Homeदेशएंटी मोदी मोर्चा: कोई इधर गिर रहा कोई उधर!

एंटी मोदी मोर्चा: कोई इधर गिर रहा कोई उधर!

  • सूत्रधार नीतीश अपनी जमीन बचाने की जुगत में जुट गए
  • विपक्षी एकता को झटके पे झटकों से अगली मीटिंग की तारीख नहीं हो पा रही तय
  • राहुल की लीडरशिप के नीचे कई बड़े नेता काम करने को नहीं तैयार

नई दिल्ली। बड़ी मशक्कत और कई महीनों की कोशिश के बाद नीतीश कुमार पटना में विपक्षी एकता के लिए मीटिंग करने में सफल हो पाए थे। लेकिन पहली ही मीटिंग में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के विरोध में अपनी अलग राह पकड़ ली। ओडिशा के बीजू जनता दल से नवीन पटनायक, तेलंगाना के सीएम केसीआर,बसपा सुप्रीमो मायावती और कई विपक्षी दलों की राह अलग होने से यह तय हो गया है कि एंटी मोदी मोर्चा अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा है। खड़े होने की कोशिश भी करते हैं तो मोदी टीम उन्हें ऐसा धोबी पछाड़ लगाती है कि महाराष्ट्र में शरद पवार जैसी स्थिति निर्मित कर दी जाती है। शरद पवार को एंटी मोदी मोर्चा में चाणक्य की भूमिका के तौरपर जाना जाने लगा था।

अगली बैठक पर संशय बरकरार-

महाराष्ट्र घटनाक्रम के बाद विपक्षी एकता वाली बैठक की तारीख अभी तय नहीं हो पा रही है। क्योंकि महाराष्ट्र के बाद बिहार में जेडीयू भी अपने विधायकों को एकजुट करने की कवायद में जुटा हुआ है। बिहार में भी एनसीपी जैसी टूट का खतरा जेडीयू के नेता भांप चुके हैं। यही कारण है कि जो नीतीश बाबू अपनी ही पार्टी के विधायकों से मिलने का टाइम नहीं दे पाते थे, वो ही अब बुला-बुला कर उनसे मिलने में व्यस्त हैं।

अखिलेश केसीआर से मिलने पहुंचे-

उधर यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव तेलंगाना के सीएम केसीआर से मिलने पहुंचे। ये वही केसीआर हैं जो बिना कांग्रेस के भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने का प्रयास कर चुके हैं। वे राहुल गांधी की अगुवाई अथवा उनकी भागीदारी में बन रही विपक्षी एकता से दूर रहने की बातें करते रहे हैं।

ममता दीदी राहुल को लीडर बनते देखना नहीं चाहतीं-

पटना मीटिंग में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी बेशक मौजूद रहीं हैं। लेकिन वे आज भी अपने उस स्टैंड पर कायम हैं कि पीएम केंडिडेट के रूप में राहुल गांधी की लीडरशिप उन्हें स्वीकार्य नहीं है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को गर्त में पहुंचा चुकी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कभी भी नहीं चाहेंगे कि राहुल गांधी को विपक्ष का बड़ा चेहरा बनाकर लोकसभा का चुनाव लड़ा जाए। केसीआर से उनकी ताजा मुलाकात को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। संभव है कि अखिलेश केसीआर की तरह राहुल गांधी की लीडरशिप के बजाय एक अलग मोदी विरोधी मोर्चा की संभावनाएं तलाश रहे हों।

राहुल से इतनी एलर्जी क्यों-

ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, केसीआर, मायावती और कुछ दलों के नेताओं को राहुल गांधी को विपक्ष का मुख्य चेहरा बनाए जाने की संभावनाओं को लेकर इसलिए एलर्जी हो रही है कि जिस राज्य में वे राजनीति कर रहे हैं, वहां कांग्रेस उनकी मुख्य दुश्मन है या फिर उनके राज्य में उसकी मौजूदगी कमजोर है। इन नेताओं को यह डर सता रहा है कि यदि विपक्ष एकजुट हो गया और कांग्रेस का पीएम केंडिडेट समेत लोकसभा सीटों पर समझौता करने की नौबत आएगी तो कांग्रेस न केवल फायदे में रहेगी बल्कि क्षेत्रीय दलों की वजह से कांग्रेस की हैसियत में इजाफा हो सकता है।
कुल मिलाकर विपक्षी एकता होना और फिर आगे इसे लेकर चलने में बहुत उलझने हैं।

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