मप्र में 4 लाख बेसहारा गोवंश का होगा संरक्षण, 150 गोसेवा केंद्रों में गो-उत्पाद बनना आरंभ: महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि

जबलपुर। मध्यप्रदेश में एक कामधेनु गो-अभयारण्य, एक गोवंश वन्य विहार और 627 गोशालाएं हैं, जो मध्यप्रदेश गोसंवद्र्धन बोर्ड द्वारा पंजीकृत तथा क्रियाशील हैं और म.प्र. शासन से अनुदान प्राप्त हैं। वर्ष 2018 से 2021 मुख्यमंत्री गो सेवा योजना और मनरेगा से 2520 गौशालाएं पंचायत स्तर पर बनाई गई हैं। इनका संचालन भी आरम्भ हो गया है तो कुछ का अभी निर्माण कार्य चल रहा है। अनुमान के मुताबिक सभी गो सेवा एवं संरक्षण केंद्रों में मध्यप्रदेश के लगभग 4 लाख बेसहारा और निराश्रित गोवंश को संरक्षित किया जा सकेगा। इन गो-सेवा केंद्रों से भविष्य में गोवंश से प्राप्त गोबर और गोमूत्र से अनेक प्रकार के गो-उत्पाद बनने लगेंगे। अभी मध्यप्रदेश में लगभग 150 गोसेवा केंद्रों में गो उत्पाद बनाना आरम्भ हो गया है। यह जानकारी म.प्र. गोपालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड कार्य परिषद के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने दी है।
उन्होंने बताया कि जिन गोशालाओं में गोवंश आ गये हैं और जिनका विधिवत संचालन हो रहा है, उन गोशालाओं में भूसा-चारा, दाना के लिए अनुदान राशि शासन द्वारा दी जा रही है। उन्होंने बताया कि प्रदेश के नागरिकों के आर्थिक सहयोग से गो-ग्रास निधि के रूप में प्रदान करने की प्रेरणा जागृत की जा रही है। महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि का मानना है कि गोशालाओं का संचालन स्वयं सेवी संगठनों का काम है, सरकार का नहीं। सरकार तो अपने हिस्से का काम कर रही है। गोशालायें निर्माण कराकर पंचायतों को सौंपना, चारा,भूसा, अनुदान राशि देना, गायों के विचरण और चरनोई के लिए पाँच-पाँच एकड़ भूमि गोशालाओं के लिए दी जा रही है। इसके अलावा पानी, प्रकाश उपलब्ध कराने का काम सरकार कर रही है। उन्होंने अपील की कि गोशाला संचालन के लिए समाज सेवी संस्था व स्वयं सेवी संगठनों को आगे आना आना चाहिये।
प्राचीन काल के ऋषि-मुनि उस युग के श्रेष्ठ वैज्ञानिक व आविष्कारक रहे
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि का कहना है कि प्राचीन भारत में गोपालन की भारतीय परंपरागत अभिरुचि के कारण ही घर-घर व गांव-गांव दूध-घी की नदियाँ बहती थीं। हम वर्तमान में भी उक्त लोकोक्ति को चरितार्थ कर सकते हैं। महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि भारतवर्ष के प्राचीन काल के ऋषि-मुनि उस युग के श्रेष्ठ वैज्ञानिक, आविष्कारक, अन्वेषक, शोधकर्ता रहे हैं। उन्होंने जीवन जीने के महत्वपूर्ण सूत्र दिये हैं। हम सभी उन अन्वेषणकर्ताओं के प्रति कृतज्ञ हैं।
अनेक पर्वों की नींव पूर्वजों ने रखी
उन्होंने कहा कि भारतवर्ष में कृषि और गोपालन सृष्टि के आरंभकाल से ही स्थापित तथ्य हैं। इसीलिये प्रत्येक युग में प्रासंगिक बनाये रखने के लिये कृषि और गोवंश तथा प्रकृति को केंद्रित करके अनेक पर्वों की नींव हमारे देश में हमारे पूर्वजों के द्वारा रखी गई। महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि किसी भी देश को आर्थिक और भौतिक दृष्टि से समृद्धि के शिखर पर पहुँचाने में उस देश की कृषि, गोवंश एवं प्रकृति का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिये कृषि रक्षण, पर्यावरण संरक्षण और गोवंश संरक्षण-संवद्र्धन में सामाजिक अभिरुचि के निवेश की विधायें समय-समय पर जन्म लेती हैं। नागपंचमी पर्व, गंगा दशहरा, नर्मदा जन्मोत्सव, वत्स द्वादशी, हल षष्टी, गोवद्र्धन पूजा, गोपाष्टमी पूजन, वसंतोत्सव, मकर संक्रांति इत्यादि पर्व भौतिक विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
मध्यप्रदेश के गाँव-गाँव में, प्रत्येक घर में मनाया जाए गोपाष्टमी पर्व
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने बताया कि आगामी 12 नवंबर को गोपाष्टमी का पावन पर्व है। उन्होंने सभी संगठनों से अपील की है कि गोपाष्टमी का पर्व मध्यप्रदेश के गाँव-गाँव में, प्रत्येक घर में मनाया जाये। मध्यप्रदेश में जहाँ-जहाँ भी गोशालायें हैं, वहाँ सुबह गोपूजन करें। गोशालाओं में गायों के लिये हरा चारा, घास, भूसा, चूनी-चोकर, खली तथा रात्रि में अपने घरों में पानी में चने की दाल भिगोकर रखें और वह दाल गुड़ के साथ मिश्रित कर गायों को खिलायें। उन्होंने कहा कि एक-एक रोटी अपने-अपने घरों से बनाकर ले जायें और अपने हाथों से गायों खिलायें। कम से कम 10 रुपये और अधिकतम 100 रुपये की राशि गोशालाओं को समर्पित करें। उन्होंने कहा कि सभी संकल्प भी लें कि हम आज से एक वर्ष पर्यंत भोजन करने से पूर्व प्रतिदिन 10 रुपये गोग्रास के निमित्त निकालकर एक गुल्लक में संकलित करेंगे। यह राशि वर्ष भर में 3650 रुपया होगी। अगले वर्ष इस राशि को गोपाष्टमी के दिन अपने गाँव, घर, मुहल्ले की निकटतम गोशाला में गोपाष्टमी के दिन समर्पित करें। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सर्वाधिक गोशालाओं वाला प्रदेश है। गोशालायें निर्माण करवाकर प्रदेश सरकार अपने हिस्से का कार्य कर रही है। गोशालाओं का संचालन आमजनों के सहयोग से होना चाहिये।

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