों से यह खबरें निकलकर सामने आ रही हैं कि राजनीतिक पार्टियां भी फटेहालों के बजाय ‘मालदार’ यानी पैसे वाले अथवा चुनाव में धन इकट्ठा कर सकने वाले जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश में हैं। विभिन्न पार्टियों की ओर से नियुक्त किए जा रहे आब्जर्वर्स और प्रभारियों के आगे पीछे प्रत्याशियों की लंबी कतारें दिखने का सबसे बड़ा कारण ‘धन’ भी बताया जा रहा है।

आचार संहिता के पहले ही हो जाता है ‘बड़ा खेल’ !

दरअसल,धन खर्च करके वोटरों की सहानुभूति अपने पक्ष में करने की चुनावी रणनीति के तहत ही अधिकांश उम्मीदवार पार्टी से हरी झंडी मिलने के तत्काल बाद लाखों खर्च कर देते हैं ताकि चुनाव आचार संहिता लगने के बाद उन्हें खर्च होने वाले धन का न तो हिसाब देना पड़ेगा और न ही वोटरों को रिझाने के लिए ‘ऐनवक्त’ का इंतजार करना पड़ेगा। नतीजतन,कई प्रत्याशी टिकट मिलने का इंतजार नहीं करते बल्कि उससे पहले ‘बड़ा खेल’ खेलते हैं।

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