उत्तराखंड। सन 1776 में किन्हीं कारणों से ज्योतिषपीठ आचार्य विहीन हो गई थी। इसके बाद से कुछ परंपराएं टूट गई थीं। लेकिन पूर्वाचार्यों की कृपा से वर्तमान ज्योतिषपीठ के 46वें शंकराचार्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की महाराज ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पर अभिषिक्त होने के बाद एक बार फिर से आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा प्रारंभ हुई है। 19/11/2022 को मध्याह्न 3.20 बजे विधि-विधान के साथ समस्त परम्पराओं का परिपालन करते हुए भगवान के कपाट शीतकाल के लिए बंद हुए। पूज्य शंकराचार्य जी महाराज दोपहर 1.50 बजे मन्दिर परिसर में पहुंचे और शंकराचार्य मंदिर परिसर में विराजमान हुए। भगवती लक्ष्मी भगवान बदरीनारायण की महाआरती में उपस्थित होकर भगवान के श्रीविग्रह का दर्शन कर प्रसाद प्राप्त किया।
ज्योतिष्पीठ के इतिहास में लंबे समय के बाद पहली बार पीठ के शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपराओं का निर्वहन करते हुए बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के अवसर पर अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराई। इसको लेकर सनातन धर्मावलंबियों में खासा उत्साह और खुशी है । इस अवसर रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रवीन्द्र भट्ट, स्वामी रामानन्द, सहजानन्द ब्रह्मचारी, केशवानन्द, आशुतोष डिमरी, भास्कर डिमरी, मंदिर समिति अध्यक्ष अजेन्द्र अजय, मुख्य कार्याधिकारी योगेन्द्र सिंह, सुनील तिवारी, राजू चौहान, गिरीश चौहान, भुवनचन्द्र उनियाल, शिवानन्द उनियाल, ऋषि सती, मनीषमणि त्रिपाठी, कमलेश कुकरेती, पवन मिश्र, पवन डिमरी, प्रवेश डिमरी, श्रीराम आदि हजारों की संख्या में भक्ता उपस्थित रहे।
235 वर्ष बाद ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य के सान्निध्य में भगवान बदरीविशाल का कपाट बंद हुआ
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