जबलपुर। एक समय था जब हर शहरवासी के कानों में नए-नए नारे गूंजा करते थे। कहीं कांपटीशन, तो कहीं रैली और अभियान चलते रहते थे। लेकिन दो साल से शहर खामोश सा है। कभी कोई नेता आ गया तो लगता है कि अरे शहर के भाग्य खुल गए। कभी किसी नेता का जन्मदिन आया तो लगता है कि अरे..! हमारे शहर में भी ये नेता हैं। यह स्थिति इसलिए है क्योंकि महाकोशल अंचल से कोई मंत्री नहीं है। दूसरा नगर सरकार के गए हुए, करीब-करीब 2 साल होने को आ रहे हैं। अभी तक न तो चुनाव का अता-पता है और न ही कोई सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। ऐसे में जनता को अभी कुछ दिन और ऐसे ही मायूसी में दिन गुजारने होंगे। यानि कि शहर के भाग्य का फैसला प्रशासक के हाथ में ही होगा।
जब सब चुनाव हो रहे.. तो नगर निगम के क्यों नहीं
बीते सालों में 22 विधानसभाओं के चुनाव हुए.. इसके बाद इक्का-दुक्का विधानसभा के चुनाव भी हो गए। फिर अभी हाल ही में एक लोकसभा और तीन विधानसभा के भी चुनाव हो गए। अभी फिलहाल में कोरोना भी नहीं है। ऐसे में सभी प्रक्रियाओं को पूरा कर चुनाव कराए जा सकते थे। लेकिन ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है। हां, पंचायत के चुनाव होने की संभावना जरूर नजर आ रही है और सरकार तैयारी में भी जुटी है, लेकिन नगरीय निकाय के चुनाव कब होंगे.. यह कोई भी बताने की स्थिति में नहीं है।
जनता किसे सुनाए अपना दर्द..!
शहर की जनता 2 साल से त्रस्त है। पहले तो वह पार्षद के पास अपनी समस्याएं लेकर पहुंच जाती थी। खराब रोड, नाली और पानी से लेकर अपनी सभी समस्याएं पार्षद को सुना देती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। पार्षद के पास जाओ तो वह दो टूक कह देते हैं कि भैया..! हम तो अब भूतपूर्व हो गए हैं। नगर निगम चले जाओ.. वहीं सुनवाई होगी। अगर धोखे से कोई नगर निगम पहुंच गया.. तो वहां कोई सुनने वाला नहीं मिलता। ऐसे में जनता सिर्फ कोसने के अलावा कुछ नहीं कर सकती। उसे तो इंतजार है कि चुनाव हों और वह अपना पसंदीदा प्रतिनिधि चुन सके, जो उसके दुख-दर्द में शामिल हो सके।
2 साल से शहर भगवान भरोसे, जनता भी अनाथ सा महसूस कर रही..!
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