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गाय, चलता फिरता औषधालय है, वह चलता फिरता देवालय है-अखिलेश्वरानंद गिरि जी महाराज

गाय के शरीर में 33 कोटि देवताओं का है निवास
जबलपुर। गायों के सम्बन्ध में यहाँ तक कहा गया है कि गाय, चलता फिरता औषधालय है, वह चलता फिरता देवालय है। गाय के पञ्चगव्य में औषधीय गुण हैं और गाय के शरीर में 33 कोटि देवताओं का निवास है। मध्यप्रदेश गोपालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड की कार्यपरिषद् के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा कि मनुष्य जब कोई काम स्वार्थ बुद्धि या आर्थिक लाभ पाने की दृष्टि से करता है तब वह, उस काम में रुचि लेता है, किन्तु जब उसकी स्वार्थ या अर्थ लोलुप बुद्धि में अनार्थिक और अनुपयोगी ये दो शब्द प्रवेश कर जाते हैं तब वह भूल जाता है कि, गोपालन और गोसेवा भारतवर्ष की पारम्परिक अभिरुचि रही है।
उन्होंने कहा कि हम भारतीयों के पूर्वज पीढ़ी दर पीढ़ी गोपालन और गोसेवा के प्रति प्रत्येक युग में समर्पित रहे हैं, उन्हीं पूर्वजों के हम वंशज आज यह नहीं समझ पा रहे हैं या स्वयं को समझा नहीं पा रहे हैं कि, गोपालन, गोसेवा के बहुविध लाभ हैं। गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत, गोबर और गोमूत्र जितना पुरातनकाल में उपयोगी था, उसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही बनी हुई है। गायों दूध, दही, घी मनुष्यों के लिये उपयोगी और गुणकारी है तो, उसका (गोवंश से प्राप्त) गोबर और गोमूत्र हमारी धरती के लिये उपयोगी और गुणकारी है। यही कारण है कि, गोवंश को कभी भी अनुपयोगी और अनार्थिक नहीं माना गया है। इस कारण, गायों (गोवंश) का संरक्षण और संवद्र्धन, प्रत्येक युग के अनुकूल रहा है। भारतीय धर्म शास्त्रों ने गायों की महिमा का गायन किया है।
मध्यप्रदेश गोपालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड की कार्यपरिषद् के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि कहते हैं कि हमने शास्त्रों को गड़रिये का गीत कभी नहीं माना है बल्कि, भारतीय धर्म ग्रन्थों में वैज्ञानिक शोध के आधार सूत्रों को खोजा है। इसलिए, हमारे भारतीय ऋषि-मुनियों ने धर्म ग्रन्थों वर्णित धर्म सूत्रों को विज्ञान कहा है। विज्ञान के दोनों पक्ष थ्योरी (विवरण) और प्रेक्टिकल (प्रयोगधर्मिता) हमारे भारतीय धर्म शास्त्रों में उपलब्ध हैं। भारतीय गोवंश का जहाँ एक ओर धर्म शास्त्रों में धार्मिक महत्व प्रतिपादित हुआ है। वहीं उसका वैज्ञानिक महत्व भी रेखांकित किया गया है। उदाहरण के तौर पर धर्मशास्त्र कहते हैं गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास है तो हम लक्ष्मी से तात्पर्य निकालते हैं धन का।
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि कहते हैं कि आज गोबर का वैज्ञानिक महत्व जब हम लेबोरेट्री के माध्यम से जानना चाहते हैं तब हमें ज्ञात होता है। गाय के गोबर में 16 प्रकार के खनिज तत्व होते हैं, जिनका आर्थिक मूल्यांकन होता है। इस दृष्टि से गोवंश का आर्थिक महत्व है। गोमूत्र में गंगा का वास धार्मिक दृष्टि है तो गंगाजल का जब वैज्ञानिक रीति से अन्वेषण होता है तब गंगाजल की प्रापर्टी निकाली जाती है तो उसमें 23प्रकार के रासायनिक घटक पाये गये हैं। गंगा की प्रापर्टी गोमूत्र में पायी गई है। गोमूत्र से आयुर्वेद की अनेक औषधियों का शोधन किया जाता है। गाय से प्राप्त पञ्चगव्य से आयुर्वेदिक औषधियाँ बनायी जा रही हैं, फिर वैज्ञानिकों ने गाय के दूध का भी शोधन करके बताया; सम्पूर्ण विश्व को अधुनातन जानकारी दी कि भारतीय गायों का ही दूध ए-2 मिल्क है। इस मिल्क से बनाया गया घी ही यज्ञ में प्रयोग किये जाने ने एक तोला घृत चावल से गाय के गोबर से प्राप्त सूखे उपल (कंडे) पर हवन करने से एक टन आक्सीजन बनती है। भारतीय गायों के दूध में ही स्वर्ण तत्त्व पाया जाता है, यही कारण है कि गाय के दूध को अमृत की संज्ञा दी गई है।

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