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देश का एक एस गाँव जिसे ‘संस्कृत गांव’ के नाम से जाना जाता है।

राजगढ़ के झिरी गांव को पूरे देश में ‘संस्कृत गांव’ के नाम से जाना जाता है। झिरी गांव के ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में साल 1978 से लगातार आरएसएस की एक शाखा नियमित रूप लगती आ रही है। साल 2003 में संघ की जिला बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि शाखा के माध्यम से गांव और समाज में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है।

ग्रामीणों के अनुसार, इस सवाल के जवाब में झिरी गांव निवासी उदय सिंह चौहान और तत्कालीन जिला कार्यवाहक ने यह सुझाव दिया कि ग्रामीणों को संस्कृत भाषा सिखाई जानी चाहिए, जिससे बच्चो में संस्कार के साथ ही इस भाषा के प्रति रुझान बने। गांव के उदय सिंह चौहान और तत्कालीन जिला कार्यवाहक के सुझाव को स्वीकार करते हुए संस्कृत भारती ने झिरी गांव में एक महिला संस्कृत विद्वान और एक आचार्य को लाया गया। उनके रहने की व्यवस्था गांव के ही दो अलग-अलग परिवारों के द्वारा की गई थी।

संस्कृत भारती की एक महिला विद्वान विमला पन्ना और बाला प्रसाद तिवारी ने साल 2004 से झिरी गांव में नियमित रूप से संस्कृत पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद धीरे-धीरे इस गांव के सभी लोग संस्कृत भाषी हो गए और आज के इस दौर में भी यहां संस्कृत बोली जाती है। झिरी गांव में सभी उम्र के लोग संस्कृत में एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और यह गांव अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है।

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