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खेती के मशीनीकरण और प्रयोगधर्मिता ने ध्वस्त कर दिया पारम्परिक ढाँचा : स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

  • गोवंश कभी “अनार्थिक और अनुपयोगी“ नहीं होता, गाय का दूध अमृत, हर युग में आवश्यकता है

जबलपुर। मप्र गोसंवर्द्धन बोर्ड की कार्य परिषद् के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि जी ने कहा कि आज कृषि के क्षेत्र में याँत्रिकीकरण के कारण भारतीय पारम्परिक कृषि पद्धति अप्रासंगिक हो गई है। भौतिक विज्ञान के इस युग में कृषि के क्षेत्र में नित नये प्रयोग होने से “प्रयोगधर्मिता“ के चलते “भारतीय कृषि का पारम्परिक ढाँचा एक प्रकार से ध्वस्त हो रहा है“। यह चिंता का विषय तो होना ही चाहिये, इस पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता भी है। उन्होंने कहा कि गोवंश कभी “अनार्थिक और अनुपयोगी“ नहीं होता। गाय हर युग में आवश्यकता है। उन्होंने गोपालन पर जोर देकर पारंपरिक कृषि पद्धति अपनाने की अपील भी की है।
भारतीय पारंपरिक कृषि पद्धति में अनेक विसंगतियाँ प्रवेश कर गईं
अखिलेश्वरानंद गिरि जी ने कहा कि रबी की फसल और खरीब की फसल खेतों में परिपक्व हो जाने के बाद किसान उसकी कटाई करवाता है। लाक खलिहानों में आकर उसकी गहानी-उड़ानी के बाद जो भूसा बनता है। वह मवेशियों का आहार होता है। उसे पशु आहार हेतु सुरक्षित किया जाना एक सामान्य और व्यवहारिक सिद्धांत है, जो परंपरागत भी है। पहले किसान कृषि उपयोगी पशुओं का अपने खेत खलिहानों में पालन करता था। गोवंश का भी पालन करता था। जब से भारतीय कृषकों ने कृषि के क्षेत्र में यांत्रिकीकरण का प्रयोग करना आरंभ कर दिया है, तब से भारतीय पारम्परिक कृषि पद्धति में अनेक विसंगतियाँ प्रवेश कर गई हैं।
कृषि के साथ-साथ पशुपालन अनिवार्य था
उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि भूमि की भूख और प्यास बुझाने जैविक खाद और जैविक रसायनों (जैविक कीट नियंत्रकों) का प्रयोग कृषि भूमि की उर्वरकता को बनाये रखने के लिये होता था, कृषि के साथ-साथ पशुपालन कई कारणों से अनिवार्य था। लेकिन आज कृषि के क्षेत्र में याँत्रिकीकरण के कारण भारतीय पारम्परिक कृषि पद्धति अप्रासंगिक सी हो गई है। जबकि गोवंश से प्राप्त पञ्चगव्य कभी अप्रासंगिक नहीं हुआ। दूध,दही, मठा, घी, गोबर, गोमूत्र सदैव और प्रत्येक युग में प्रासंगिक रहा है। आज के भौतिक विज्ञान के इस युग में कृषि के क्षेत्र में नित नये प्रयोग होने से“प्रयोगधर्मिता“के चलते “भारतीय कृषि का पारम्परिक ढाँचा एक प्रकार से ध्वस्त हो रहा है“;यह चिंता का विषय तो होना ही चाहिये, इस पर गम्भीर चिंतन की आवश्यकता भी है। भारतीय कृषि वैज्ञानिक एवं भारतीय गो वैज्ञानिकों के परस्पर वैचारिक विमर्श युगानुकूल और सामयिक उपक्रम हैं।
अमृत कभी “अनुपयोगी“ नहीं हो सकता है?
