भारत सरकार और दक्षिण अफ्रीका की सरकार से इस संबंध में एग्रीमेंट हुआ
वनमंत्री कुंवर विजय शाह ने कहा-12 चीतों की खेप हर साल मध्यप्रदेश आएगी, गांधीसागर और नौरादेही अभयारण्य में छोड़ा जाएगा
भोपाल। नामीबिया से आए 8 चीतों ने कूनो नेशनल पार्क को 7 दशक बाद आबाद कर दिया। इसके बाद 18 फरवरी को भी दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते आ गए हैं। कूनो-पालपुर अभयारण्य में अब 20 चीते हो गए हैं। प्रदेश में चीतों का ये कुनबा लगातार बढ़ता जाएगा। कूनो के बाद दूसरे अभयारण्यों में भी पर्यटक चीतों का दीदार कर सकेंगे। अब एक खुशखबरी और आ रही है। अब हर साल मध्यप्रदेश को 12 चीते मिलेंगे। भारत सरकार और दक्षिण अफ्रीका की सरकार से इस संबंध में एग्रीमेंट हो चुका है। वनमंत्री कुंवर विजय शाह ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि साउथ अफ्रीका से 12 चीतों की खेप हर साल मध्यप्रदेश आएगी। इन्हें अब गांधीसागर और नौरादेही अभयारण्य में भी छोड़ा जाएगा। इस तरह मध्यप्रदेश चीता स्टेट भी बन गया है। टाइगर स्टेट का दर्जा पहले से ही मध्यप्रदेश को मिला हुआ है।
गांधी सागर-नौरादेही अभयारण्य में छोड़े जाएंगे
वनमंत्री विजय शाह ने बताया कि नीमच-मंदसौर जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे गांधी सागर अभयारण्य और सागर, दमोह, नरसिंहपुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे नौरादेही अभयारण्य में भी चीते नजर आएंगे। उन्होंने बताया कि साउथ अफ्रीका की सरकार हर साल 12 चीते देने के लिए सहमत हुई है।
नामीबिया से आए चीते हुए फैमिलीयर
इससे पहले नामीबिया के विशेषज्ञों का कहना था कि जो चीते नामीबिया से लाए थे, उनमें से 25 प्रतिशत मध्यप्रदेश में शायद सर्वाइव नहीं कर पाएं। लेकिन यहां रहन-सहन, खान-पान की व्यवस्थाएं और वातावरण चीतों के मुताबिक है। अभी एक मादा चीता थोड़ी बीमार है और वो भी ठीक हो रही है। अन्य चीते भी पूरी तरह से स्वस्थ हैं। वनमंत्री ने बताया कि अगले महीने दो सगे भाई चीतों को जंगल में छोड़ेंगे।
गांधीसागर अभयारण्य में भी परिस्थितियां अनुकूल
वनमंत्री ने बताया कि गांधीसागर अभयारण्य 181 वर्ग किमी मंदसौर व 187 वर्ग किमी नीमच जिले समेत कुल 368.62 वर्ग किमी में फैला है। रावतभाटा की 30 किमी वन क्षेत्र की सीमा कम आबादी वाली है। चीतों के रहने के लिए बनाए जाने वाले बाड़े और पीने के पानी की व्यवस्था उन्होंने देखी है। गांधीसागर वन्य क्षेत्र चंबल का बड़ा क्षेत्र है। यहां पानी की भी कमी नहीं है।
साल 2000 में शुरू हुए थे प्रयास
चीतों को लाने के लिए साल 2000 में प्रयास शुरू हुए थे। चीतों के लिए पहाड़ी घास वाले मैदान स्ट्रांग पॉइंट मिले। चीतों से पहले उनके लिए चीतल को बसाया जा रहा है। यहां अफ्रीका की तरह ग्रास लैंड है। गांधीसागर के उस एरिया में कोई गांव व आबादी नहीं है, जो चीतों के लिए फायदेमंद है। इसके अलावा, यहां कई प्रजातियों के वन्यजीव, पेड़, झाड़ियां और लताएं हैं।
नौरादेही अभयारण्य होगा गुलजार
विशेषज्ञों का कहना है कि सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले में फैला नौरादेही अभयारण्य बाघों के रहने के लिए मुफीद है। अभी यहां 12 बाघ यहां अपना कुनबा बढ़ाने के साथ-साथ रह रहे हैं। कूनो पालपुर अभयारण्य में लाए गए चीतों की अगली पीढ़ी नौरादेही और मंदसौर के गांधी सागर अभयारण्य में बसाने की तैयारी है। चूंकि नौरादेही प्रदेश का सबसे बड़ा अभयारण्य है। इसका क्षेत्रफल 1,197 वर्ग किलोमीटर है। 2018 में यहां राधा बाघिन और किशन नाम के बाघ को बसाया गया था, जो काफी चर्चाओं में रहे। अब यहां बाघ 2 से बढ़कर 12 तक पहुंच गए हैं। अब यहां जल्द ही चीते भी छोड़े जाएंगे, जिससे नौरादेही अभयारण्य आबाद हो जाएगा। यहां तेंदुए भी पाए जाते हैं।