कैद में बंद श्रीराम, माता जानकी एवं लक्ष्मण आज भी कर रहे इंतजार किसी हनुमान का
कैद में बंद श्रीराम, माता जानकी एवं लक्ष्मण आज भी कर रहे इंतजार किसी हनुमान का जबलपुर।दशहरा पर्व भारत देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व है, इस दिन भगवान श्रीराम चंद्र ने रावण सहित पृथ्वी से समस्त राक्षसों का विध्वंस कर पृथ्वी को राक्षसमुक्त किया था, इस कारण दशहरा को समूचे देश में रावण दहन किया जाता है, देशवासियों में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम चंद्र का अलग ही स्थान है, एक तरफ 2000 करोड़ से भी अधिक रुपयों की लागत से अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण जोर सोर से चल रहा है तो वही एक ऐसी भी जगह है जहां कई वर्षों से श्रीराम, माता जानकी ओर लक्ष्मण जी आज भी कैद में बंद हैं, जो इस कलयुग में अपनी रिहाई के लिए वर्षों से हनुमान का इंतजार कर रहे हैं जो उन्हें कैद से मुक्त कराए,वो जगह है जबलपुर के पनागर में जहाँ पंजाब केसरी ने 1 साल तक रिपोर्टिंग की और जगह को ढूढ़ निकाला। विलक्षण अष्ठधातु से निर्मित श्रीराम दरबार का इतिहास जबलपुर जिले के पनागर क्षेत्र में मुख्य मार्ग पर कमानिया गेट से चंद दूरी पर सैंकड़ों वर्ष पुरानी वाबली निर्मित है, इस भूमि पर बरसैयां जी ने साल 1904 उक्त भूमि को नायक परिवार से रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के माध्यम से खरीद कर उक्त स्थल पर श्रीराम माता जानकी ओर लक्ष्मण जी के भव्य मंदिर का निर्माण कराया था, जो कई वर्षों तक श्रीराम जानकी दरबार के नाम से प्रशिद्ध हो चुका था, बरसैयां जी ने मंदिर के पास ही लगभग 20″×20″ वर्ग फुट का चबूतरा भी बनवाया था, जिस पर रामलीला, सहित अन्य धार्मिक कार्यक्रम होते रहते थे, मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण इस दरबार मे नगर सहित दूर दराज के लोगों का पूजा अर्चना करने श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता था, एक समय उक्त श्रीराम दरबार अपने आप मे श्रीराम भक्तो के लिए एक श्रद्धा का केंद्र बन चुका था, जिसकी ख्याति नगर सहित दूर दूर तक फैल चुकी थी, यहां दूर दराज से श्रद्धालु इस मंदिर में विराजी अष्ठधातु की विलक्षण श्रीराम, माता जानकी एवं लक्षमण जी के दर्शनों का पुण्यलाभ लेने आते थे, उस समय मंदिर परिसर में पर्याप्त जगह थी, उक्त विलक्षण प्रतिमा सोने जैसी चमकती हैं, जो नगर का गौरव कहलाये जाने लगी थी। समय बीतते बरसैयां जी की पत्नी के देहांत होने के बाद सन 1940 के आसपास में बरसैयां जी की बेटी ने अपने पिता देवीदास बरसैयां को उनके स्वास्थ्य और देखभाल के लिए अपने यहां जबलपुर बुला लिया, उनके पनागर से जाने के उपरांत नगर के स्थानीय लोगों ने सन 1967 – 68 में बरसैयां जी से उनकी अनुपस्थिति में उक्त मंदिर की देखरेख ओर पूजा अर्चना के लिये एक समिति बनाकर उक्त मंदिर की देखरेख का दायित्व सौंपें जाने का निवेदन किया, जिससे श्रीराम जानकी मंदिर की देखरेख होती रहे, ओर सभी श्रद्धालुओं को श्रीराम जानकी जी के दर्शनों का लाभ भी मिलता रहे, क्षेत्रीय लोगों की मांग ओर उनकी भक्तिभाव को देखकर देवीदास बरसैयां ने लगभग 11 लोगों की समिति बनाकर उस मंदिर को समिति के हवाले सौंप दिया, जिसमें पनागर के उस समय के जानेमाने महशूर कालू राम मिश्र जी को उक्त समिति का अध्यक्ष बनाया गया, उनकी अध्यक्षता में कुछ वर्षों तक मंदिर में लगातार कार्यक्रम और पूजा अर्चना होती रही, लेकिन सन 1972 में समिति के अध्यक्ष ने उक्त भूमि की फर्जी वसीयत बनाकर उक्त भूमि का लगभग आधा हिस्सा बेच दिया, ओर मंदिर स्थल पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था, जिसका स्थानीय नगर वासियों ने पुरजोर विरोध भी किया था, स्थानीय लोगों ने उस समय सन 1975 में कोर्ट में आपत्ति भी लगाई, कोर्ट ने बरसैयां जी के मूल दस्तावेजों के आधार पर जनहित आधार में स्थगन आदेश भी जारी कर दिया था, तब से आज तक मामला कोर्ट में विचाराधीन है, कोर्ट में मामले में दिए गए फैसले के अनुसार अतिक्रमणकारी की वसीयत को शून्य घोषित कर दी थी,