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ऐसी महिला की कहानी.. जिन्होंने दूसरों की सेवा के लिए जिंदगी समर्पित कर दी

जबलपुर। भले ही उनकी उम्र 65 साल हो, लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी सेवा का जज्बा रिटायर नहीं हुहा है। वह आज भी मरीजों की देखभाल करती हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं ताराबाई की। जबलपुर के रानी दुर्गावती महिला चिकित्सालय यानी एल्गिन अस्पताल में वार्ड नर्स के रूप में पदस्थ रहीं ताराबाई आज भी उसी जोश और जज्बे के साथ काम कर रही हैं जैसे वे रिटायर होने के पहले किया करती थीं। परिवार में तीन बेटों की मौत के बाद ताराबाई अकेली पड़ गईं और रिटायर होने के बाद भी उन्होंने अस्पताल में मरीजों की सेवा जारी रखने का प्रण लिया और प्रतिदिन अस्पताल पहुंचकर मरीजों की देखभाल और इलाज में उनकी मदद कर रही हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी वे रोज सुबह उठकर अस्पताल के लिए तैयार होती हैं और अस्पताल पहुंचकर मरीजों की सेवा करना, उनकी देखभाल और इलाज में उनकी मदद करना ताराबाई की दिनचर्या का हिस्सा है।
ताराबाई के तीन बेटे थे, जिनके इस दुनिया से जाने के बाद बहू और उनके बच्चे अलग रहने लगे। ताराबाई पूरे परिवार में अकेली पड़ गईं। फिर ताराबाई ने मरीजों से ऐसा रिश्ता बनाया कि सब उनके अपने हो गए। उनका कहना है कि निस्वार्थ सेवा में जो सुकून मिलता है वह कहीं और नहीं मिल सकता। लिहाजा रिटायरमेंट के बाद भी वे रोजाना अस्पताल पहुंचकर अपना वही काम कर रही हैं, जो नौकरी में रहते हुए किया करती थीं।
ताराबाई रोज सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक अस्पताल में ही अपनी सेवाएं देती हैं। ताराबाई न तो कभी देरी से पहुंचती हंै और न ही कभी छुट्टी लेती हैं। कभी जरूरत के मुताबिक छुट्टी लेनी भी पड़ जाए तो वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों को एक दिन पहले ही इसकी सूचना दे देती हैं। रिटायरमेंट के बाद ताराबाई की वार्ड के अंदर तैनाती नहीं की जा सकती। लिहाजा अस्पताल परिसर और ओपीडी के आसपास ही वह व्यवस्था बनाने, मरीजों को उचित मार्गदर्शन देने और उनके इलाज में मदद करती हैं। ताराबाई की सेवा के इस इस जज्बे के अस्पताल के अधिकारी और कर्मचारी भी कायल हैं।
कामचोरी, लेटलतीफी और बिना लेनदेन के काम न करने को लेकर सरकारी कर्मचारियों पर हमेशा से ही उंगलियां उठती रही हैं, लेकिन इस सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों की निस्वार्थ सेवा करते हुए ताराबाई ने साबित कर दिया है कि मानवता की सेवा में जो सुकून है वह धन दौलत में नहीं है।

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