महामंडलेश्वर अखिलेश्वरानंद गिरि जी ने कहा कि किसानों की गोवंश के प्रति यह धारणा की “पूत न देने वाली और दूध न देने वाली गाय तथा कृषि कार्य में यांत्रिकी प्रयोग के कारण बैल की अब कोई उपयोगिता नहीं रह गई है“। उपर्युक्त कारणों से “गोवंश अनार्थिक और अनुपयोगी हो गया है जबकि तथ्य इसके बिल्कुल विपरीत है। गोवंश कभी भी “अनार्थिक और अनुपयोगी“ नहीं होता। गाय के दूध को अमृत माना गया है। उसकी हर युग में आवश्यकता है। अमृत भी कभी “अनुपयोगी“ हो सकता है?
गाय का दूध सबसे सस्ता, गोबर और गोमूत्र बहुत महंगा
उन्होंने कहा कि आर्थिक लाभ की दृष्टि से विचार करें तो गाय का दूध सबसे सस्ता उत्पाद है, जबकि गाय से प्राप्त गोबर और गोमूत्र बहुत मँहगा (बहुमूल्य) उत्पाद है। मध्यप्रदेश के संदर्भ में यह जानकर प्रसन्नता होनी चाहिये कि-मध्यप्रदेश ही एक मात्र ऐसा भौगोलिक परिक्षेत्र है जहाँ देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक जंगल है। उन्होंने कहा कि मूक प्राणियों के जीवन रक्षा हेतु यहाँ “प्राकृतिक समीकरण“अनुकूल है। प्राकृतिक समीकरण के मौजूद होने के कारण यहाँ हम और आप शासन/प्रशासन के साथ मिलकर मूक प्राणियों के लिये बेहतर से भी बेहतर कार्य खड़ा कर सकते हैं। मध्यप्रदेश के मूक पशुओं के आहार की जिला बंदी के निर्देश प्रशासनिक तंत्र को जारी करने का अर्थ यह नहीं है कि-कृषकों के व्यापार करने के मौलिक अधिकारों का हनन हो।
जिलाबंदी का निर्देश देकर पशु आहार की प्राथमिकता सुनिश्चित की
अखिलेश्वरानंद गिरि जी ने कहा कि क्या मूक प्राणियों का कोई अधिकार नहीं है, जीवन जीना उनका नैसर्गिक अधिकार है। हम प्रकृति के हर उत्पादन में अपना अधिकार जता कर मूक प्राणियों की सहज और स्वाभाविक जीवन जीने के अधिकार में हस्तक्षेप करते जा रहे हैं। मूक प्राणियों के हक की भूमि मे (चरनोई या गोचर भूमि में) मानव डाका नहीं डाल रहा है? मध्यप्रदेश तो अब गोशालाओं का प्रदेश हो गया है। आज 1758 गोशालाओं में दो लाख अठहत्तर गोवंश सुरक्षित हैं। क्या इनके आहार को दाम बढ़ाकर “फैक्ट्री मालिकों, उद्योग जगत् को) विक्रय कर पशु के स्वाभिमान आहार को हम ईंधन के रूप में दुरुपयोग को प्रतिबंधित न कर उसके विनष्ट करने की अबाध छूट दे दें? उन्होंने कहा कि हमने पशु आहार की जिला बंदी का निर्देश देकर पशु आहार की प्राथमिकता सुनिश्चित की है। पहले हमारे जिले के पशु आहार की चिंता हो, बाद में हम व्यापार करें। पशु आहार के दुरुपयोग को रोकना जिले के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी प्राथमिकता होनी चाहिए। हार्वेस्टर मशीन से फसल कटवाने के बाद खेत के “नरवई“में आग लगा देना, यह कौन सी बुद्धिमत्ता है? उन्होंने कहा कि गोपालन और पशुधन संरक्षण हमारी प्राथमिकता में है। इसके हर सम्भव उपायों को खुले मन से सोचना इस युग की अनिवार्य आवश्यकता है।

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