अंग्रेजी-हिंदी मीडियम में उलझे बच्चे, कहां पढ़ें, क्या पढ़ें कुछ समझ नहीं आ रहा
जबलपुर। जरा सोचिए अगर आपका बच्चा पहली से पांचवी तक हिंदी मीडियम पढ़े, उसके बाद छठवीं से लेकर आठवीं तक अंग्रेजी मीडियम और फिर 9वीं से लेकर 12वीं तक हिंदी मीडियम में पढ़ाई करे तो क्या होगा? ऐसे में वह न तो हिंदी मीडियम का रह पाएगा, ना पूरी तरह से अंग्रेजी मीडियम का। लेकिन शिक्षा का ऐसा सिस्टम शिक्षा विभाग में चल रहा है। जबलपुर के पनागर ब्लॉक में संचालित शासकीय इंग्लिश मीडियम स्कूल में ऐसा ही हो रहा है। यहां पर छठवीं से लेकर आठवीं तक बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। उसके बाद ये बच्चे अगली क्लास में क्या करेंगे.. इसका जवाब शिक्षा विभाग के पास नहीं है। यह बच्चे पहली से लेकर पांचवीं तक हिंदी मीडियम पढक़र आए हैं और छठवीं से लेकर आठवीं तक अंग्रेजी मीडियम पढ़ेंगे लेकिन नौवीं के बाद यह अंग्रेजी मीडियम कहां और किस स्कूल में पढ़ेंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है। दरअसल स्कूल शिक्षा विभाग ने 2015-16 में ग्रामीण इलाकों के 224 विकासखंडों में अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोलने का निर्णय किया था। पनागर ब्लाक में पहली से पांचवीं तक का अंग्रेजी मीडियम स्कूल न खोलकर छठवीं से आठवीं तक कर दिया गया। अब बच्चे नौवीं के बाद कहां पर अंग्रेजी मीडियम पढ़ेंगे, इसका जवा कहीं से नहीं मिल पा रहा है। पनागर में संचालित इस स्कूल के बच्चों के साथ उन्हें पढ़ा रहे शिक्षक भी चिंतित हैं। इसके लिए वे कई बार शिक्षा विभाग को पत्र भी लिख चुके हैं लेकिन शिक्षा विभाग अब भी गहरी नींद में है।
शासकीय बालक माध्यमिक शाला पनागर में जब इस स्कूल की शुरुआत हुई थी, तब यहां पर 229 बच्चे थे। लेकिन अब यहां पर बच्चों की संख्या 119 रह गई है। अगर यही हाल रहा तो लगातार बच्चे यहां पर कम होते रहेंगे। यहां के शिक्षक इसी तरह बच्चों को छठवीं से आठवीं तक अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा रहे हैं क्योंकि वे स्वयं हिंदी माध्यम से हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि जब यह बच्चे आठवीं पास करके निकलेंगे तो वे एडमिशन कहां पर लेंगे क्योंकि प्राइवेट शिक्षा काफी महंगी हो गई है। ऐसे में छात्रों को आठवीं के बाद शायद पढ़ाई बंद ही करनी पड़ेगी क्योंकि जो नींव तैयार की जा रही है, बच्चों के लिए वही ठीक नहीं है। ऐसे में जरूरत है कि शिक्षा विभाग जागे और सही निर्णय ले जिससे बच्चों का भविष्य बच सके।